हरियाली का वास्तव में मानव-जीवन में यों ही बड़ा महत्व माना जाता है। हरा होना यानि सुखी और समृद्ध होना माना जाता है। इसी प्रकार जब किसी स्त्री को ‘गोद हरी’ होने का आशीर्वाद दिया जाता है, तो उसका अर्थ होता है गोद भरना यानि पुत्रवती होना। सो कहने का तात्पर्य है कि भारत में हरियाली या हरेपन को खिलाव, विकास एवं सब तरह से सुख-समृद्धि का प्रतीक माना गया है। हरित क्रान्ति का अर्थ भी देश का अनाजों या खाद्य पदार्थों की दृष्टि से सम्पन्न या आत्मनिर्भर होने का जो अर्थ लिया जाता है, वह सर्वथा उचित ही है।
ऐसा माना जाता है कि इस भारत भूमि पर ही फल-फूलों या वृक्षों पौधों के बीजों आदि को अपने आप पुन: उगते देखकर कृषि कार्य करके अपने खाने-पीने की समस्या का समाधान करने यानि खेती उगाने की प्रेरणा जागी थी। यहीं से यह चेतना और क्रिया धरती के अन्य देशों में भी गई। यह तथ्य इस बात से भी स्वत: उजागर है कि इस धरती पर मात्र भारत ही ऐसा देश है, जिसे आज भी कृषि प्रधान या खेतीबाड़ी प्रधान देश कहा और माना जाता है। लेकिन यही देश जब विदेशी आक्रमणों का शिकार होना आरम्भ हुआ, दूसरे इसकी जनसंख्या बढ़ने लगी, तीसरे समय के परिवर्तन के साथ सिंचाई आदि की व्यवस्था और नवीन उपयोगी औजारों-साधनों का प्रयोग न हो सका, चौथे विदेशी शासकों की सोची-समझी राजनीति और कुचालों का शिकार होकर इसे कई बार अकाल का शिकार होकर भूखों मरना पड़ा। अपना घर-बार त्यागना और अपनों तक को, अपने खेत तक को बेच खाने के लिए बाध्य होते रहना पड़ा है।
उपर्युक्त तथ्यों को दिन के प्रकाश की तरह सामने उजागर रहने पर भी स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हमारे तथाकथित भारतीय पर वस्तुतः पश्चिम के अन्धानुयायी बांध और कल-कारखाने लगाने की होड़ में तो जुट गए पर जिन लोगों ने वह सब करना है, उनका पेट भरने की दिशा में कतई विचार न कर पाए। खेतीबाड़ी को आधुनिक बनाकर हर तरह से उसे बढ़ावा देने के स्थान पर अमेरिका से पी.एल. 480 जैसा समझौता करके उसके बचे-खुचे घटिया अनाज पर निर्भर करने लगे। इसका दुष्परिणाम सन 1965 के भारत-पाक युद्ध के अवसर पर उस समय सामने आया, जब अमेरिका ने अनाज लेकर भारत आ रहे जहाज रास्ते में ही रुकवा दिए। पाकिस्तान के नाज-नखरे उठाकर उसका कटोरा हमेशा हर प्रकार से भरा रखने की चिन्ता करने वाले अमेरिका ने सोचा कि इस तरह भूखों मरने की नौबत पाकर भारत हथियार डाल देगा। लेकिन उस समय के भारतीय धरती से सीधे जुड़े भारतीय प्रधानमन्त्री श्री लालबहादुर शास्त्री ने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा भी ईजाद किया। फलस्वरूप भारत में अनाजों के बारे में आत्मनिर्भर बनने के एक नए युग का सूत्रपात हुआ-हरित क्रान्ति लाने का युग। कहा जा सकता है कि भारत में युद्ध की आग से हरित क्रान्ति लाने का युग आरम्भ हुआ और आज की तरह शीघ्रता से चारों ओर फैलकर उसने देश को हरा-भरा बना भी दिया अर्थात खाद्य अनाजों के बारे में देश को पूर्णतया आत्मनिर्भर कर दिया।
हरित क्रान्ति ने भारत की खाद्य समस्या का समाधान तो किया ही, उसे उगाने वालों के जीवन को भी पूरी तरह से बदलकर रख दिया अर्थात उनकी गरीबी भी दूर कर दी। छोटे-बड़े सभी किसान को समृद्धि और सुख का द्वार देख पाने में सफलता पा सकने वाला बनाया। खेती तथा अनाजों के काम-धंधों से जुड़े अन्य लोगों को भी काफी लाभ पहुँचा। सुख के साधन पाकर किसानों का उत्साह बढ़ा, तो उन्होंने दालें, तिलहन, ईख और हरे चारे आदि को अधिक मात्रा में उगाना आरम्भ किया। इससे इन सब चीजों के अभावों की भी कमी हुई । हरित क्रान्ति लाने में खेतिहर किसानों का हाथ तो है, इसके लिए नए-नए अनुसन्धान और प्रयोग में लगी सरकारी गैर-सरकारी संस्थाओं का भी निश्चय ही बहुत बड़ा हाथ है। उन्होंने उन्नत किस्म के बीजों का विकास तो किया ही है, खेतों की मिट्टी का निरीक्षण-परीक्षण कर यह भी बताया कि कहां की खेती और मिट्टी में कौन-सा बीज बोने से ज्यादा फल तथा लाभ मिल सकता है। नये-नये कीटनाशकों, खादों का उचित प्रयोग करना भी बताया। फलस्वरूप हरित क्रान्ति सम्भव हो। सकी। | इस हरित क्रान्ति को बनाए रखने के लिए इसकी मात्रा बढ़ाने के लिए आज भी कई प्रकार के अनुसन्धात्मक प्रयोग हो रहे हैं। बीजों का विकास जारी है। हाँ, सरकार ने जो गैर समझौते के अन्तर्गत बीजों के पेटेण्टीकरण जैसे कुछ मुद्दे उछाले हैं, इससे विदेशी हस्तक्षेप की सम्भावना बढ़ने की जो बातें राजनेता उछाल रहे हैं, उन सबको निश्चय ही भविष्य के लिए एक शुभ संकेत नहीं कहा जा सकता। यदि अपनेपन की जो स्थिति आज है, वह बनी रही और इसी प्रकार प्रयोग अनुसन्धान होता रहा, तभी हरित क्रान्ति के भविष्य को उज्ज्वल कहा जा सकता है।