पांडव बड़े ही सुशील और सत्प्रवृत्ति के थे |उनकी दृष्टि धन और राज्य की ओर अधिक नहीं थी | वे धन और राज्य से धर्म को अधिक महत्व देते थे | यद्यपि दुर्योधन उनके प्रति वैर भाव रखता था, किंतु वे दुर्योधन को भी अपना भाई ही समझते थे | जनता में कौरवों की उपेक्षा पांडवों का बड़ा नाम था | इसका कारण यह था कि वे बड़े शूरवीर थे | जनता उन पर गर्व करती थी और उन्हें देखने के लिए उत्कंठित रहा करती थी |
बसंत पंचमी का पर्व था | पांडव और कौरव राजकुमारों के शौर्य की परीक्षा का दिन था | महीनों पहले घोषणा हुई थी | हस्तिनापुर के निवासी बड़ी उत्सुकता के साथ उस दिन की प्रतीक्षा कर रहे थे | हस्तिनापुर के एक विशाल प्रांगण में शौर्य-परीक्षा की आयोजना की गई थी | प्रांगण को चारों ओर से बाड़ों के द्वारा घेर दिया गया था | बीच-बीच में दर्शकों के बैठने के लिए छोटे-बड़े मंच भी बनाए गए थे | राजकुटुंब के सदस्यों और सम्मानित नागरिकों के बैठने के लिए विशेष प्रकार के मंच बनाए गए थे | घेरे हुए मैदान को झंडों, पताकाओं, बंदनवारों और पुष्प-मालाओं से सुसज्जित किया गया था | तरह-तरह के बाजे और ध्वनियां भी बजाई जा रही थीं | सारा मैदान दर्शकों से भरा था | मंचों पर सुसज्जित वेशभूषा में नागरिक और राजकुटुंब के सदस्य बैठे हुए थे | स्त्रियों के मंच पर राजकुटुंब की स्त्रियों के साथ कुंती और गांधारी भी विराजमान थीं | साधारण दर्शकों में अधिरथ भी अपने पुत्र कर्ण के साथ मौजूद था | सबको आंखें मैदान के मध्य भाग की ओर लगी हुई थीं |
शंख ध्वनि के साथ शौर्य-परीक्षा आरंभ हुई | कौरव और पांडव राजकुमार मध्य भाग में पहुंचकर अपना कौशल दिखाने लगे | जब भीम का नाम लिया गया, तो करतल ध्वनि की गड़गड़ाहट हो उठी | विशालकाय भीम हाथ में गदा लिए हुई मध्यम भाग में उपस्थित हुआ | वह नंगे बदन था, पीतवर्ण का लंगोट धारण किए हुए था | उसकी बलिष्ठ भुजाएं थीं, चौड़ी छाती थी और तेजोमय मुखमण्डल था | वह देखने में पर्वत के सदृश मालूम हो रहा था |
भीम प्रांगण के मध्य में पहुंचकर गदा युद्ध का प्रदर्शन करने लगा | उसके कौशल को देखकर जनता मुग्ध हो उठी | बार-बार तालियां बजा-बजाकर उसका अभिनंदन करने लगी | भीम जब अपने कौशल का प्रदर्शन कर चुका तो घोषणा हुई – क्या कोई राजकुमार गदायुद्ध में भीम का सामना कर सकता है ?
