कृतवर्मा युद्ध से पहले कृष्ण के साथ कौरवों की सभा में गया था | कृष्ण उस समय कौरव और पाण्डवों के बीच समझौता कराने के लिए गए थे और कृतवर्मा इसलिए गया था कि कहीं दुर्योधन किसी प्रकार की उद्दण्डता न कर बैठे | इस स्थिति में वह उसका सामना करता | बस, इसी स्थल पर हम कृतवर्मा को एक सत्कार्य में सहयोग देते हुए पाते हैं, नहीं तो अधिकतर उसके कार्य आततायियों के-से हैं |
उसने स्यमंतक मणि को छिपा दिया था, जिसके कारण सत्राजित को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा | इसके अतिरिक्त एक बार अश्वत्थामा ने खीझकर रात को सोती हुई पाण्डव सेना का संहार किया था, उस समय इसने और कृपाचार्य ने मिलकर उन असावधान सैनिकों का वध किया था, जो नींद से उठकर अपनी जान बचाने के लिए खेमों से बाहर भाग रहे थे | फिर खेमों में इसने आग भी लगा दी थी |
जब तक यह जीवित रहा, तब तक इसी प्रकार के क्रूर कर्मों में व्यस्त रहा | सात्यकि से सदैव इसका झगड़ा रहता था | अंत में जब प्रभास तीर्थ में यादवों ने मदिरा पीकर आपस में जो युद्ध किया था उसमें सात्यकि ने इस आततायी का सिर काट डाला था | इस प्रकार इसके जीवन का अंत हुआ |