दोहा :
जानि सुअवसरु सीय तब पठई जनक बोलाइ।
चतुर सखीं सुंदर सकल सादर चलीं िलवाइ॥246॥
भावार्थ:- तब सुअवसर जानकर जनकजी ने सीताजी को बुला भेजा। सब चतुर और सुंदर सखियाँ आरदपूर्वक उन्हें लिवा चलीं॥246॥ Read more about श्री सीताजी का यज्ञशाला में प्रवेश …
दोहा :
जानि सुअवसरु सीय तब पठई जनक बोलाइ।
चतुर सखीं सुंदर सकल सादर चलीं िलवाइ॥246॥
भावार्थ:- तब सुअवसर जानकर जनकजी ने सीताजी को बुला भेजा। सब चतुर और सुंदर सखियाँ आरदपूर्वक उन्हें लिवा चलीं॥246॥ Read more about श्री सीताजी का यज्ञशाला में प्रवेश …
चौपाई :
सीय स्वयंबरू देखिअ जाई। ईसु काहि धौं देइ बड़ाई॥
लखन कहा जस भाजनु सोई। नाथ कृपा तव जापर होई॥1॥
भावार्थ:- चलकर सीताजी के स्वयंवर को देखना चाहिए। देखें ईश्वर किसको बड़ाई देते हैं। लक्ष्मणजी ने कहा- हे नाथ! जिस पर आपकी कृपा होगी, वही बड़ाई का पात्र होगा (धनुष तोड़ने का श्रेय उसी को प्राप्त होगा)॥1॥ Read more about श्री राम-लक्ष्मण सहित विश्वामित्र का यज्ञशाला में प्रवेश …
दोहा :
देखन मिस मृग बिहग तरु फिरइ बहोरि बहोरि।
निरखि निरखि रघुबीर छबि बाढ़इ प्रीति न थोरि॥234॥
भावार्थ:- मृग, पक्षी और वृक्षों को देखने के बहाने सीताजी बार-बार घूम जाती हैं और श्री रामजी की छबि देख-देखकर उनका प्रेम कम नहीं बढ़ रहा है। (अर्थात् बहुत ही बढ़ता जाता है)॥234॥ Read more about श्री सीताजी को पार्वती जी का वरदान …
दोहा :
उठे लखनु निसि बिगत सुनि अरुनसिखा धुनि कान।
गुर तें पहिलेहिं जगतपति जागे रामु सुजान॥226॥
भावार्थ:- रात बीतने पर, मुर्गे का शब्द कानों से सुनकर लक्ष्मणजी उठे। जगत के स्वामी सुजान श्री रामचन्द्रजी भी गुरु से पहले ही जाग गए॥226॥ Read more about श्री सीता-रामजी का पुष्पवाटिका में परस्पर दर्शन …
दोहा :
जाइ देखि आवहु नगरु सुख निधान दोउ भाइ।
करहु सुफल सब के नयन सुंदर बदन देखाइ॥218॥
भावार्थ:- सुख के निधान दोनों भाई जाकर नगर देख आओ। अपने सुंदर मुख दिखलाकर सब (नगर निवासियों) के नेत्रों को सफल करो॥218॥ Read more about श्री राम-लक्ष्मण का जनकपुर निरीक्षण …
दोहा :
प्रेम मगन मनु जानि नृपु करि बिबेकु धरि धीर।
बोलेउ मुनि पद नाइ सिरु गदगद गिरा गभीर॥215॥
भावार्थ:- मन को प्रेम में मग्न जान राजा जनक ने विवेक का आश्रय लेकर धीरज धारण किया और मुनि के चरणों में सिर नवाकर गद्गद् (प्रेमभरी) गंभीर वाणी से कहा- ॥215॥ Read more about श्री राम-लक्ष्मण पर जनकजी की प्रेम मुग्धता …
चौपाई :
चले राम लछिमन मुनि संगा। गए जहाँ जग पावनि गंगा॥
गाधिसूनु सब कथा सुनाई। जेहि प्रकार सुरसरि महि आई॥1॥
भावार्थ:- श्री रामजी और लक्ष्मणजी मुनि के साथ चले। वे वहाँ गए, जहाँ जगत को पवित्र करने वाली गंगाजी थीं। महाराज गाधि के पुत्र विश्वामित्रजी ने वह सब कथा कह सुनाई जिस प्रकार देवनदी गंगाजी पृथ्वी पर आई थीं॥1॥ Read more about श्री राम-लक्ष्मण सहित विश्वामित्र जी का जनकपुर आगमन …
आश्रम एक दीख मग माहीं। खग मृग जीव जंतु तहँ नाहीं॥
पूछा मुनिहि सिला प्रभु देखी। सकल कथा मुनि कहा बिसेषी॥6॥
भावार्थ:- मार्ग में एक आश्रम दिखाई पड़ा। वहाँ पशु-पक्षी, को भी जीव-जन्तु नहीं था। पत्थर की एक शिला को देखकर प्रभु ने पूछा, तब मुनि ने विस्तारपूर्वक सब कथा कही॥6॥ Read more about अहल्या उद्धार …
दोहा :
आयुध सर्ब समर्पि कै प्रभु निज आश्रम आनि।
कंद मूल फल भोजन दीन्ह भगति हित जानि॥209॥
भावार्थ:- सब अस्त्र-शस्त्र समर्पण करके मुनि प्रभु श्री रामजी को अपने आश्रम में ले आए और उन्हें परम हितू जानकर भक्तिपूर्वक कंद, मूल और फल का भोजन कराया॥209॥ Read more about विश्वामित्र-यज्ञ की रक्षा …
दोहा :
ब्यापक अकल अनीह अज निर्गुन नाम न रूप।
भगत हेतु नाना बिधि करत चरित्र अनूप॥205॥
भावार्थ:- जो व्यापक, अकल (निरवयव), इच्छारहित, अजन्मा और निर्गुण है तथा जिनका न नाम है न रूप, वही भगवान भक्तों के लिए नाना प्रकार के अनुपम (अलौकिक) चरित्र करते हैं॥205॥ Read more about विश्वामित्र जी का आगमन और ताड़का वध …