वह तपस्वी पांडवों का भाई अर्जुन था | वेदव्यास की सलाह से वह दिव्यास्त्र प्राप्त करने के लिए शिवजी को प्रसन्न करने की चेष्टा कर रहा था; क्योंकि छली, षड्यंत्रकारी और पापी कौरवों को हराने के लिए शिवजी की शरण में जाने के अतिरिक्त बेसहारा पाण्डवों के पास अब कोई चारा नहीं रह गया था |
अर्जुन के तप के तेज से आसपास की धरती जलने लगी | झोपड़ियों में रहने वाले ऋषि-मुनि घबरा उठे | वे अर्जुन को समझाने लगे कि वह ऐसा कठिन तप न करे, पर अर्जुन ने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया | ध्यान भी वह कैसे दे सकता था | उसे तो अधर्म और अन्याय को मिटाने के लिए शिवजी से दिव्यास्त्र प्राप्त करने थे | अत: वह तप में लगा रहा |
अर्जुन ने जब ऋषियों की बात पर ध्यान नहीं दिया तो ऋषिगण सामूहिक रूप से शिवजी से प्रार्थना करने लगे, “प्रभो ! अर्जुन के तप से धरती जल रही है | अगर आप उसे रोकेंगे नहीं तो इस वन में हम लोगों का रहना कठिन हो जाएगा |”
उसी समय आकाशवाणी हुई, “ऋषियों ! घबराओ नहीं | अर्जुन पूर्वजन्म का देवता है | उसके तप से तुम्हारा अनिष्ट नहीं होगा | वह मुझसे दिव्यास्त्र लेना चाहता है | मैं उसके तप से प्रसन्न हूं |”
यह वाणी स्वयं भगवान आशुतोष की थी | अर्जुन बड़ी श्रद्धा से उनकी आराधना में लगा रहा, उन्हें प्रसन्न करने के लिए तप करता रहा | दोपहर का समय था | अर्जुन अपनी पूजा की माला भगवान के चरणों पर चढ़ रहा था | सहसा उसे एक शूकर दिखाई पड़ा, जो कहीं से निकलकर उसी ओर आ रहा था | अर्जुन ने झट अपना धनुष-बाण उठाया और धनुष पर बाण चढ़ाकर शूकर पर चला दिया | बाण शूकर की छाती में लगा | वह धरती पर गिरकर, कुछ देर तक तड़पकर सदा के लिए सो गया | अर्जुन के बाण के साथ ही साथ शूकर की छाती में एक और भी बाण लगा था | वह बाण एक किरात का था, जो दूर से शूकर का पीछा करता हुआ आ रहा था |
शूकर जब धरती पर गिरा, तब अर्जुन और किरात दोनों शूकर के पास जा पहुंचे | अर्जुन ने कहा, “शूकर की मृत्यु उसके बाण से हुई है |” पर किरात ने उसकी बात का विरोध किया | उसने कहा, “नहीं, शूकर की मृत्यु अर्जुन के बाण से नहीं, उसके बाण से हुई है |” शूकर की मृत्यु को लेकर अर्जुन और किरात में विवाद होने लगा | दोनों ही एक दूसरे की वीरता को ललकारने लगे | बातों ही बातों में अर्जुन का क्रोध भड़क उठा | वह किरात पर बाण चलाने लगा |
अर्जुन ने किरात पर कई बाण चलाए, पर उसके सभी बाण किरात के शरीर से फल की तरह लग-लग कर नीचे गिर पड़े | वह विस्मित हो उठा, पर साथ ही और भी अधिक क्रुद्ध हो उठा | वह किरात को युद्ध के लिए ललकार कर उस पर बाणों की वर्षा करने लगा | फलत: किरात भी युद्ध के लिए तैयार हो गया | किरात और अर्जुन दोनों में युद्ध होने लगा | अर्जुन के पास युद्ध की जितनी कलाएं थीं, जितने अस्त्र-शस्त्र थे, सबका उसने उपयोग किया, पर किरात का बाल तक बांका नहीं हुआ |
यह पहला अवसर था, जब अर्जुन के बाण विफल हुए थे | वह आश्चर्य में डूबकर सोचने लगा – यह किरात कौन है ? मेरे बाण क्यों विफल हो गए ? कहीं किरात के रूप में भगवान शिव तो नहीं हैं | अर्जुन की आंखें बंद हो गईं | वह हाथ में धनुष-बाण लेकर खड़ा था | वह आंखें बंद करके सोचने लगा – अवश्य किरात के रूप में यह शिवजी ही हैं | मेरे बाण भगवान शंकर को छोड़कर और किसी पर विफल नहीं हो सकते थे |
अर्जुन ने आंखें खोलकर देखो, सामने कोई नहीं था | किरात इधर-उधर कहीं भी दिखाई नहीं पड़ रहा था | अर्जुन के मुख से अपने आप ही निकल पड़ा – भगवान शंकर, भगवान आशुतोष !
सहसा अर्जुन के गले में एक माला आ गई | यह उन्हीं मालाओं में से एक थी, जिन्हें अर्जुन भगवान के चरणों में चढ़ाया करता था | अर्जुन को विश्वास हो गया कि किरात के रूप में भगवान शिव ही उसके शौर्य की परीक्षा ले रहे थे | अर्जुन का मन शक्ति और श्रद्धा से भर गया | वह पुलकित होकर भगवान शंकर की प्रार्थना करने लगा | भगवान आशुतोष प्रसन्न हो उठे | उन्होंने प्रसन्नता भरे स्वर में कहा, “अर्जुन, मैं तुम्हारी वीरता की परीक्षा लेकर परम संतुष्ट हुआ हूं | मैं तुम्हारी इच्छा के अनुसार ही तुम्हें पाशुपतास्त्र दे रहा हूं | इससे तुम तीनों लोकों को जीत सकोगे |”
अर्जुन को उद्देश्य पूर्ण हुआ | महाभारत के पन्नों से प्रकट है कि अर्जुन ने भगवान शंकर के दिए हुए अस्त्रों से ही महाभारत के युद्ध में विजय प्राप्त की थी | सृष्टि के इतिहास में शौर्य की नैवेद्य से शिवजी को संतुष्ट करने वाला अकेला अर्जुन ही है | अत: उसकी वीरता की कहानी प्रलय की छाती पर भी लिखी रहेगी |