लाल बहादुर शास्त्री - Lal Bahadur Shastri

लाल बहादुर शास्त्री

लाल बहादुर शास्त्री एक साधारण व्यक्ति का साधारण परिस्थितियों और वातावरण में जन्म लेकर भी असाधारणता एवं ‘युग-पुरुष’ के गौरव को प्राप्त कर लेना वास्तव में चमत्कारिक बात कही जा सकती है। इस चमत्कार करने वाले व्यक्ति का नाम है लाल बहादुर शास्त्री। ये पं. जवाहर लाल नेहरू के 27 मई, 1964 के आकस्मिक निधन के उपरान्त सर्वसम्मति से चुने जाने वाले भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे। उन्होंने 9 जून, 1964 ई. को प्रधानमंत्री पद की शपथ ग्रहण की थी।
श्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर सन् 1904 ई. को वाराणसी जिले के छोटे-से ग्राम मुगलसराय में हुआ था। सामान्य शिक्षक का कार्य करने वाले उनके पिता शारदा प्रसाद मात्र डेढ़ वर्ष की आयु में ही उस बालक को अनाथ करके स्वर्ग सिधार गए थे। माता श्रीमती रामदुलारी ने ही ज्यों-त्यों करके इनका लालन-पालन किया था। बड़ी निर्धन एवं कठिन परिस्थितियों में इन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा वाराणसी के एक स्कूल में पूर्ण की थी। गांधीजी के आह्वान पर मात्र सत्रह वर्ष की आयु में ही स्कूली शिक्षा छोड़कर वे स्वाधीनता संग्राम में कूद पड़े थे। ढाई वर्ष की जेल काटने के बाद वे काशी विद्यापीठ में प्रवेश लेकर फिर पढ़ने लगे। यहीं से उन्हें शास्त्री’ की उपाधि प्राप्त हुई और तभी से वे लाल बहादुर शास्त्री कहलाने लगे। यहां पर उन्होंने चार वर्ष तक ‘संस्कृत’ तथा ‘दर्शन’ का अध्ययन किया।

शास्त्रीजी का जीवन बड़ा संघर्षपूर्ण रहा। उनके हृदय में निर्धनों के प्रति एक असीम करुणा भरी थी। हरिजनोद्धार में भी उनका विशेष योगदान रहा। वे सन् 1937 ई. में उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए। परन्तु पहले सन् 1940 में और फिर सन् 1942 में इन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था। वे अपने जीवनकाल में लगभग अठारह बार जेल गए। बाद में सन् 1947 में जब पन्तजी के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश का नया और स्वतंत्र मंत्रिमण्डल गठित हुआ, तब शास्त्रीजी को उसमें गृहमंत्री का पद प्रदान किया गया। । शास्त्रीजी की कर्तव्यनिष्ठा और योग्यता को देखते हुए सन् 1951 में पं. नेहरू ने इन्हें आम चुनावों में कांग्रेस के कार्य के लिए दिल्ली बुलाया। तत्पश्चात् सन् 1956-57 में वे इलाहाबाद के शहरी क्षेत्र से लोकसभा के सदस्य चुने गए। नए मंत्रिमण्डल में नेहरू जी ने उन्हें संचार और परिवहन मंत्री बनाया। श्री शास्त्रीजी एक ईमानदार व परिश्रमी व्यक्ति थे। उनका स्वभाव शांत, गम्भीर, मृद व संकोची था, इसी कारण वे जनता के सच्चे हृदय-सम्राट बने रहे। उनकी अद्वितीय योग्यता और महान् नेतृत्व का परिचय हमें सन् 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय और भी अधिक मिला। वे अनोखी सूझबूझ के व्यक्ति थे। उनके सफल नेतृत्व में भारत ने पाकिस्तान को पराजित किया। इस घटना से जनता का शास्त्रीजी के प्रति विश्वास बढ़ा और वे जन-जन के हृदय में समा गए। वास्तव में वे ऐसे युग पुरुष थे जिन्होंने प्रत्येक क्षेत्र में अपनी कुशलता की छाप छोड़ी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *