अपने विचारों एवं भावों को दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाने का प्रमुख माध्यम है भाषा। प्रत्येक व्यक्ति की अपनी भाषा होती है, जिसके द्वारा वह अन्य व्यक्तियों से सम्पर्क स्थापित करता है। व्यक्ति से समाज बनता है और समाज से राष्ट्र। प्रत्येक राष्ट्र | में विभिन्न भाषाएँ बोली जाती हैं, परन्तु प्रत्येक राष्ट्र की अपनी राष्ट्रभाषा होती है। किसी भी राष्ट्र की भाषा उसकी संस्कृति, विचारों, परम्पराओं की पहचान स्थापित करती है। हमारे देश भारत की राष्ट्रभाषा हिन्दी है।
सन् 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरान्त हिन्दी को हमारे स्वतंत्र भारत की राष्ट्रभाषा घोषित किया गया था। हमारे देश के । संविधान में हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया गया। उस समय विद्वानों, राजनेताओं द्वारा दिया गया यह दर्जा विवाद का विषय नहीं है। गहन विचार-विमर्श के उपरान्त ही हिन्दी को राष्ट्रभाषा का गौरव प्रदान किया गया था। समस्त विद्वानों, राजनेताओं का यही मत था कि हिन्दी बाहुल्य राष्ट्र होने के कारण हिन्दी ही भारत की राष्ट्रभाषा होने का सम्मान प्राप्त करने की अधिकारी हो सकती है। वास्तव में हिन्दी ही भारत के जन-जन की भाषा परन्तु आज हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी को पग-पग पर अपमानित किया जा रहा है। उसे वह सम्मान प्राप्त नहीं है, जो होना चाहिए। यह सत्य है कि हमारे देश को अँग्रेजों की गुलामी से मुक्त होने के लिए लम्बा संघर्ष करना पड़ा। अँग्रेजों के राज्य-काल में स्पष्टतः उनकी अँग्रेजी भाषा का ही प्रशासनिक कार्यों में उपयोग किया जाता था। परन्तु अँग्रेजों की दासता से मुक्त होने के उपरान्त भी अँग्रेजी भाषा से हमारा देश मुक्त नहीं हो सका है। दुखद स्थिति यह है कि हमारे देश में अँग्रेजी भाषा को ही उन्नति की सीढ़ी माना जा रहा है और हिन्दी भाषी व्यक्तियों को पिछड़ा हुआ समझा जाता है।
राष्ट्रभाषा का जितना अपमान हमारे देश में किया जाता है, किसी अन्य देश में अपनी राष्ट्रभाषा को इतना अपमानित नहीं किया जाता। हमारे देश के सामान्य नागरिक ही नहीं, वरन् राजनेता भी विदेशी भाषा अँगेजी को अधिक महत्त्व देते हैं। स्पष्टतः अँग्रेजी भाषा से बैर उचित नहीं है। प्रत्येक भाषा योग्य एवं सम्पन्न होती है। परन्तु अँग्रेजी भाषा के मोह में अपनी सम्पन्न भाषा हिन्दी का तिरस्कार करना उचित नहीं है। इस सम्बन्ध में विदेशी राजनेताओं ने हमारे देश में आकर अपनी राष्ट्रभाषा का उपयोग करके अनेकों बार हमें शिक्षा देने का प्रयत्न किया, परन्तु हम अँग्रेजी के मोह से मुक्त नहीं हो पा रहे। हैं। विदेशी राजनेता अपने ही नहीं, वरन् किसी अन्य देश में जाकर भी अपनी राष्ट्रभाषा का ही उपयोग करते हैं। रूसी राजनेताओं ने अनेक अवसरों पर हमारे देश में आकर रूसी भाषा में ही भाषण दिया है। माननीय अटल बिहारी वाजपेयी ने अवश्य रूस जाकर हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी में भाषण देकर हिन्दी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गौरव प्रदान किया था। जन-जन में राष्ट्रभाषा के प्रति इसी भाव की आवश्यकता है।
किसी भी राष्ट्र की भाषा में ही उस राष्ट्र की मूल संस्कृति विद्यमान रहती है। अपनी संस्कृति को जीवित रखने के लिए सामान्य जन को अपनी राष्ट्रभाषा को व्यवहार में लाना अत्यंत आवश्यक है। इसके अतिरिक्त सरकारी तथा गैरसरकारी स्तर पर राष्ट्रभाषा का अधिकाधिक उपयोग ही राष्ट्रभाषा को उचित सम्मान दिला सकता है। अपनी माता को ‘माता’ कहने में शर्म नहीं होनी चाहिए।