मुहर्रम - Muharram

मुहर्रम – Muharram

प्रस्तावना: मुहर्रम को त्यौहार कहना ठीक नहीं है| हम इसे शोक-दिवस कह सकते हैं| मुस्लमान अपने महान् पैगम्बर हुसैन के सम्मान में इसे मनाते हैं| उन्होंने दस दिन तक उपवास करने बाद इसी दिन अपने प्राणों का बलिदान कर दिया था| शिया मुसलमान इस अवसर को बलिदान की याद के रूप में मनाते हैं|

त्यौहार क्यों मनाया जाता है?

इस त्यौहार की पृष्ठभूमि एतिहासिक है| इसकी कथा बड़ी दर्दनाक है| इसे सुनकर निश्चय ही आंसू निकाल पड़ते हैं|

पैगम्बर मोहम्मद साहब के दो धेवते (लड़की के लड़के) थे| उनके नाम हस्सन और हुसैन थे| हुसैन अपने समय के श्रेष्ठतम योद्धा और शुद्ध आचार-विचार वाले व्यक्ति थे| एक बाद याजिद-उल-मवीया नाम के दुश्मन ने हस्सन को पकड़ लिया और उनका कत्ल कर दिया| हुसैन ने दुश्मनों पर हमला कर दिया| यह युद्ध 20 वर्ष तक चला| अन्त में हुसैन जब रेगिस्तान पार कर रहे थे, दुश्मनों ने उन्हें घेर लिया और गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया| जेल में उन्हें खाने-पीने को कुछ भी नहीं दिया गया| दस दिन तक भूख और प्यास से तड़पने के बाद उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया|

कैसे मनाया जाता है?

यह त्यौहार दस दिन तक चलता है| यह इसी माह की दूज से प्रारंभ होकर दस दिन तक चलता है| शोक के लिए एक स्थान चुन लिया जाता है| बड़े और छोटे सभी शिया मुसलमान यहां इकट्ठे होते हैं और दस दिन तक वे हुसैन की याद में छाती पीट-पीटकर रोते और विलाप करते हैं| सारे दिन ईश्वर की प्रार्थना की जाती है और गरीबों को खैरात बांटी जाती है| वे इस अवसर पर हुसैन को सम्मान से याद करते हैं और क्रूर याजिद को कोसते हैं|

ताजिये निकालना

दसवें दिन यानी मुहर्रम के दिन रंग-बिरंगे ताजिये निकाले जाते हैं| ये ताजिये हुसैन और उनके साथियों की क्रबों के प्रतीक होते हैं| बांस और रंगीन कागजों से इन्हें तैयार किया जाता है और अनेक लोग कंधों पर इन्हें उठाकर जुलूस की शक्ल में निकालते हैं| इनके पीछे युवाओं के दल होते हैं, जो बड़े दर्दीले गाने गाते हैं| इसे मर्सिया पढ़ना कहते हैं| वे जोर-जोर से दहाड़ मार-मार कर रोते हैं और छातियाँ पिटते हैं| पिटते-पिटते छातियाँ नीली पड़ जाती हैं| वे रास्ते भर “हाय हुसैन हम न हुए| हाय हुसैन हम न हुए” कहते-कहते विलाप करते हैं| इस तरह यह जुलूस सभी प्रमुख सड़कों और मुहल्लों से गुजरता है|

मुहर्रम के दिन

त्यौहार के अन्तिम दिन (दसवें दिन) इन ताजियों को कर्बला ले जाया जाता है और उन्हें दफना दिया जाता है| दफनाते समय सारे उपस्थित लोग हस्सन और हुसैन को जोर-जोर से याद करते और विदाई देते हैं| ताजिये दफना कर सभी अपने-अपने घरों को लौटकर नमाज पढ़ते हैं|
उपसंहार: मुसलमान पड़ोसियों के दुःख के अवसर पर हिन्दू उनसे सहानुभूति दिखाते हैं| ताजिये के जुलूस का वे जगह-जगह पर ठंडे पानी, शर्बत आदि से स्वागत करते हैं| कुछ हिन्दू ताजिये पर फूल और मिठाई चढ़ाते हैं| इस अवसर की सबसे बड़ी बुराई यह है कि इस दिन अनेक स्थानों पर शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच तनातनी हो जाती है और कहीं-कहीं दंगे तक भड़क उठते हैं, जिनमें अनेक जानें चली जाती हैं|

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