वेदव्यास जन्म कथा - Ved Vyas Janam Katha

वेदव्यास जन्म कथा

राजा उपरिचर एक महान प्रतापी राजा था | वह बड़ा धर्मात्मा और बड़ा सत्यव्रती था | उसने अपने तप से देवराज इंद्र को प्रसन्न करके एक विमान और न सूखने वाली सुंदर माला प्राप्त की थी | वह माला धारण करके, विमान पर बैठकर आकाश में परिभ्रमण किया करता था | उसे आखेट का बड़ा चाव था | वह प्राय: वनों में आखेट के लिए जाया करता था |

उपरिचर की रानी का नाम गिरिका था | गिरिका भी बड़ी सुंदर और पवित्र हृदया थी | वह अपने पति को प्रेम तो करती ही थी, ईश्वर के प्रति भी बड़ी आस्थालु थी | निरंतर भजन और चिंतन में लगी रहती थी |

एक बार गिरिका ऋतुमती हुई | तीन दिनों के पश्चात जब वह शुद्ध हुई, तो उपरिचर उसके साथ रमण करने से पूर्व ही वन में आखेट के लिए चला गया | राजा आखेट के लिए चला तो गया, किंतु उसका ध्यान रानी के साथ रमण करने की ओर ही लगा रहा |

दोपहर का समय था | राजा वन में एक अशोक वृक्ष के नीचे बैठा हुआ था | शीतल और सुगंधित हवा चल रही थी | मृदुल स्वरों में पक्षी गान कर रहे थे | राजा का ध्यान रानी की ओर चला गया | वह रमण के संबंध में मन ही मन सोचने लगा | राजा कामातुर हो उठा और उसका वीर्य स्खलित हो गया |

राजा ने सोचा, उसका वीर्य व्यर्थ नहीं जा सकता | अत: उसने अपने वीर्य को एक दोने में रखकर विमान में बैठे हुए बाज पक्षी को बुलाकर उससे कहा, “तुम इस दोने को ले जाकर मेरी रानी को दे दो | वह इसे अपने गर्भ में धारण कर लेगी |”

बाज दोने को मुख में दबाकर राजा के भवन की ओर उड़ चला | वह यमुना नदी के ऊपर से उड़ता हुआ चला जा रहा था | सहसा एक दूसरे बाज की दृष्टि उस पर पड़ी | इसने सोचा, यह अपने मुख में खाने की कोई वस्तु दबाए हुए है | अत: उसने उस बाज पर आक्रमण कर दिया |

दोनों बाजों में घमासन युद्ध करने लगा | परिणाम यह हुआ कि पहले बाज के मुख से दोना छूटकर, यमुना के जल में गिर पड़ा | दोने में रखा वीर्य पानी में मिल गया | एक मछली की वीर्य पर दृष्टि पड़ी | उसने सोचा यह खाने की वस्तु है | अत: वह उसको पानी के साथ निगल गई |

फलत: मछली गर्भवती हो गई | दासराज नामक मल्लाह को वह मछली शिकार में मिली | जब उसने मछली के पेट को बीचो बीच से काटा तो उसके पेट से एक बालक और एक बालिका निकली | दासराज ने दोनों को उपरिचर को भेंट कर दिया | उपरिचर ने बालक को तो अपने पास रख लिया, पर बालिका को दासराज को लौटा दिया | दासराज उस बालिका को अपने घर ले जाकर उसका पालन-पोषण करने लगा |

दासराज ने बालिका का नाम सत्यवती रखा | वह मछली के पेट से उत्पन्न थी, इसलिए उसके शरीर से मछली की सी गंध निकला करती थी | अत: लोग उसे मत्स्यगंधा भी कहा करते थे | मत्स्यगंधा धीरे-धीरे बड़ी हुई | वह बड़ी रूपवती थी | वह रात्रियों को अपनी नाव पर बैठाकर इस पार से उस पार पहुंचाया करती थी |

एक दिन दोपहर के समय महर्षि पराशर वहां जा पहुंचे | वे मत्स्यगंधा को देखकर उस पर मुग्ध हो गए | उन्होंने उससे कहा, “सुंदरी, तुम्हें अपूर्व सुख मिलेगा | मैं तुम्हारे साथ रमण करना चाहता हूं |”

मत्स्यगंधा ने उत्तर दिया, “महर्षे, आप यह कैसी बातें कर रहे हैं ? दोपहर का समय है | आसपास लोग बैठे हुए हैं, मैं आपके साथ रमण कैसे कर सकती हूं ?”

पराशर जी ने योगशक्ति से चारों ओर कुहरा पैदा कर दिया | और बोले, “अब हमें कोई नहीं देख सकेगा | तू निश्चिंत होकर मेरे प्रस्ताव को स्वीकार कर ले |”

मत्स्यगंधा पुन: बोल उठी, “महर्षे, मैं कुमारी हूं | पिता की आज्ञा के अधीन हूं | आपके साथ रमण करने से मेरा कौमार्य नष्ट हो जाएगा | मैं समाज में लांछित बन जाऊंगी |”

पराशर जी ने उत्तर दिया, “तुम चिंता मत करो | मुझसे रमण करने के पश्चात भी तुम्हारा कौमार्य बना रहेगा | गर्भवती होने पर भी गर्भ का चिह्न प्रकट नहीं होगा |”

मत्स्यगंधा फिर बोली, “एक बात और, मेरे शरीर से मछली की सी गंध निकलती है | आप मुझे वरदान दें कि वह गंध के रूप में बदल जाए और चार कोस तक फैली रहे |”

पराशर जी ने तथास्तु कह दिया | फलत: मत्स्यगंधा के शरीर से कस्तूरी की सी गंध निकलने लगी | वह गंध चार कोस तक फैली रहती थी | अत: अब वह योजनगंधा भी कही जाने लगी |

पराशर जी ने मत्स्यगंधा के साथ रमण किया | उनके साथ रमण के फलस्वरूप वह गर्भवती हुई | समय पर यमुना के द्वीप में एक बालक ने उसके गर्भ से जन्म लिया | वह बालक जन्म लेते ही बड़ा हो गया, वह तप करने के लिए वन में चला गया | वही बालक जगत में वेदव्यास जी के नाम से प्रसिद्ध हुआ |

वेदव्यास जी का पूरा नाम कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास था | वे श्याम वर्ण के थे, इसलिए उनका नाम कृष्ण पड़ा | वे दो द्वीपों के बीच में पैदा हुए थे, इसलिए द्वैपायन कहे जाते थे | वेदों के पंडित होने से वेदव्यास कहे जाते थे | वेदव्यास जी अमर हैं, वे आज भी धरती पर विद्यमान हैं और किसी-किसी को दर्शन देकर कृतार्थ करते हैं |

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