घोषणा होते ही दुर्योधन गदा लिए हुए भीम के सामने जाकर खड़ा हो गया | उसका आकार-प्रकार भी भीम के ही समान था | वह लाल रंग का लंगोट धारण किए हुए था | भीम और दुर्योधन में गदायुद्ध होने लगा | दोनों के कौशल को देखकर जनता वाह-वाह करने लगी, रह-रहकर तालियां बजाने लगी | पहले तो दोनों अपना-अपना कौशल दिखाते रहे, पर बाद में उनके भीतर क्रोध पैदा हो गया | दोनों गदा फेंककर मल्लयुद्ध करने लगे, तो द्रोनाचार्य ने आज्ञा देकर उन्हें पृथक करा दिया | यद्यपि निर्णय नहीं हो सका कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है किंतु यह बात तो हुई ही कि दोनों के कौशल को देखकर जनता मुग्ध हो उठी थी |
भीम और दुर्योधन के पश्चात अर्जुन के नाम की घोषणा हुई | घोषणा होते ही वह धनुष-बाण लेकर प्रांगण के मध्य के उपस्थित हो गया | उसका सुंदर और कांतिमय शरीर था | उसके सिर पर घुंघराले बाल थे | उसके अंग-अंग से तेज और शौर्य टपक रहा था | वह भी पीतवर्ण की काछनी काछे हुए था, देखने में इंद्र-सा ज्ञात हो रहा था |
अर्जुन प्रांगण के मध्य में खड़ा होकर अपना कौशल दिखाने लगा | उसके कौशल को देखकर जनता मुग्ध हो गई | अर्जुन जब अपना कौशल दिखा चुका, तो फिर घोषणा हुई – क्या कोई राजकुमार अर्जुन की बराबरी कर सकता है ?
घोषणा सुनकर चारों ओर सन्नाटा छा गया | कोई भी अर्जुन का मुकाबला करने के लिए खड़ा नहीं हुआ | जब कोई आगे नहीं आया, तो फिर घोषणा हुई – क्या यह समझा जाए कि अर्जुन का मुकाबला करने वाला कोई नहीं है ?
है क्यों नहीं – एक ओर से किसी का कंठ स्वर सुनाई पड़ा | और उसके साथ ही एक तेजस्वी युवक एक ओर से निकलकर अर्जुन के सामने जाकर खड़ा हो गया | उसके हाथों में धनुष-बाण था | वह सूर्य के समान तेजवान ज्ञात हो रहा था | युवक को देखकर कृपाचार्य बोल उठे – यह तो अधिरथ सारथि का बेटा कर्ण है | यह अर्जुन का मुकाबला कैसे कर सकता है ? यह कोई राजकुमार तो है नहीं |
कृपाचार्य के स्वर को सुनकर चारों ओर सन्नाटा छा गया | कुछ क्षणों के पश्चात सहसा कोई बोल उठा – राजकुमार नहीं है तो क्या हुआ, मनुष्य तो है | बोलने वाला स्वयं दुर्योधन था | वह अपने स्थान पर तन कर खड़ा हो गया |
कृपाचार्य फिर बोले, “किंतु इस शौर्य-परीक्षा में राजकुमारों को छोड़कर कोई भाग नहीं ले सकता |”
दुर्योधन फिर बोला, “यदि यह बात है, तो मैं अभी कर्ण को राजपद पर प्रतिष्ठित किए देता हूं |”
दुर्योधन ने कर्ण के पास जाकर अपने अंगूठे को चीरकर रक्त निकाला | रक्त से कर्ण का तिलक करते हुए उसने कहा, “मैं कर्ण को अंग देश का राजा बना रहा हूं | यह आज से अधिरथ का पुत्र नहीं, अंग देश का राजा है | अंग देश के राजा के रूप में यह अर्जुन का मुकाबला कर सकता है |”
दुर्योधन की बात को सुनकर भीम उठकर खड़ा हो गया | वह व्यंग भरे स्वर में बोला, “कर्ण को अंग देश का राजा तुम कैसे बना सकते हो ? तुम हस्तिनापुर के राजा तो हो नहीं | राजा तो महाराज धृतराष्ट्र हैं |”
भीम के कथन को सुनकर एकत्र जनसमूह में बड़ा शोरगुल पैदा हुआ | उस शोरगुल से ऐसा प्रतीत होने लगा कि अगर समारोह को समाप्त नहीं किया जाता, तो संघर्ष हो जाएगा |
फलत: द्रोणाचार्य ने उठकर समारोह को समाप्त किए जाने की घोषणा कर दी | अर्जुन और कर्ण का मुकाबला हुए बिना ही समारोह तो समाप्त हो गया, पर उसी दिन से पांडवों और कौरवों में शत्रुता की आग भी जल उठी | जब तक महाभारत के युद्ध की आग में सबकुछ जलकर समाप्त नहीं हो गया, तब तक वह आग जलती रही, बराबर जलती रही |