अयोध्याकाण्ड - Ayodhaya Kand

अयोध्यावासियों सहित श्री भरत-शत्रुघ्न का वनगमन

दोहा :
जरउ सो संपति सदन सुखु सुहृद मातु पितु भाइ।
सनमुख होत जो राम पद करै न सहस सहाइ॥185॥

भावार्थ:- वह सम्पत्ति, घर, सुख, मित्र, माता, पिता, भाई जल जाए जो श्री रामजी के चरणों के सम्मुख होने में हँसते हुए (प्रसन्नतापूर्वक) सहायता न करे॥185॥ Read more about अयोध्यावासियों सहित श्री भरत-शत्रुघ्न का वनगमन

श्री वशिष्ठ-भरत संवाद

दोहा :
तात हृदयँ धीरजु धरहु करहु जो अवसर आजु।
उठे भरत गुर बचन सुनि करन कहेउ सबु साजु॥169॥

भावार्थ:- (वशिष्ठजी ने कहा-) हे तात! हृदय में धीरज धरो और आज जिस कार्य के करने का अवसर है, उसे करो। गुरुजी के वचन सुनकर भरतजी उठे और उन्होंने सब तैयारी करने के लिए कहा॥169॥ Read more about श्री वशिष्ठ-भरत संवाद

भरत-कौसल्या संवाद और दशरथ जी की अन्त्येष्टि क्रिया

दोहा :
मलिन बसन बिबरन बिकल कृस शरीर दुख भार।
कनक कलप बर बेलि बन मानहुँ हनी तुसार॥163॥

भावार्थ:- कौसल्याजी मैले वस्त्र पहने हैं, चेहरे का रंग बदला हुआ है, व्याकुल हो रही हैं, दुःख के बोझ से शरीर सूख गया है। ऐसी दिख रही हैं मानो सोने की सुंदर कल्पलता को वन में पाला मार गया हो॥163॥ Read more about भरत-कौसल्या संवाद और दशरथ जी की अन्त्येष्टि क्रिया

श्री भरत-शत्रुघ्न का आगमन और शोक

हाट बाट नहिं जाइ निहारी। जनु पुर दहँ दिसि लागि दवारी॥
आवत सुत सुनि कैकयनंदिनि। हरषी रबिकुल जलरुह चंदिनि॥1॥

भावार्थ:- बाजार और रास्ते देखे नहीं जाते। मानो नगर में दसों दिशाओं में दावाग्नि लगी है! पुत्र को आते सुनकर सूर्यकुल रूपी कमल के लिए चाँदनी रूपी कैकेयी (बड़ी) हर्षित हुई॥1॥ Read more about श्री भरत-शत्रुघ्न का आगमन और शोक

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श्री वशिष्ठ का भरत जी को बुलाने के लिए दूत भेजना

दोहा :
तब बसिष्ठ मुनि समय सम कहि अनेक इतिहास।
सोक नेवारेउ सबहि कर निज बिग्यान प्रकास॥156॥

भावार्थ:- तब वशिष्ठ मुनि ने समय के अनुकूल अनेक इतिहास कहकर अपने विज्ञान के प्रकाश से सबका शोक दूर किया॥156॥ Read more about श्री वशिष्ठ का भरत जी को बुलाने के लिए दूत भेजना

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श्री दशरथ-सुमन्त्र संवाद

दोहा :
देखि सचिवँ जय जीव कहि कीन्हेउ दंड प्रनामु।
सुनत उठेउ ब्याकुल नृपति कहु सुमंत्र कहँ रामु॥148॥

भावार्थ:- मंत्री ने देखकर ‘जयजीव’ कहकर दण्डवत् प्रणाम किया। सुनते ही राजा व्याकुल होकर उठे और बोले- सुमंत्र! कहो, राम कहाँ हैं ?॥148॥ Read more about श्री दशरथ-सुमन्त्र संवाद

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सुमन्त्र का अयोध्या को लौटना और सर्वत्र शोक देखना

दोहा :
भयउ निषादु बिषादबस देखत सचिव तुरंग।
बोलि सुसेवक चारि तब दिए सारथी संग॥143॥

भावार्थ:- मंत्री और घोड़ों की यह दशा देखकर निषादराज विषाद के वश हो गया। तब उसने अपने चार उत्तम सेवक बुलाकर सारथी के साथ कर दिए॥143॥ Read more about सुमन्त्र का अयोध्या को लौटना और सर्वत्र शोक देखना

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श्री राम का चित्रकूट में निवास, कोल-भीलों के द्वारा सेवा

दोहा :
चित्रकूट महिमा अमित कही महामुनि गाइ।
आइ नहाए सरित बर सिय समेत दोउ भाइ॥132॥

भावार्थ:- महामुनि वाल्मीकिजी ने चित्रकूट की अपरिमित महिमा बखान कर कही। तब सीताजी सहित दोनों भाइयों ने आकर श्रेष्ठ नदी मंदाकिनी में स्नान किया॥132॥ Read more about श्री राम का चित्रकूट में निवास, कोल-भीलों के द्वारा सेवा

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श्री राम-वाल्मीकि संवाद

देखत बन सर सैल सुहाए। बालमीकि आश्रम प्रभु आए॥
राम दीख मुनि बासु सुहावन। सुंदर गिरि काननु जलु पावन॥3॥

भावार्थ:- सुंदर वन, तालाब और पर्वत देखते हुए प्रभु श्री रामचन्द्रजी वाल्मीकिजी के आश्रम में आए। श्री रामचन्द्रजी ने देखा कि मुनि का निवास स्थान बहुत सुंदर है, जहाँ सुंदर पर्वत, वन और पवित्र जल है॥3॥ Read more about श्री राम-वाल्मीकि संवाद

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वनवासियों का प्रेम

दोहा :
तब रघुबीर अनेक बिधि सखहि सिखावनु दीन्ह।।
राम रजायसु सीस धरि भवन गवनु तेइँ कीन्ह॥111॥

भावार्थ:- तब श्री रामचन्द्रजी ने सखा गुह को अनेकों तरह से (घर लौट जाने के लिए) समझाया। श्री रामचन्द्रजी की आज्ञा को सिर चढ़ाकर उसने अपने घर को गमन किया॥111॥ Read more about वनवासियों का प्रेम