भारतीय राजनीति में लौह पुरुष के नाम से प्रसिद्ध ‘भारत रत्न’ सरदार वल्लभभाई पटेल अद्वितीय महापुरुष थे, जिनकी रीति-नीति, प्रबंध-पटुता, प्रशासनिक क्षमता एवं दूरदर्शिता को यदि उनके कार्यकाल के दौरान स्वीकार कर लिया जाता, तो शायद भारत को इतनी परेशानी न उठानी पड़ती। पाकिस्तानी उत्पात, सीमाओं की अस्थिरता, मैकमोहन लाइन का चीन द्वारा न माना जाना, तिब्बत का चीन के कब्जे में फंसा होना, कश्मीर की दुर्दशा, आतंकवाद का फैलाव आदि ऐसी जटिलताएं हैं, जिन्होंने भारत को चीन जैसी महाशक्ति बनने से रोका है। काश! नेहरूजी तथा उनकी सरकार ने स्वतंत्रता के आरंभिक दिनों में महापुरुष पटेल की बात मान ली होती, तो कश्मीर का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तानी कब्जे में न होता। यह सरदार पटेल के राजनीतिक कौशल का ही नतीजा था कि लगभग 600 देशी रियासतों को उन्होंने अपनी कूटनीति से ‘भारतीय संघ’ में मिलाया। अंग्रेज भारत के भीतर ही छोटे-छोटे स्वतंत्र राज्य बना गए थे और उनको स्वायत्तता दे दी गई थी। कुछ अपने सिक्के भी चलाते थे तथा आन्तरिक यातायात के साधन भी खुद जुटाते थे। ग्वालियर, जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, अलवर, ट्रावनकोर, मैसूर आदि ऐसे ही राज्य थे, जिनके शासक स्वयं को महाराजा लिखते थे और अंग्रेज भी अपने इन एजेन्टों को ‘हिज हाइनेस’ की पदवी से सम्बोधित करते थे। 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्रता तो मिली, किन्तु रजवाड़ों की वजह से देश फिर भी अलगाववाद के कुचक्र में फंसा हुआ था। पटेल ने बुद्धिमानी की तथा सभी देशी नरेशों से कहा कि वे भारत संघ में स्वेच्छा से शामिल हो जाएँ। यदि वे ऐसा करते हैं, तो उन्हें प्रति वर्ष ‘प्रिवीपर्स’ के नाम से कि अच्छी धनराशि मिलती रहेगी और यदि वे पसन्द करेंगे, तो उन्हें अपने सम्बन्धित राज्य का राज्य-प्रमुख भी बनाया जाएगा। कई महाराजाओं ने इसे स्वेच्छा से स्वीकार कर लिया था और सरकार ने भी उनके साथ उदारता से व्यवहार किया था। लेकिन निजाम जैसे कुछ लोगों ने रजाकर आदि संगठित करके सरकार से लोहा लेने की ठानी थी, जिन्हें दूरदर्शी, सशक्त उपप्रष्ट रानमंत्री श्री पटेल ने विफल कर दिया था।
सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, 1875 में गुजरात के करमसद नामक स्थान में एक सम्भ्रान्त कृषक परिवार में हुआ था। आपके पिता श्री झाबेरभाई पटेल महारानी लक्ष्मीबाई की सेना के सैनिक रह चुके थे और पूर्ण निर्भीक, स्वाभिमानी राष्ट्रभक्त थे। षिता की निर्भीकता तथा करुणामयी माँ की धार्मिकता, दोनों ही गुण सरदार वल्लभभाई पटेल में विद्यमान थे। आपके बड़े भाई श्री विठ्ठल भाई पटेल, जिन्होंने स्वयं इंग्लैण्ड जाकर बैरिस्ट्री पढ़ी थी, विदेश से वापस आकर अपनी वकालत अच्छी तरह जमा ली और इसके पश्चात् वल्लभभाई पटेल को विलायत बार-एट-लॉ करने भेजा। पूरी मेहनत से आपने इंग्लैण्ड में रहकर अपनी शिक्षा पूरी की और परीक्षा में प्रथम श्रेणी लेकर स्वदेश वापस लौटे। आपने वकालत करने के लिए अहमदाबाद को अपना व्यवसाय केन्द्र चुना था।
श्री विठ्ठलभाई एवं श्री वल्लभभाई पटेल दोनों में ही राष्ट्र के प्रति सच्ची श्रद्धा थी। इसीलिए वे अंग्रेजी जमाने में अपनी जमी जमाई हजारों रुपए महीने की आमदनी छोड़कर स्वदेशी आन्दोलन में कूद पड़े। इसे देश का दुर्भाग्य ही कहना चाहिए कि उप प्रधानमंत्री के रूप में तथा एक दूरदर्शी स्वराष्ट्र मंत्री के रूप में भारत को उनकी सेवाएँ लंबे समय तक सुलभ न हो सकीं। स्वतंत्रता के अभी चार वर्ष भी पूरे नहीं हुए थे कि क्रूर काल ने उन्हें हम सभी से छीन लिया। पंद्रह 15 दिसम्बर, 1950 को उन्होंने सदा के लिए हम सबसे विदा ले ली।