शरद्वान ने कृप को धनुर्विद्या की पूर्ण शिक्षा दी, जिससे शीघ्र ही कृपाचार्य भी इस विद्या में पारंगत हो गए | कौरव और पाण्डवों को पहले इन्होने ही धनुर्विद्या की शिक्षा दी थी | इसके पश्चात इनके बहनोई द्रोणाचार्य उनके गुरु बने थे |
इन्होने कौरवों का पक्ष लेकर युद्ध किया था, क्योंकि इन्होंने उनका नमक खाया था | वैसे धर्म और न्याय के प्रति इन्होंने अपनी रुचि दिखाई थी | जिस समय युधिष्ठिर युद्ध प्रारंभ होने से पहले अपने गुरुजनों के पास उनसे युद्ध के लिए अनुमति और विजय के लिए आशीर्वाद मांगने गए तो कृपाचार्य के पास भी गए थे | तब इन्होंने कहा था, “युधिष्ठिर ! मैं तुम्हारे कल्याण की सदा कामना करता हूं | मैं जानता हूं कि तुम्हारा पक्ष न्याय और धर्म का है | कौरवों ने अन्याय के पथ का अनुसरण किया है, इसीलिए मैं तुम्हें विजय का आशीर्वाद देता हूं | यदि मैं कौरवों का दिया हुआ नमक नहीं खाता तो अवश्य तुम्हारे पक्ष में आकर कौरवों के विरुद्ध युद्ध करता, लेकिन अब ऐसा करना धर्म की मर्यादा के प्रतिकूल होगा, इसलिए मैं युद्ध तो दुर्योधन की ओर से ही करूंगा, लेकिन प्रतिदिन प्रात:काल उठकर ईश्वर से तुम्हारी विजय के लिए प्रार्थना करता रहूंगा |”
युधिष्ठिर आचार्य को सिर नवाकर चला गया | इस स्थल पर हमें कृपाचार्य का वह उदात्त रूप मिलता है जो न्याय और धर्म का सर्वोपरि मानकर चलता है | महाभारत के अधिकतर पात्रों में यह पक्ष प्रबल रूप में मिलता है | सत्य के प्रति इनका पूरा आग्रह था |
एक अन्य स्थल पर भी हमें कृपाचार्य की इस धार्मिक प्रवृत्ति का परिचय मिलता है | जिस समय धृष्टद्युम्न ने अन्याय से द्रोणाचार्य को मार डाला था तो आचार्य के पुत्र अश्वत्थामा को इस पर बड़ा क्रोध आया और वह पाण्डव-पक्ष से इसका बदला लेने की बात सोचने लगा | एक दिन उसने यह निश्चय कर लिया जिस प्रकार अन्याय और छल से मेरे पिता को मारा गया है, उसी अन्याय और छल से मैं पांडवों की सोती सेना का रात्रि के समय संहार करूंगा | जब उसने आकर कृपाचार्य को अपना यह विचार बताया तो कृपाचार्य ने उससे कहा, “अश्वत्थामा ! जो सो रहा हो, जिसने शस्त्र उठाकर रख दिया हो और रथ-घोड़े आदि की सवारी छोड़ दी हो, या जो त्राहिमाम कहकर शरण में आ गया हो, ऐसे शत्रु का संहार करना न्यायोचित नहीं है | आज थके हुए पांचाल गहरी नींद सो रहे हैं, ऐसी स्थिति में जो भी धोखे से उन पर आक्रमण करके उनका संहार करेगा, वह नरक की अनंत ज्वाला में जाकर गिरेगा | यदि तुम पांडवों से बदला लेना ही चाहते हो तो कल प्रात:काल मेरे और कृतवर्मा के साथ चलना | हम खुलकर उनसे मुकाबला करेंगे और तुम्हारे पिता की मृत्यु का बदला चूका लेंगे | या तो कल हम शत्रुओं को नष्ट कर देंगे या स्वयं वीरगति प्राप्त कर लेंगे |”
कृपाचार्य के ये शब्द उनकी न्याय और धर्म के प्रति असीम रुचि को अभिव्यक्त करते हैं, लेकिन इनके चरित्र में वह दृढ़ता नहीं थी, जिससे इनका चरित्र आगे के युगों के लिए एक उदात्त रूप का ज्वलंत उदाहरण बनकर खड़ा हो जाता | इधर तो इन्होंने न्याय और धर्म की इस प्रकार व्याख्या की थी और उधर जब अश्वत्थामा ने छिपकर रात को पाण्डव-सेना का संहार किया तो स्वयं कृपाचार्य ने ही उसमें पूरा-पूरा सहयोग दिया था | नींद से उठकर भागते हुए सैनिकों का इन्होंने और कृतवर्मा ने मिलकर संहार किया था | पाण्डवों के खेमों में इन्होंने आग लगाकर पूरी तरह आततायियों का-सा कार्य किया था |
इस घटना के अलावा वीर बालक अभिमन्यु की अन्यायपूर्ण हत्या के समय ये भी उस घृणित कर्म में सहयोगी थे | उस समय उस निहत्थे बालक को छ: महारथी मिलकर मार रहे थे, लेकिन कृपाचार्य की न्याय और धर्म की आवाज जाने कहां सो गई थी | इनके चरित्र पर ये ऐसे काले चिह्न हैं, जिनके कारण इनको कभी भी मानव हृदय में वह पवित्र सम्मान नहीं मिल पाएगा, जो अन्य न्यायप्रिय महारथियों को मिलेगा |