आधुनिक युग विज्ञान का युग है। विज्ञान का मुख्य पहलू, लक्ष्य, उद्देश्य और गन्तव्य मानव जीवन के लिए तरह-तरह के साधन जुटाकर उसे सुख-सुविधाओं और सम्पन्नता के वरदानों से भर देना है। परन्तु यह मानव के स्वभाव और व्यवहार पर निर्भर करता है कि वह इसे सारी मानवता के लिए वरदान बना दे या अभिशाप। आज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विज्ञान के अनेक आविष्कारों ने मानव जीवन को पहले से अधिक सुखी बना दिया है। “आज विज्ञान ने मनुष्य के जीवन को सुखी तथा समृद्ध बनाने के लिए सुई से लेकर हवाई जहाज, रेलगाड़ी, जलयान व यंत्र, कार एवं अनेक तरह के सामान मुहैया कर सुख-सुविधा से भर दिया है। यह भी मानव जीवन के लिए वरदान ही हैं। तार, टेलीफोन और बेतार के तार द्वारा संवाद भेजने में बड़ी सुविधा हो गई है। यातायात के साधनों के विकास से संसार की दूरी बहुत छोटी हो गई है। इसके द्वारा मानव चन्द्रमा पर भी पहुँच गया है। चिकित्सा के क्षेत्र में भी विज्ञान ने अनेक चमत्कार किए हैं। जिन रोगों का पहले इलाज सम्भव नहीं था, इंजैक्शन तथा शल्य-चिकित्सा द्वारा उनका निदान सम्भव हो गया है। प्लास्टिक सर्जरी द्वारा अनेक कृत्रिम अंग बखूबी लगाए जाने लगे हैं। ‘एक्स-रे’ तथा ‘अल्ट्रासाउंड द्वारा सूक्ष्म-से-सूक्ष्म अंगों के चित्र खीचे जा रहे हैं। यहाँ तक कि आँखों का आप्रेशन व इसका दूसरे के शरीर में प्रत्यारोपण भी सम्भव हो गया है।
‘मुद्रण-यन्त्र’ भी विज्ञान की ही देन है जिससे पुस्तकों व समाचार-पत्रों की अनेक प्रतियाँ थोड़े ही समय में मुद्रित की जाने लगी हैं। रेडियो, टेलीविजन तथा वी.सी.आर. आदि मनोरंजन के प्रमुख साधन हैं जो विज्ञान की देन हैं। विज्ञान का आधुनिक युग का सबसे महत्त्वपूर्ण आविष्कार है ‘विद्युत’ जिससे हमें प्रकाश, शक्ति व तापमान प्राप्त होता है। यह मनुष्य के लिए एक प्रकार का वरदान ही, दूसरी ओर आधुनिक विज्ञान ने मानव-जीवन और समाज को अभिशप्त भी कम नहीं किया है। विज्ञान ने हमें एक दानवी शक्ति भी दी है – ‘परमाणु शक्ति • जिसका यदि हम दुरुपयोग करें तो पूरा संसार कुछ ही समय में नष्ट हो सकता है। जीवन के प्रांगण को प्रकाशित करने वाली बिजली क्षणभर में आदमी के प्राणों का शोषण कर उसे निर्जीव बना कर छोड़ देती है। अनेक ऐसे यत्रों का निर्माण किया जा चुका है जिनका दुरुपयोग कर एक बददिमाग आदमी घर के भीतर बैठकर केवल बटन दबाकर ही प्रलय की वर्षा कर सकता है। यह सब विज्ञान के अभिशाप ही हैं। अतः आज विज्ञान ने हमें जो कुछ भी दिया वह हमारे लिए वरदान तथा अभिशाप दोनों ही हैं। यह केवल हमारे उपयोग पर निर्भर है।
शब्दार्थः गन्तव्य = जहां पहुँचा जा सके; शल्य-चिकित्सा = चीरा-फाड़ी का इलाज; प्रत्यारोपण = दुबारा लगाना; मुद्रण-यंत्र = छपाई की मशीन; अभिशप्त = शापित, शाप दिया हुआ; दानवी = राक्षसी ।