आप उन्नीस तो हम बीस - You are Nineteen then We Twenty

आप उन्नीस तो हम बीस

एक था सेठ और एक थी सेठानी| एक शाम को सेठ दुकान से लौट कर खाट पर बैठा विश्राम कर रहा था| तभी सेठानी रसोईघर में से बोली, ‘अजी सुनते हो लल्ला के बापू, मेरे मायके से एक नाई खबर लाया है कि वहां अकाल पड़ा है| लोग दाने-दाने को तरस रहे हैं| उसने यह भी बताया है कि मेरे बापू और मां सूख कर कांटा हो गए हैं|’ सेठ ने कहा, ‘अब इसमें हम क्या कर सकते हैं? हम भगवान तो नहीं हैं जो दो-चार बादल बरसा दें|’

सेठानी को बुरा लगा| वह गरज कर बोली, ‘मैं कहती हूं, आज ही जाओ और एक गाड़ी भर कर वहां गेहूं डाल आओ| दूसरा, हमारे वहां गाय-गोरू की कमी है| साथ में एक गाय भी लेते जाओ|’ सेठ सोच में पड़ गया| यकायक उसके दिमाग में रोशनी हुई| वह खाट पर उसे उठ रसोईघर में जा कर बोला, ‘तुम रास्ते के लिए संबल तैयार कर दो| मैं कल मुंह अंधेरे ही चला दूंगा|’ लल्ला पास खड़ा था| वह भी साथ जाने के लिए तैयार हो गया|

सेठ ने तड़के गाड़ी जोती| सेठानी ने गाड़ी में गेहूं भरे| ठूंस-ठूंस कर भरे| फिर एक लिफाफे में पांच सौ रुपए डाल कर वह लिफाफा गेहूं के ढेर में छिपा दिया| उसने सोचा कि गेहूं कि साथ नकद भी उसके माता-पिता को मिल जाएगा| अंत में बैलगाड़ी के साथ एक गाय भी बांध दी| लल्ला लपक कर सेठ के बगल में बैठ गया| गाड़ी चल दी| थोड़ी देर बाद दोराहा आया| एक रास्ता सेठ के ससुराल वाले गांव को जाता था, दूसरा सेठ की बहन के गांव को| गाड़ी ससुराल जाने के बजाए बहन के यहां जाने के लिए चल पड़ी| यह देख लल्ला बोल उठा, ‘यह रास्ता तो बुआजी के गांव का है| मामाजी के गांव का रास्ता पीछे छूट गया|’

सेठ ने तुनक कर कहा, ‘बाल्शित भर के बुद्धू, तू क्या जाने कि कौन-सा रास्ता सही है और कौन-सा गलत|’ लल्ला खामोश हो गया| गाड़ी आगे बढ़ती रही| शाम हुई| गाड़ी बहन के गांव पहुंची| वहां भी अकाल पड़ा था| नदी सूख गई थी| फसल नष्ट हो चुकी थी| घर-घर खाने के लाले पड़े थे|

भाई को आया देख बहन की खुशी का ठिकाना न रहा| एक तो भैया आए| दूसरे, गाड़ी-भर गेहूं के साथ एक दुधारू गाय भी लाए| बहन ने फटाफट रोटिया बनाईं| सब्जी तैयार की| बेसन के लड्डू बनाए| अपने भैया और लल्ला को खूब मनुहार कर भोजन कराया|

बाप-बेटा दोनों ठाठ से बहन के घर दो रोज रहे और तीसरे रोज गाड़ी जोत कर वापस आए| सेठ को लौटा देख सेठानी ने पूछा, ‘गेहूं दे आए? मेरे बापू को गाय कैसी लगी? वहां सब ठीक तो हैं न?’ सेठ बोला, ‘मुझे देर हो रही है| मैं दुकान पर जा रहा हूं| जो भी जानना हो, तुम लल्ला से पूछ लेना|’ सेठ गया तो सेठानी लल्ला की ओर मुड़ी, ‘ क्यों रे निगोड़े, तेरे मामा ठीक-ठाक तो हैं न?’

लल्ला ने कहा, ‘वहां मामा-वामा कोई नहीं था|’ सेठानी बोली, ‘शायद मामाजी किसी काम से बाहर गए होंगे| तेरी मामी तो कुशल-मंगल है न?’ लल्ला ने कहा, ‘लेकिन मां, वहां मामी भी तो नहीं थी, वहां तो बुआजी थीं| फूफाजी थे| दूसरे लोग भी थे|’ लल्ला की बात सुन कर सेठानी असली बात समझ गई|

मन ही मन सेठानी ने कसम ली, ‘देख लूंगी, सारा सामान अपनी बहन के घर डाल आए और जले पर नमक छिड़कने लल्ला को छोड़ गए| लल्ला के बापू, इसका बदला मैं जरूर लूंगी|’ उसने तुरंत घूंघट काढ़ कर अपना माथा पीटना शुरू कर दिया| वह रोते-बिलखते हुए कह रही थी :

लुट गई मैं तो तबाह हो गई
गाड़ी भर गेहूं गए गाय भी गई
सौ-सौ के पांच हरे नोट भी गए
हाय रे, लल्ला की बुआ भी गई

आंगन में भीड़ इकट्ठा होने लगी| सब पूछने लगे, ‘सेठानी आपको यह क्या हो गया है? आप क्यों रो रही हैं?’ सेठानी ने बताया, ‘लल्ला के बापू अपनी बहन के घर एक गाय और गाड़ी भर गेहूं पहुंचाने गए थे| हाय रे…वहां पता चला कि अकाल के कारण उनकी जवान बहन भूखों मरी है| हमारे सिर पर दुख का पहाड़ टूटा है|’

धीरे-धीरे सारा गांव इकट्ठा हो गया| सब लोग साथ मिल कर रोने और सिर पीटने लगे| जब दुकान पर सेठ को पता चला कि घर में कुहराम मचा है, तो वह भी दौड़ता हुआ आ पहुंचा| घर पर सब मातम कर रहे थे ओर चिल्ला रहे थे:

लुट गई मैं तो तबाह हो गई
गाड़ी भर गेहूं गए गाय भी गई
सौ-सौ के पांच हरे नोट भी गए
हाय रे, लल्ला की बुआ भी गई

सेठ समझदार था| सारी बात समझ में आ गई| उसके नहले पर सेठानी ने दहला चला था| उसी पल सेठ ने क्षमा मांगी और गाड़ी भर गेहूं और एक गाय ले कर ससुराल पहुंच गया| सारा सामान ससुराल में उंडेल कर लौटा, तभी सेठानी ने उसकी क्षमा कबूल की|

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