श्रीअमरनाथ का मार्ग हिमालय के सभी तीर्थस्थानों के मार्ग से कठिन है। चढ़ाई दुर्गम है, शीत भयंकर है। तूफानी बर्फीली हवाओं के कारण यात्रियों को कदम-कदम पर कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इनकी चिंता किए बिना क्या बूढ़े, क्या जवान, क्या स्त्रियाँ, क्या बालक मंदिर के दर्शनों को चल पड़ते हैं। भक्तों का विश्वास है कि यह स्वर्ग की सीढ़ी है। यदि इस दुरूह यात्रा से बच गए तो पुण्यलाभ होगा, अन्यथा स्वर्गयात्रा का सुफल मिलेगा।
श्रीअमरनाथ की वास्तविक यात्रा का जुलूस श्रीनगर से आरंभ होता है, जिसे ‘छड़ी’ कहते हैं । यूँ तो पैदल यात्रा का ही माहात्म्य है, किंतु कुछ लोग श्रीनगर से पहलगाम तक उनसठ मील का मार्ग मोटर या बस में तय करते हैं। आगे सत्ताईस मील के मार्ग में पैदल जाना पड़ता है। असमर्थ व्यक्तियों के लिए घोड़े और कंडियाँ भी मिल सकते हैं । यह यात्रा चार दिन में तय की जाती है। पहला पड़ाव चंदनवाड़ी है, जो पहलगाम से आठ मील है। यहाँ बर्फ का एक बहुत बड़ा पुल है। चंदनवाड़ी के समीप ही पिस्सू घाटी है, जहाँ रास्ता बहुत सँकरा है। एक ओर ऊँचे-ऊँचे पर्वत हैं तो दूसरी ओर नीची घाटी, जिसमें होकर नदी बहती है।
दूसरे दिन यात्री चंदनवाड़ी से शेषनाग झील के लिए प्रस्थान करते हैं। भक्तों का विश्वास है कि काले साँपों के फन के समान फैले इस शेषनाग सरोवर में भगवान् विष्णु अनंत शय्या पर सोए हुए हैं । यहाँ रात को विश्राम करके तीसरे दिन यात्री पंचतरणी के लिए चल पड़ते है, जहाँ पाँच नदियाँ मिलती हैं। यह तीसरा एवं अंतिम पड़ाव है। यहाँ से श्रीअमरनाथ का मंदिर चार मील है। कथा प्रसिद्ध है कि एक बार शिवजी तांडव नृत्य करते हुए इतने उल्लास से भर गए कि उनकी जटा खुल गई और उसमें से गंगा की पाँच धाराएँ प्रवाहित हो उठीं। यहाँ से आगे चढ़ाई के पश्चात् सड़क तुरंत दाईं ओर घूम जाती है और अचानक अमरनाथ का मंदिर सामने दृष्टिगोचर होता है। दूर से ही मंत्रोच्चारण की ध्वनि कानों में आने लगती है।
श्रीअमरनाथ का मंदिर वस्तुतः एक प्राकृतिक गुफा है, जो पचास फीट लंबी, पचपन फीट चौड़ी और पैंतालीस फीट ऊँची है। इसकी बाईं ओर अमर गंगा बहती है। मंदिर में प्रवेश करने से पहले लोग अमर गंगा में स्नान करते हैं । गुफा के भीतर जाने पर पचास फीट तक सीधा और फिर टेढ़ा-मेढ़ा मार्ग है। गुफा के भीतर शीत बहुत अधिक है। गुफा में दाईं ओर शिव का प्रतीक पाँच फीट का शिवलिंग है, बर्फ-सा श्वेत, नहीं सचमुच बर्फ का बना हुआ। इसके बाईं ओर पार्वती का प्रतीक छोटा हिमखंड है और दाईं ओर का हिमखंड गणेश का प्रतीक है। ये लिंग चंद्रमा के बढ़ने के साथ बढ़ते और चंद्रमा के घटने के साथ घटते हैं। श्रावण और भाद्रपद की पूर्णिमाओं के दिन ये सबसे बड़े आकार में होते हैं। गुफा के बाहर दो कबूतर रहते हैं, जो शिव के पार्षद् कहलाते हैं। कहते हैं कि उन्होंने अप्सराओं के बहकावे में आकर शिवजी का ध्यान भंग करने का यत्न किया था। इस अपराध के कारण शिवजी ने शाप देकर उन्हें कबूतर बना दिया, तभी से वे गुफा के चक्कर काटते दिखाई देते हैं।
श्रीअमरनाथ मंदिर के दर्शन करके लौटते समय यात्रियों को सच्ची शांति का अनुभव होता है।