डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन् भारत के उन गिने-चुने राष्ट्रपतियों में से एक थे, जिन्होंने अपनी विद्वता, योग्यता तथा वाक्पटुता के कारण सारे संसार में प्रसिद्धि प्राप्त की थी। उनकी गणना आधुनिक युग के विशिष्ट दार्शनिकों में की जाती है। इनका जन्म 5 सितम्बर, 1888 को मद्रास से थोड़ी दूर स्थित तिरुत्तनी नामक कस्बे में हुआ था। आरंभिक शिक्षा-दीक्षा स्थानीय पाठशाला में हुई तथा संस्कृत, तमिल के साथ-साथ आपने कालान्तर में अंग्रेजी साहित्य का गहन अध्ययन किया था। शिक्षा-दीक्षा मिशनरी स्कूलों में होने के करण बालक राधाकृष्णन् को न्यू टेस्टामेन्ट (बाइबिल) की अच्छी जानकारी हो गई थी, किन्तु तत्कालीन अंग्रेजी स्कूलों में हिन्दू धर्म की आलोचना भी कम नहीं होती थी, अतः प्रतिक्रियास्वरूप शुरू से ही राधाकृष्णन् का अनुराग भारतीय धर्म और संस्कृति की ओर बढ़ने लगा था।
| राधाकृष्णनजी ने सन् 1908 में मद्रास विश्वविद्यालय से एम. ए. (दर्शन) की परीक्षा उत्तीर्ण की। एम. ए. के लिए आपने एक शोध-पत्र ‘वेदान्त की नीति’ पर लिखा था। उस समय उनकी आयु मात्र 20 वर्ष की थी। उस शोध-पत्र से उनकी प्रवृत्ति का भली-भांति पता चल गया था और तत्कालीन प्रोफेसर ए. जी. हाँग उससे काफी सन्तुष्ट हुए थे।
सन् 1909 में राधाकृष्णन् की नियुक्ति मद्रास प्रेसीडेन्सी कॉलेज के दर्शन विभाग में प्रवक्ता के पद पर हुई थी।
डॉ. राधाकृष्णन् मद्रास प्रेसीडेन्सी कॉलेज में करीब 8 वर्षों तक प्रवक्ता रहे। इसके बाद वे मैसूर विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर नियुक्त हुए। यहां भी इनका गहन अध्ययन जारी रहा। तीन वर्ष तक मैसूर में रहकर राधाकृष्णन्जी सन् 1921 में कलकत्ता विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर होकर आ गए। | डॉ. राधाकृष्णन् की कृतियों, उनके निबंधों आदि की वजह से उनकी ख्याति विदेशों में भी फैल चुकी थी। अतः ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय, लन्दन ने इन्हें अपने यहां बुलाकर पूर्व धर्मों तथा नीतिशास्त्र का प्रोफेसर नियुक्त किया। यह गरिमामय पद पाने वाले सम्भवतः प्रथम भारतीय थे। तीन वर्ष तक लंदन में रहने के पश्चात् महामना मालवीय के विशेष आग्रह पर आपने सन् 1989 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के उपकुलपति का पदभार संभाला। आपकी प्रतिभा, विद्वता तथा देश-सेवा को ध्यान में रखकर सन् 1954 में आपको सरकार ने भारत रत्न’ की सर्वोच्च उपाधि देकर सम्मानित किया। डॉ. राधाकृष्णन् का विवाह सन् 1906 में मात्र 18 वर्ष की उम्र में हुआ था। आपकी धर्मपत्नी, जो निरंतर आपकी छाया के समान साथ रहीं, उनका निधन सन् 1956 में हो गया। यह एक धक्का था, जिसे राष्ट्र को समर्पित राधाकृष्णन ने हिम्मत से सहा। | मनस्वी राधाकृष्णन्जी का यश निरंतर फैलता जा रहा था। पं. जवाहर लाल नेहरू आप के गुणों, सरलता या निश्छलता से काफी प्रभावित थे। सन् 1962 में आप भारत के राष्ट्रपति बने, और इस प्रकार प्रेसीडेन्सी कॉलेज का एक अध्यापक अपनी योग्यता, कार्यकुशलता तथा विद्वता के कारण देश के सर्वोच्च पद पर प्रतिष्ठित हुआ।
17 अप्रैल, 1975 को इस महा-मनस्वी की मृत्यु हुई थी। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन् | अपनी विद्वता, कर्मठता तथा भारतीय संस्कृति के सच्चे उपासक के रूप में सदैव स्मरणीय बने रहेंगे।