इन्दिरा गांधी के आकस्मिक निधन से भारत को एक ऐसा झटका लगा था, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। जब रक्षक ही भक्षक बन जाए, तो फिर किस पर विश्वास किया जा सकता है। इन्दिरा जी के साथ ऐसा ही हुआ। जिसे वे अपना विश्वासपात्र समझती थीं। उसी की गोली ने उनके प्राण ले लिए। देश में एक बवंडर उठा था। उस समय यह भी तत्काल तय करना आसान नहीं था कि प्रधानमंत्री कौन बने? शायद कांग्रेसी नेतृत्व एकमत नहीं हो पा रहा था। अन्ततः निर्णय हुआ, और तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह ने, श्रीमती इन्दिरा गांधी के एकमात्र पुत्र श्री राजीव गांधी को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई। इस प्रकार संकट की दुःखद घड़ी में अस्थिरता के बादल छंट गए। इसे दैवयोग कहें, लोकप्रियता कहें अथवा राजनीतिक खेल कहें कि एक ही परिवार में तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने योग्य व्यक्ति का चयन किया गया।
श्री राजीव गांधी राजनीति में आने से पहले एक पायलट थे तथा अपना एकान्तिक, सुखद पारिवारिक जीवन जी रहे थे। संजय गांधी का हवाई दुर्घटना से आकस्मिक निधन न हुआ होता, तो शायद वे राजनीति की तरफ मुंह भी नहीं करते। किन्तु – मेरे मन कुछ और है विधना के कुछ और – यह कहावत पूरी तरह राजीव गांधी पर उनके राजनीति में आने से चरितार्थ हुई।
राजीव गांधी का जन्म 20 अगस्त, 1944 को मुंबई में हुआ था। इनके पिता श्री फिरोज गांधी एक सैद्धान्तिक तथा निष्काम देश-सेवक थे, जो प्रायः रायबरेली जनपद से लोकसभा की सदस्यता के लिए खड़े होते थे और हमेशा विजयी भी होते थे। राजीव गांधी की आरंभिक शिक्षा, दिल्ली, देहरादून तथा लंदन में हुई थी। सोनिया जी एक इटैलियन तरुणी थीं, उनसे राजीव गांधी की मुलाकात लंदन के कॉलेज में ही हुई थी, जो धीरे-धीरे मैत्री और फिर वैवाहिक बंधन में परिवर्तित हो गई।
राजीव गांधी अपने भाई के मृत्यु के पश्चात् 2 फरवरी, 1983 को कांग्रेस के जनरल सेक्रेटरी बने थे। कुछ समय पश्चात्, 31 अक्टूबर, 1984 को श्रीमती इन्दिरा गांधी की मृत्यु अविश्वासी अंगरक्षक की गोली से हो जाने पर इन्हें प्रधानमंत्री चुना गया। सन् 1984 में हुए लोकसभा चुनाव में अमेठी क्षेत्र से ये 2,37,000 वोटों से विजयी हुए थे।
राजीव गांधी पंजाब का मसला हल करना चाहते थे। उन्होंने 24 जुलाई, 1985 को एक समझौते पर हस्ताक्षर भी किए थे, ताकि पंजाब में अमन तथा कानून व्यवस्था मजबूत की जा सके। राजीव गांधी 4 अगस्त, 1986 को कॉमनवेल्थ की उच्चस्तरीय सभा में भाग लेने के लिए लंदन गए थे। कॉमनवेल्थ के संबंध में उनके विचार बिलकुल स्पष्ट थे। वे चाहते थे कि सदस्य देश दुरंगी चालें चलना छोड़कर आपसी मैत्रीभाव से रहें तथा यथासंभव एक-दूसरे की मदद करें। राजीव गांधी अपनी रीति-नीतियों को जनमानस तक पहुंचाना चाहते थे। इसका एक प्रमुख कारण यह भी था कि उनके विरोधी श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने उन पर तथा उनकी पार्टी के कुछ सदस्यों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था कि सत्ताधारियों ने बोफोर्स तोपों की खरीद में कहीं-न-कहीं घोटाला किया है और इसकी जांच की जानी चाहिए। राजीव गांधी इस कथन का प्रतिवाद करते रहे तथा सारे भारत का दौरा करके वे लोगों को असलियत जानने और समझने के लिए आमंत्रित करते थे। ऐसी ही एक सभा में तमिलनाडु के श्रीपेरुम्बुदूर में आयोजित की जाने वाली थी। राजीव गांधी इस सभा में दिनांक 21 मई, 1991 को अपराह्न 2 बजे पहुंचे, तभी एक आतंकवादी महिला जो विस्फोटकों से सुसज्जित थी, माला पहनाने के बहाने उन तक पहुंच गई। उसी समय एक भयंकर विस्फोट हुआ और राजीव गांधी सदा-सदा के लिए भारतीय जनता से छीन लिए गए। राष्ट्र स्तब्ध था, एक नहीं नेहरू परिवार के तीन-तीन व्यक्ति किसी न किसी दुर्घटना के शिकार हुए थे।