सत्यपालन - Satyapaalan

सत्यपालन – Satyapalan

कुरुवंश के देवापि बड़े और शांतनु छोटे थे | पिता के स्वर्गवास के बाद राज्याभिषेक का प्रश्न उठने पर देवापि चिंतित हो उठे | वे चर्मरोगी थे इसलिए वे शांतनु को राजा बनाना चाहते थे |

“महाराज ! बड़े भाई के रहते छोटे भाई का राज्याभिषेक हो, यह बात समीचीन नहीं है |” प्रधानमंत्री के स्वर में स्वर में स्वर मिलाकर प्रजा ने करबद्ध निवेदन किया |

“आप लोग ठीक कहते हैं, पर आपको विश्वास होना चाहिए कि मैं आपके कल्याण की बात में कुछ भी कमी नहीं रखूंगा | राजा का कार्य ही है कि वह सदा प्रजा का हितचिंतन करता थे |” देवापि ने छिपे तरीके से शांतुन का पक्ष लिया |

“महाराज की जय हो !” प्रजा नतमस्तक हो गई | शांतनु के राज्यभिषेक के बाद ही देवापि ने तप करने के लिए वन की ओर प्रस्थान किया | शांतनु राज्य का काम संभालने लगे | लेकिन एकाएक राज्य में अकाल पड़ गया | कोई उपाय जब वृष्टि करने में सफल न हो सका, तो महाराज शांतुन ने देवापि की शरण ली | शांतुन ने राज्य की स्थिति का वर्णन करते हुए प्रजा के कष्ट को हरने का उपाय बताने को कहा | शांतुन ने अपने बड़े भाई के चरण पकड़ लिए |

“भाई ! मैं तो चर्मरोगी हूं | मेरी त्वचा दूषित है | मुझमें रोग के कारण राजकार्य की शक्ति नहीं थी, इसलिए प्रजा के कल्याण की दृष्टि से मैंने वन का रास्ता लिया था, यह सत्य बात है | पर इस समय अनावृष्टि के निवारण के लिए, बृहस्पति की प्रसन्नता के लिए मैं आपके वृष्टि काम-यज्ञ का पुरोहित बनूंगा |” देवापि ने महाराज शांतुन को गले लगा लिया | प्रजा उनकी जय-जयकार करने लगी |

तपस्वी देवापि राजधानी में लौट आए | उनके आगमन से चारों ओर आनंद छा गया | दोनों भाइयों के सत्य पालन से अनावृष्टि समाप्त हो गई | यज्ञ की काली-काली धूम-रेखाओं ने गगन को आच्छादित कर लिया | बृहस्पति प्रसन्न हो उठे | पर्जन्य की कृपा-वृष्टि से नदी, तालाब, वृक्ष और खेतों के प्राण लौट आए | देवापि ने अपने सत्यव्रत से प्रजा की कल्याण साधना की |

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