छात्रों के लिए जितना अध्ययन आवश्यक है, उतना ही खेलना भी। इससे शारीरिक शक्ति की ही वृद्धि नहीं होती, अपितु छात्रों की मानसिक शक्ति का भी विकास होता है। अमें संकल्प की दृढ़ता, संगठन की क्षमता और अनुशासनप्रियता बढ़ती है। खेलों के प्रचार और खेलों के प्रति छात्रों की अभिरुचि जागृत करने के लिये मैचों का आयोजन किया जाता है। प्रतिवर्ष इण्टर स्कूल टूर्नामेंट और इण्टर कॉलेज टूर्नामेंट किए जाते हैं, जिसमें फुटबाल, क्रिकेट आदि के मैच होते हैं। विद्यार्थी इनमें अपनी-अपनी अभिरुचि के अनुसार भाग लेते हैं। विजेता टीम को पुरस्कार के रूप में ट्राफी दी जाती है। अन्य अच्छे खिलाड़ियों को भी पुरस्कार मिलता है।
मैंने जो मैच देखा था वह इण्टर कॉलेज टूर्नामेंट का अन्तिम मैच था। वह सितम्बर के अन्तिम सप्ताह में हुआ। यह मैच गवर्नमेंट इण्टर कॉलेज, बुलन्दशहर तथा अग्रवाल इण्टर कॉलेज, सिकन्दराबाद के बीच में हुआ था। यह मैच रविवार की शाम के चार बजे रखा गया था। शनिवार को ही प्रधानाचार्य जी ने कॉलेज में यह सूचना प्रसारित कर दी थी कि प्रत्येक छात्र को मैच देखने आना है। मेरा घर कॉलेज के निकट ही था, अतः मुझे वहाँ पहुंचने में कोई कठिनाई नहीं हुई। जो छात्र दूर रहते थे उन्हें भी प्रधानाचार्य जी की आज्ञा से विवश होकर आना पड़ा। 3 बजे हमारे कॉलेज के खिलाड़ियों की टीम कॉलेज के छात्रावास में एकत्रित हुई। क्रीडाध्यक्ष जी ने 10-12 मिनट तक खिलाड़ियों को मैच के विषय में कुछ आवश्यक निर्देश दिए। खिलाड़ियों ने अपने-अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिये और कॉलेज के खेल की पोशाक पहननी आरम्भ कर दी। धीरे-धीरे सभी खिलाड़ी एक से परिवेश में सुसज्जित हो गए, कोई अपनी जांघों पर हाथ फेर रहा था, कोई अपनी भुजाओं पर। सभी खिलाड़ियों ने खेल के जूते पहन रखे थे, कई बिना जूते ही खेलना चाह रहे थे, परन्तु क्रीड़ाध्यक्ष की इच्छा थी कि वे भी जूते पहन कर ही खेलें। अन्त में उन्होंने क्रीड़ाध्यक्ष की आज्ञा मान ली। अब सभी खिलाड़ी खेलने को पूर्णरूप से तैयार थे।
सभी खिलाड़ी मैदान की ओर चल दिए। अभी साढ़े तीन ही बजे थे। हमारी टीम से पहले ही सिकन्दराबाद की टीम आ चुकी थी। मैदान के चारों ओर दर्शकगण जमा होते जा रहे थे। गणमान्य व्यक्तियों के लिए एक ओर कुर्सियां बिछी हुई थीं। दो मेजों पर पुरस्कार सजा कर रखे हुए थे। ठीक पौने चार बजे रैफरी ने सीटी बजाई, दोनों टीमों के कैप्टन ‘टॉस’ करने के लिए रैफरी के पास आ गए। ‘टॉस’ में सिकन्दराबाद की टीम जीत गई। इस पर उसके साथ आए हुए कुछ विद्यार्थियों ने तालियां बजाकर अपनी प्रसन्नता प्रकट की। इसके पश्चात दोनों टीमों के कैप्टनों ने अपने-अपने खिलाडियों को यथास्थान खड़ा किया। ठीक चार बजे रैफरी की सीटी ने खेल प्रारम्भ करा दिया। उस समय का दृश्य बड़ा ही मनमोहक था। खेल के मैदानों के चारों ओर कोनों पर रंग-बिरंगी झण्डियाँ लगी हुई थीं। गोल के दोनों स्थलों पर जाली और बल्लियों का चौड़ा द्वार सा बना दिया गया था। मैदान के चारों ओर लाइनों के पीछे विद्यार्थियों की और फुटबाल के खेल में अभिरुचि रखने वाले नागरिकों की भीड़ लगी हुई थी। आज के पुरस्कार वितरण के लिये सुपरिन्टेन्डेन्ट पुलिस की धर्मपत्नी को आमन्त्रित किया गया था। वे दोनों पति-पत्नी आये थे और अन्य गणमान्य दर्शकों के बीच सोफे पर बैठे हुये खेल का आनन्द ले रहे थे। कॉलेज के गेट पर कई मोटरकारें खड़ी थीं। खेल पूरे उत्साह और जोश के साथ हो रहा था। सिकन्दराबाद का गोलकीपर बड़ा फुर्तीला और चुस्त था। इस पर उसके समर्थन विद्यार्थियों ने बड़ी शिष्टता से करतल ध्वनि की। विपक्ष टीम ने हमारी टीम को दबाना प्रारम्भ कर दिया। अब हमारी टीम जी तोड़कर खेल रही थी। लोग कह रहे थे कि खेल में अब जान पड़ी है। कुछ क्षणों के पश्चात खेल का आधा समय समाप्त हो गया, रैफरी की सीटी सुनकर खेल समाप्त कर दिया गया। खिलाड़ी विश्राम के लिये चल दिये। सिकन्दराबाद के विद्यार्थी गोल करने वाले विद्यार्थी से लिपट गये। उसे गोदी में भरकर उठा लिया। हमने भी अपने खिलाड़ियों को खूब प्रोत्साहित किया। दोनों ओर के खिलाड़ियों को मौसमी और सन्तरे दिये गये।
पुरस्कार वितरण से पूर्व एस.पी. महोदय की धर्मपत्नी ने खेलों के महत्व और उनकी उपयोगिता पर प्रकाश डाला। फिर इस टूर्नामेंट के अधिकारियों को धन्यवाद देते हुए उन्होंने हमारे कैप्टन को ट्राफी प्रदान की। सभी छात्रों ने हर्ष से करतल ध्वनि की। लगभग 6 बजे हम लोग अपने-अपने घर लौटे। दूसरे दिन हमने प्रधानाचार्य जी से मैच जीतने के उपलक्ष्य में एक दिन की छुट्टी प्राप्त की।