झनझनाती चूड़ियां! अहा! इनका नाम सुनते ही नन्हीं बालिकाएं खिल उठती हैं। कल तीजों का त्यौहार था। प्रभा की माता ने उसे बड़ी सुन्दर चूड़ियां पहनाई। नए वस्त्र तथा चूड़ियां पहने प्रभा भागी-भागी अपनी सखी ममता के घर दिखाने गई। वह भी लाल तथा हरे रंग की चूड़ियां पहने हुए थी। फिर दोनों सहेलियां झूला झूलने लगी। चूड़ियो की मीठी झनझन पाम खड़ी सभी सहेलियों के मन को मोह रही थी। सारी लड़कियां अपनी-अपनी चूड़ियों की सराहना कर रही थीं। फिर वे खेलने लगीं।
खेल-खेल में अन्नु ने नीलम की बांह पकड़ी कि उसकी कांच की चूड़ी टूट गई। नीलम की कलाई से लहू बहने लगा । सब छोटी बालिकाएं घबरा गई। एक बड़ी सहेली ने समझाया कि घबराओ मत, अभी लहू बन्द हो जायेगा। जैसे फूट में कांटा होता है वैसे ही हंसी-खेल में यह कष्ट है। यह कोई बड़ी बात नहीं । चूड़ियां पहनने से टूट ही जाती हैं। उसने पानी मंगाकर लहू धो दिया और पट्टी बांध दी।।
चूड़ियां प्लास्टिक, कांच, बिल्लौर, गेंडे, लोडे, चांदी, सोने आदि की बनती हैं। सोने की चूड़ी का मूल्य अधिक होता है।
चूड़ियां विवाहित स्त्रियों के सुहाग की निशानी होती हैं।