हनुमान इस वानर दल में अधिक बलशाली थे | वे भी गोवर्धन नामक पर्वत पर गए और उस पर्वत को उठाने लगे, परंतु अत्यंत परिश्रम करने पर भी वे पर्वतराज गोवर्धन को न उठा सके | हनुमान को निराश देखकर पर्वतराज ने कहा, “हनुमान ! यदि आप प्रतिज्ञा करें कि भक्त शिरोमणि भगवान श्रीराम के दर्शन करा दूंगा तो मैं आपके साथ चलने को तैयार हूं |”
यह सुनकर हनुमान ने कहा, “पर्वतराज ! मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि आप मेरे साथ चलने पर श्रीराम का दर्शन कर सकेंगे |” विश्वास प्राप्त कर पर्वत राज गोवर्धन हनुमान जी के कर-कमलों पर सुशोभित होकर चल दिए |
जिस समय हनुमान जी पर्वतराज गोवर्धन को लेकर ब्रजभूमि पर से आ रहे थे, उस समय सेतु बांधने का कार्य संपूर्ण हो चुका था और भगवान श्रीराम ने आज्ञा दी कि, “वानरो ! अब और खण्ड न लाए जाएं, जो जहां पर है, वह वहीं पर पर्वत खण्डों को रख दें |”
आज्ञा पाते ही समस्त वानरों ने जहां का तहां पर्वत शिलाओं को रख दिया | हनुमान जी ने भी आज्ञा का पालन किया और उन्हें पर्वतराज गोवर्धन को वहीं पर रखना पड़ा |
यह देख पर्वतराज ने कहा, “हनुमान जी ! आपने तो विश्वास दिलाया था कि मुझे श्रीराम के दर्शन कराएंगे, पर आप तो मुझे यहीं पर छोड़कर चले जाना चाहते हैं | भला कहिए तो सही, अब मैं पतित पावन श्रीराम जी के दर्शन कैसे कर सकूंगा |”
हनुमान जी विवश थे, क्या करते प्रभु की आज्ञा ही ऐसी थी | हनुमान जी शोकातुर होकर कहने लगे, “पर्वतराज ! निराश मत हों, मैं श्रीराम जी के समीप जाकर प्रार्थना करूंगा, आशा है कि दीनदयालु आपको लाने की आज्ञा प्रदान कर देंगे, जिससे आप उनका दर्शन कर सकेंगे |”
इतना कहकर हनुमान जी वहां से चल दिए | और रामदल में आकर श्रीराम जी के चरणों में उपस्थित हो अपनी प्रतिज्ञा निवेदन की |
श्रीराम जी ने कहा, “हनुमान जी ! आप अभी जाकर पर्वतराज से कहिए कि वे निराश न हों | द्वापर में कृष्ण रूप में उसे मेरा दर्शन होगा |”
हनुमान जी तुरंत ही पर्वतराज गोवर्धन के पास गए और जाकर बोले, “पर्वतराज ! भगवान श्रीराम की आज्ञा है कि आपको द्वापर में कृष्ण रूप में दर्शन होंगे |”
द्वापर आया | भगवान श्रीराम ने श्रीकृष्ण रूप धारण कर ब्रज में जन्म लिया | उस समय देवताओं के राजा इंद्र ने ब्रजवासियों द्वारा अपनी पूजा न पाने के कारण क्रोधातुर हो ब्रज को समूल नष्ट करने का विचार करके मेघों को आज्ञा दी कि ‘आप ब्रज में जाकर समस्त ब्रजभूमि को वर्षा द्वारा नष्ट कर दो |’ मेघ देवराज इंद्र की आज्ञा पाकर ब्रज पर मूसलाधार जल बरसाने लगे |
अतिवृष्टि के कारण ब्रज में हाहाकार मच गया | समस्त ब्रजवासी इंद्र के कोप से भयभीत होकर नंद बाबा के घर की ओर दौड़े |
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, “ब्रजवासियों ! धैर्य धारण करो, इंद्र का कोप आपका कुछ न कर सकेगा; आओ, हमारे साथ चलो |”
भगवान श्रीकृष्ण गोप तथा ब्रजबालाओं सहित गोवर्धन की ओर चल दिए | पर्वतराज गोवर्धन को दर्शन देकर अंगुलि पर धारण कर लिया और समस्त ब्रजवासियों का भय हर लिया तथा अपने वचन तथा सेवक हनुमान की प्रतिज्ञा भी पूरी की |
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Gourav Dahiya
post copy नहीं हो रही ।
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