बाल श्रम - Child Labour

बाल श्रम

भारत में भगवान के बाल रूप के अनेक मंदिर हैं जैसे बाल गणेश, बाल हनुमान, बाल कृष्ण एवं बाल गोपाल इत्यादि। भारतीय दर्शन के अनुसार बाल रूप को स्वयं ही भगवान का रूप समझा जाता है। ध्रुव, प्रह्लाद, लव-कुश एवं अभिमन्यु आज भी भारत में सभी के दिल-दिमाग में बसे हैं।

आज के समय में गरीब बच्चों की स्थिति अच्छी नहीं है। बाल श्रम समाज की गंभीर बुराइयों में से एक है। गरीब बच्चों का भविष्य अंधकारमय है। पूरे संसार में गरीब बच्चों की उपेक्षा हो रही है तथा उन्हें तिरष्कार का सामना करना पड़ता है। उन्हें स्कूल से निकाल दिया जाता है और शिक्षा से वंचित होना पड़ता है, साथ ही बाल श्रम हेतु मजबूर होना पड़ता है। समाज में गरीब लड़कियों की स्थिति और
भी नाजुक है। नाबालिग बच्चे घरेलू नौकर के रूप में काम करते हैं। | वे होटलों, कारखानों, दुकानों एवं निर्माण स्थलों में कार्य करते हैं और रिक्शा चलाते भी दिखते हैं। यहाँ तक की वे फैक्ट्रियों में गंभीर एवं खतरनाक काम के स्वरुप को भी अंजाम देते दिखाई पड़ते हैं।

भारतीय के संविधान, १६५० के अनुच्छेद २४ के अनुसार १४ वर्ष से काम आयु के किसी भी फैक्ट्री अथवा खान में नौकरी नहीं दी जाएगी। इस सम्बन्ध में भारतीय विधायिका ने फैक्ट्री एक्ट, १९४८ एवं चिल्ड्रेन एक्ट, १९६० में भी उपबंध किये हैं। बाल श्रम एक्ट, १९८६
इत्यादि बच्चों के अधिकारों को सुरक्षित रखने हेतु भारत सरकार की पहल को दर्शित करते हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद ४५ के अनुसार राज्यों का कर्ततव्य है कि वे बच्चों हेतु आवश्यक एवं निशुल्क शिक्षा की व्यवस्था करें।

गत कुछ वर्षों से भारत सरकार एवं राज्य सरकारों द्वारा इस सम्बन्ध में प्रशंसा योग्य कदम उठाए गए हैं। बच्चों की शिक्षा एवं उनकी बेहतरी के लिए अनेक कार्यक्रम एवं नीतियाँ बनाई गयी हैं तथा इस दिशा में सार्थक प्रयास किये गए हैं। किन्तु बाल श्रम की समस्या आज भी ज्यों की त्यों बनी हुई है।

इसमें कोई शक नहीं है कि बाल श्रम की समस्या का जल्दी से जल्दी कोई हल निकलना चाहिए। यह एक गंभीर सामाजिक कुरीति
है तथा इसे जड़ से समाप्त होना आवश्यक है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *