श्री गुरु नानक देव जी का प्रकाश पहली बैसाख शुक्ल पक्ष (पूर्णिमा) दिन सोमवार संवत 1526 बिक्रमी (15 अप्रैल सन् 1469) अर्द्ध रात्री (7 वें पहर के मध्य में) तलवण्डी (राय भोए की) नामक कस्बे में श्री कल्याण चंद (पिता मेहता कालू) (क्षत्रीय) के गृह में माता तृप्ता की कोख से हुआ| जिन की उप-जाति बेदी थी| श्री गुरु नानक देव जी की बड़ी बहन का जन्म सन् 1464 ई. में हुआ था| उन का नाम नानकी था|
सतिगुरु नानक प्रगटिया मिटी धुंध जग चानण होआ ||
जिउ कर सूरज निकलिआ तारे छपे अंधेर पलोआ ||
सिंघ बुके म्रिगावली भन्नी जाई न धीर धरोआ ||
जिथे बाबा पैर धरे पूजा आसण थापण सोआ ||
सिध आसण सभ जगत दे नानक आदि मते जे कोआ ||
घर घर अंदर धरमसाल होवै कीरतन सदा विसोआ ||
बाबे तारे चार चके नौ खंड प्रिथमी सचा ढोआ ||
गुरमुख कलि विच परगट होआ ||भाई गुरदास जी
सन् 1469 अप्रैल (पहली वैसाख) पूनम की अर्द्ध रात्री में पंजाब के तलवंडी ग्राम में मेहता कालू जी के घर में माता तृप्ता जी की कोख से एक अद्वितीय बालक नानक के प्रसूतिका कार्य में दाई दौलता ने सहायता की| दाई दौलता के कथन अनुसार इस नन्हे शिशु ने रोने के स्थान पर हंसते हुए मानव समाज में प्रवेश किया| पिता कल्याण चंद जी ने अपने पुरोहित पण्डित हरिदयाल जी से पुत्र की जन्म पत्री बनवाई तो उन्होंने भविष्य वाणी की कि यह बालक ग्रह नक्षत्रों के अनुसार कोई दिव्य ज्योति वाला पराक्रमी पुरुष होगा| कुछ दिनों पश्चात् शुभ लग्न देख कर पण्डित जी ने बालक का नामकरण किया – ‘गुरु नानक देव जी’ इस पर पिता कालू जी ने आपत्ति की कि इस बड़ी बहन का नाम भी यही है तो पण्डित जी कहने लगे, “हे कालू! यह संयोग की बात है कि नाम राशि भी वही बनती है| इस लिए मैं विवश हूँ क्योंकि दो पवित्र आत्माओं का तुम्हारे घर में योग है| मैंने बहुत विचार के पश्चात् इसे भी वही नाम दिया है क्योंकि इस की कीर्ति समस्त मानव समाज में कस्तूरी की तरह फैलेगी तथा यह बहुत तेजस्वी होगा|”