धन के सदुपयोग का अर्थ है-धन को अनावश्यक व्यय न करना वरन् सत्कार्यों में लगाना। किसी मनुष्य के पास यदि अधिक धन है तो उसे चाहिए कि वह उस धन को अपने ऐशो-आराम पर व्यय न करे। इसी को ‘धन का सदुपयोग’ कहते हैं।
सभी कार्य धन से सिद्ध होते हैं। धन अत्यंत बलशाली है। सारा संसार धन के फेर में रहता है। यदि धन न हो तो सारे बाजार सूने पड़ जाएँ; धर्मशालाएँ, मंदिर तथा मसजिद दिखाई न पड़े। विशाल भवनों और राजमार्गों का नामोनिशान न हो। संक्षेप में कह सकते हैं कि संसार के सारे कार्य बंद हो जाएँ।
धन के बिना मनुष्य का कोई काम सिद्ध नहीं हो सकता। मनुष्य का जीवन धन पर ही निर्भर है। किसी मनुष्य के पास यदि धन है तो वह अच्छे कपड़े पहनेगा तथा पौष्टिक भोजन करेगा।
| जब धन एक ऐसी वस्तु है कि इसके बिना मनुष्य को इच्छित फल नहीं मिल सकता और जीवन-निर्वाह करना दुष्कर है, तब प्रत्येक मनुष्य का परम कर्तव्य है कि वह ऐसी हितकर तथा अमूल्य वस्तु की रक्षा और मितव्ययता पर अधिक ध्यान दे। मनुष्य नहीं जानता कि उसके ऊपर कब, कौन सी आपदा आ जाए, जिसके कारण उसे धन की आवश्यकता पड़े। इसलिए प्रत्येक मनुष्य को चाहिए कि वह थोड़ा-बहुत धन अवश्य बचाकर रखे। इसका अर्थ यह नहीं कि मनुष्य भूखा रहकर और कंजूसी दिखाकर धन बचाए, वरन् वस्त्र एवं अन्य जरूरी चीजें खरीदने के बाद जो धन शेष रहे, उसे व्यर्थ में | नष्ट न करे। किसी कवि ने इस विषय में उचित ही कहा है
“मति न नीति है गलति, जो धन रखिए जोड़।
खाए खर्चे जो बचे, तो जोरिए करोड़॥” जो मनुष्य धन का सदुपयोग करते हैं, वे सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करते हैं। उन्हें ‘धनाभाव का कष्ट नहीं भोगना पड़ता है। धन का सदुपयोग करनेवाला मनुष्य ही सामाजिक कार्यों में हाथ बँटा सकता है। | यह कौन नहीं जानता कि यदि धन का दुरुपयोग किया जाएगा तो इसका अवश्य ही बुरा परिणाम निकलेगा। जो मनुष्य धन का दुरुपयोग करता है, वह कदापि सुखी नहीं रह सकता। परिणाम यह होगा कि वह सदा धन प्राप्त करने में लगा रहेगा और इस पर भी उसकी आवश्यकताएँ पूरी नहीं होंगी। संसार में ऐसे अनेक उदाहरण हैं कि जो व्यक्ति पहले बड़े धनवान् थे, परंतु धन का दुरुपयोग करने के कारण इतने निर्धन हो गए कि उन्हें खाने तक के लाले पड़ गए। । यद्यपि धन बड़े काम की वस्तु है, तथापि इसमें कुछ बुराइयाँ भी हैं-धन की अधिक चाह से मनुष्य लालची हो जाता है। वह धन प्राप्त करने के लिए सत्पुरुषों को भी धोखा देता है। कभी-कभी वह धन-प्राप्ति के लिए मनुष्य के प्राण लेने तक के लिए उद्यत हो जाता है। धनवान् मनुष्य को चाहिए कि वह अपने कुटुंबों पर भी धन का सार्थक व्यय करे। शेष धन को सार्वजनिक कार्यों में व्यय कर देना चाहिए, जिससे जनता अधिक-सेअधिक लाभ प्राप्त कर सके। यदि कोई मनुष्य आज धनहीन है तो कुछ कालोपरांत धनवान् हो सकता है। अतएव प्रत्येक मनुष्य को जीवन में एक-दूसरे की सहायता करनी चाहिए।
संसार में ऐसे अनेक उदाहरण हैं कि बड़े-से-बड़े धनी लोगों ने दूसरे के हितार्थ कुछ नहीं किया और उनका धन व्यर्थ में नष्ट हो गया। वहीं उनसे कम धनी, परंतु बुद्धिमान व्यक्तियों ने दूसरों के लिए अपना धन व्यय किया। उदार और धार्मिक प्रवृत्ति के धनिकों की कृपा से निर्धन विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं; रोग-पीड़ितों को दवाएँ और अनाथों को आश्रय मिल रहा है।