क्रिकेट का खेल - Game of Cricket

क्रिकेट का खेल

क्रिकेट का खेल अन्तर्राष्ट्रीय महत्व का खेल है। पहले केवल अंग्रेजी स्कूल और कॉलिज के छात्र ही इसमें अभिरुचि लेते थे, परन्तु इस समय तो छात्रों के अतिरिक्त युवा और प्रौढ़ नागरिक भी इसमें रुचि लेने लगे हैं। समाचार पत्रों में भी इसके विषय में नित्य नये समाचार प्रकाशित होते रहते हैं। इसमें अपनी वृद्धि और बाहुबल के सहारे पर्याप्त उन्नति की है। भारतीय क्रिकेट टीम ने भी विदेशों में जाकर अनेक स्थानों पर बडे-बडे आश्चर्यजनक प्रदर्शन किये हैं।

ब्रिटिश संग्रहालय में लगे हुये चित्रों से यह प्रतीत होता है कि इस खेल को पहले बालक खेलते थे। सन् 1478 में फ्रांसीसी खेलों में इसकी सर्वप्रथम चर्चा मिलती है। डॉ. जानसन ने इस खेल का वर्णन करते हुये एक स्थान पर लिखा है कि खेलने वाले गेंद में छड़ी मारकर खेलते थे। जैसे-जैसे मानव की बुद्धि का परिष्कार और शिक्षा का विकास होता गया वैसे-वैसे क्रिकेट के खेल में भी सुधार हुये। कहा जाता है कि इस खेल का नियमानुकूल प्रदर्शन सबसे पहले 1850 ई. में गिलफोर्ड नामक स्कूल में हुआ था। तब से धीरे-धीरे यह खेल बढ़ता गया। आज यह अपनी सर्वप्रियता के कारण इतना प्रसिद्ध हुआ है कि समाचार पत्रों में स्थान-स्थान पर होने वाले टैस्ट मैचों के समाचार प्रकाशित होते हैं। क्रिकेट का सर्वप्रथम टैस्ट मैच “कलेककाम” में हुआ था। विदेशों में इसकी विधिवत शिक्षा देने के लिये क्लबों की स्थापना हुई। इसमें उन देशों को आर्थिक लाभ भी हुआ। सन् 1926 में लगभग उत्तर और दक्षिण के देशों में कई बड़े-बड़े सफल मैच हुये। आज इंग्लैण्ड क्रिकेट का सबसे अच्छा क्षेत्र है। देशों में इसका पर्याप्त प्रचार है।

अंग्रेज भारत में अकेले नहीं आये, अपितु अपने साथ अपनी भाषा, अपनी संस्कृति और सभ्यता तथा खेल भी लाये। भारत सदैव से अपनी ग्रहकला शक्ति के लिये प्रसिद्ध रहा है। अठारहवीं शताब्दी में, बम्बई में एक क्रिकेट क्लब की स्थापना हुई। इस क्लब की स्थापना का श्रेय बम्बई के तत्कालीन गवर्नर को था। उन्होंने इस क्लब को आर्थिक सहायता दी तथा जनता में इसके प्रति अभिरूचि उत्पन्न की, बम्बई में यह खेल जब काफी लोकप्रिय हो गया तब वहीं क्रिकेट का राजगुरू टूर्नामेंट प्रारम्भ हुआ। इस खेल को देखने की भारतीयों के हृदय में काफी उत्सुकता थी। सन् 1927 में क्रिकेट के खिलाड़ियों की टीम ने समस्त भारत का दौरा किया। भारतवर्ष के प्रसिद्ध नगरों में उस टीम ने मैचों का आयोजन किया और अपनी कला-कौशलता से दर्शकों को मन्त्रमुग्ध कर लिया। 1928 में भारतीय क्रिकेट के खिलाड़ियों की एक टीम इंग्लैण्ड भी गई। उसके पश्चात् इस खेल की भारतवर्ष में आशातीत वृद्धि हुई। आज तो साधारण पढ़े-लिखे लोगों से लेकर उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्तियों द्वारा भी यह खेल बड़े चाव से खेला और देखा जाता है।

क्रिकेट का खेल एक विशाल मैदान में खेला जाता है। मैदान के बीचों-बीच एक 22 गज लम्बी पिच तैयार की जाती है। इसके दोनों तरफ 3-3″ की दूरी पर तीन-तीन विकेट गाड़े जाते हैं, जिन पर यह खेल खेला जाता है। इस खेल में ग्यारह-ग्यारह खिलाड़ियों की दो टोलियाँ होती हैं। प्रत्येक टीम का एक-एक कप्तान होता है, जो अपनी-अपनी टीम का संचालन करते हैं। खेल प्रारम्भ होने से पूर्व दोनों टीम के कप्तान मैदान में जाकर रैफरी के समक्ष टॉस द्वारा यह निर्णय करते हैं कि कौन प्रथम खेलेगा या खिलायेगा, जो टॉस जीत जाता है उसको इस निर्णय का अधिकार होता है। इस प्रकार वह खेल प्रारम्भ होता है और खेलने वाली पार्टी के दो खिलाड़ी अपने-अपने बैट लेकर मैदान में विकटों के आगे आकर खड़े हो जाते हैं और दूसरी टीम का एक खिलाड़ी बाउलिंग करता है। अगर बैट द्वारा उसको वह मारकर दूर फेंक देता है तो इस बीच दौड़कर अपनी रन संख्या में वृद्धि कर देता है। एक टीम खेलती है तथा दूसरी खिलाती है। जब एक के दस खिलाड़ी आउट हो जाते हैं, तो दूसरी पार्टी की खेलने की बारी आती है और इसी प्रकार दोनों पार्टियों में से जिनकी रन संख्या अधिक हो जाती है वही पार्टी विजयी घोषित हो जाती है। 1983 ई. में इंग्लैण्ड में आयोजित विश्वकप प्रतियोगिता में विश्वकप जीत कर भारतीय टीम ने अपने देश को गौरवान्ति किया। यद्यपि भारत भ्रमण पर आई विश्व की सर्वश्रेष्ठ वैस्टइंडीज टीम को भारतीय टीम पराजित नहीं कर सकी किन्तु तदुपरान्त दुबई में आयोजित प्रतियोगिता में अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा पुनः प्राप्त कर ली। जिस प्रकार हॉकी के खेल में स्व. ध्यानचन्द का नाम विश्व विख्यात है। उसी प्रकार भारत के सुनील गावस्कर विश्व क्रिकेट इतिहास में सर्वोच्च बल्लेबाज हैं जिनके नाम क्रिकेट जगत के अनेक कीर्तिमान अंकित है।

इन खेलों से मनुष्य में अनेक उदात्त भावनाओं का जन्म होता है, जिससे वह जीवन संग्राम में सफलता प्राप्त करता हुआ जीवन के वास्तविक उद्देश्य की प्राप्ति करता है। इन्हीं खेलों की तरह जीवन भी एक खेल है। उसे सफलतापूर्वक खेलना, जय और पराजय में समान रहना, यह हमें ये खेल ही सिखाते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *