जहाँ चाह वहाँ राह - Where There is Will There is Away

जहाँ चाह वहाँ राह – Where there’s a will there’s a way

इस संसार में मनुष्य नित नये-नये कार्य आरम्भ करता है। उसके हृदय में नये-नये स्वप्न जन्म लेते हैं, नयी-नयी इच्छाएँ उत्पन्न होती हैं। परन्तु प्रत्येक व्यक्ति को अपने कार्य में सफलता प्राप्त नहीं होती। वास्तव में किसी भी कार्य में सफलता के लिए दृढ़ इच्छा-शक्ति का होना आवश्यक है। केवल इच्छा उत्पन्न होना पर्याप्त नहीं है। किसी भी इच्छा की पूर्ति इच्छा-शक्ति पर अधिक निर्भर करती है। प्रबल इच्छा ही कार्य करने की प्रेरणा देती है। प्रबल इच्छा ही अथक परिश्रम के लिए उत्साहित करती है और मनुष्य नयी-नयी राह की खोज करता रहता है। इसीलिए कहा गया है – जहाँ चाह वहाँ राह।

किसी भी कार्य को करने के लिए सर्वप्रथम उस कार्य के प्रति हृदय में चाह उत्पन्न होना आवश्यक है। बिना इच्छा के किसी कार्य को हाथ में लेना व्यर्थ है। इस पृथ्वी पर मनुष्य अनेक कार्यों के प्रति आकर्षित होता है। सर्वप्रथम उसकी इच्छा होती है कि वह सुख-समृद्धि से सम्पन्न जीवन व्यतीत करे। परन्तु प्रत्येक व्यक्ति को सुख-समृद्धि प्राप्त नहीं होती और ज्यादातर लोग अभावों में जीवन व्यतीत करते हैं। ऐसे लोग सुख-समृद्धि की कामना तो करते हैं, परन्तु अधिक परिश्रम नहीं करते। सत्य यह है कि इस संसार में अपनी इच्छा अनुसार सुख प्राप्त करना सरल नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति अपने मनचाहे कार्य-क्षेत्र में सफलता प्राप्त करना चाहता है। कोई डॉक्टर बनना चाहता है, कोई इंजीनियर। किसी की कलाकार बनने की चाह होती है, तो कोई शिक्षक बनना चाहता है। परन्तु अपने मनचाहे कार्य-क्षेत्र में सफलता प्राप्त करना दृढ़ इच्छा-शक्ति एवं परिश्रम पर निर्भर करता है। दृढ़ इच्छा के साथ निरन्तर परिश्रम से ही नये-नये द्वार खुलते हैं।

इस संसार में सफलता की चाह सभी को होती है। कुछ लोग सफलता के लिए प्रयत्न भी करते हैं। परन्तु दृढ़ इच्छा शक्ति न होने के कारण वे परिश्रम से शीघ्र ही घबरा जाते हैं और अपना कार्य अधूरा छोड़ देते हैं। ऐसे लोग जीवन को सरल मानकर प्रयत्न करते हैं और जीवन में आने वाली कठिनाइयों का मुकाबला नहीं कर पाते। जीवन की कठिनाइयों के सामने उनकी चाह दम तोड़ने लगती है। ऐसे लोगों को जीवन में कदम-कदम पर असफलता का मुँह देखना पड़ता है। वास्तव में उनकी चाह प्रबल नहीं होती। वे स्वयं मान लेते हैं कि एक कार्य में सफलता नहीं मिली, तो कोई दूसरा कार्य कर लेंगे।

वास्तव में प्रबल इच्छा ही सफलता के द्वार खोलने का कार्य करती है। प्रबल इच्छा व्यक्ति को कभी सन्तुष्ट होकर नहीं बैठने देती। ऐसे व्यक्ति के लिए उसकी चाह उसके जीवन का लक्ष्य होती है, जिसे प्राप्त करने के लिए वह अथक परिश्रम से भी नहीं घबराता। विषम परिस्थितियाँ अथवा असफलताएँ भी ऐसे व्यक्ति को विचलित नहीं कर पातीं। अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ऐसा व्यक्ति एक द्वार बन्द होने पर तत्काल दूसरे द्वार की खोज करने लगता है। वह जीवन के अनुभव से सीखता है

और अधिक उत्साह से पुनः प्रयत्न करता है। ऐसे ही व्यक्तियों के लिए कहा गया है कि जहाँ चाह वहाँ राह। प्रबल इच्छा व्यक्ति को निरन्तर संघर्ष करने की प्रेरणा देती है और अंततः ऐसे ही व्यक्ति जीवन में मनचाहे क्षेत्र में सफलता प्राप्त करते हैं।

डॉक्टर हो या इंजीनियर, कलाकार हों या शिक्षक, किसी भी कार्य क्षेत्र में निरन्तर अभ्यास अथवा प्रशिक्षण के उपरान्त ही व्यक्ति योग्यता प्राप्त कर पाता है। योग्यता प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को अनेक कठिनाइयों का भी सामना करना पड़ता है। उसे दिन-रात परिश्रम करने के उपरान्त ही योग्यता प्राप्त हो पाती है। परन्तु दिन-रात परिश्रम करने की प्रेरणा उसे प्रबल चाह से ही मिलती है। यह चाह ही अन्ततः व्यक्ति को सफलता के द्वार पर ले जाती है।

वास्तव में परिश्रमी व्यक्ति को सभी सहयोग देते हैं। उसकी योग्यता एवं चाहत लोगों को प्रभावित करती है। ऐसे व्यक्ति की सफलता की कामना सगे-सम्बन्धी ही नहीं, बल्कि अन्य लोग भी करते हैं। सफलता की चाह में व्यक्ति स्वयं ही अपरिचित लोगों को भी अपना बना लेता है। उसकी चाह उसे प्रत्येक व्यक्ति का सहयोग लेने के लिए प्रेरित करती है। इस प्रकार निरन्तर परिश्रम करने और अन्य लोगों के सहयोग से व्यक्ति अपनी चाह पूर्ण करने में सफल होता है।

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