जनसंख्या : समस्या और समाधान - Population Problem and Solution

जनसंख्या : समस्या और समाधान

किसी भी समाज अथवा राष्ट्र की शक्ति उसके जन-समुदाय से बनती है। जन-समुदाय बुद्धिमत्ता एवं परस्पर सहयोग से राष्ट्र को प्रगति के पथ पर आगे ले जाता है। जन-शक्ति के अभाव में कोई भी राष्ट्र उन्नति नहीं कर सकता। परन्तु किसी भी राष्ट्र के समुचित विकास के लिए उसकी जन-संख्या का नियंत्रित होना आवश्यक है। राष्ट्र की अर्थव्यस्था और उसके संसाधनों के अनुपात में संतुलित जनसंख्या होगी, तभी राष्ट्र खुशहाल रह सकेगा, अन्यथा अधिक जनसंख्या एक विकराल समस्या बन जाती है। किसी भी देश को उपलब्ध साधनों के अनुपात में उसकी जनसंख्या होगी, तभी उसका भरण-पोषण किया जा सकेगा, उसके लिए शिक्षा की व्यवस्था तथा उसकी अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकेगी। साधनों से अधिक जनसंख्या के लिए केवल अभाव ही उत्पन्न होंगे। एक परिवार में यदि आय एवं साधनों के अनुपात में अधिक सदस्य होंगे, तो उन सभी को न तो भरपेट भोजन मिल सकेगा न ही तन ढकने को कपड़े और रहने को पर्याप्त स्थान। ऐसे परिवार को दड़बेनुमा मकानों में अभावों जीवन व्यतीत करने को बाध्य होना पड़ेगा। नारकीय जीवन व्यतीत कर रहे ऐसे परिवार के सभी सदस्य न शिक्षा पर अधिक ध्यान दे पाएंगे, न ही विकास की दिशा में आगे बढ़ पाएंगे। ऐसे परिवार के सदस्यों को या तो मेहनत-मजदूरी के द्वारा दिन-रात खून-पसीना बहाकरं गुलामों के समान जीवन व्यतीत करना पड़ता है या वे जीवन-यापन के लिए अपराध के मार्ग पर चल पड़ते हैं।

एक परिवार के समान राष्ट्र भी एक बड़ा परिवार है। इसमें अधिक जनसंख्या होगी, तो सभी के लिए आवश्यक साधन उपलब्ध कराना सरकार के लिए सम्भव नहीं हो सकेगा। फलतः भुखमरी, बेरोजगारी बढ़ेगी। अशिक्षा के कारण अज्ञानता बढ़ेगी अपराधों में वृद्धि होगी। सभी के लिए चिकित्सा के पर्याप्त साधन न होने के कारण बीमारियाँ बढ़ेगी और राष्ट्र की जन-शक्ति क्षीण होने लगेगी। वास्तव में किसी भी देश में जनसंख्या वृद्धि एक महामारी के समान उसे देश के लिए चुनौती बनकर उभरती है।

जनसंख्या वृद्धि पर काबू पाना किसी भी सरकार के लिए सरल नहीं होता। हमारे देश भारत की जनसंख्या सन् 1947 में लगभग तैंतीस करोड़ थी। आज यह एक अरब ही संख्या को पार कर चुकी है। सन् 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरान्त राष्ट्र निर्माण के लिए हमारे सामने अनेक चुनौतियाँ थीं। जनसंख्या वृद्धि एक नयी चुनौती बनकर हमारे सामने आई और आज भी इस पर काबू पाने में सरकार को कठिनाई हो रही है। जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम अवश्य देश को भोगने पड़ रहे हैं। अधिक जनसंख्या के कारण बेरोजगारी की विकराल समस्या उत्पन्न हो गयी है। लोगों के आवास के लिए कृषि योग्य भूमि और जंगलों को उजाड़ा जा रहा है। विशाल भारत कहे जाने वाले हमारे देश में आज लोगों को रहने के लिए पर्याप्त स्थान उपलब्ध नहीं है। आधा दर्जन से भी अधिक सदस्यों के परिवार एक-एक कमरे में घुटनभरा जीवन व्यतीत करने को विवश हैं। महानगरों में स्लम बस्तियों ने नारकीय वातावरण उत्पन्न किया हुआ है। बस, रेल आदि में तिल धरने की जगह नहीं मिलती। यह सब जनसंख्या वृद्धि के कारण ही हो रहा है। हमारे देश में जनसंख्या वृद्धि का प्रमुख कारण अज्ञानता है। अशिक्षा, अज्ञानता के कारण अधिकांश माता-पिता नियोजित परिवार के महत्व को समझने का प्रयास नहीं करते। अंधविश्वास के कारण भी कुछ लोग बच्चों को भगवान की देन मानते हैं। परिवार नियोजन के कार्यकर्ताओं को हमारे देश में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है। परन्तु जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए हमारे देश की सरकार को कड़े कानून बनाने की आवश्यकता है। शिक्षा के प्रचार-प्रसार के द्वारा भी जनसंख्या को नियंत्रित किया जा सकता है। परन्तु जब समस्या बेकाबू हो जाए तो सख्त निर्णय लेने ही पड़ते हैं। परिवार में दो से अधिक बच्चों वाले परिवार को सरकारी सुविधाओं से वंचित कर देना चाहिए। परिवार नियोजन के उपायों पर सरकार को विशेष बल देना चाहिए। पुरुष अथवा महिला नसबंदी ऑपरेशन को बढ़ावा देना चाहिए। जनसंख्या वृद्धि रोकने के लिए सरकार को यथासम्भव प्रयास करने चाहिएँ, अन्यथा भविष्य में इसके परिणाम अधिक विस्फोटक होंगे।

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