- वक्रतुण्ड – अपने प्रथम स्वरूप में गणेश जी वक्रतुण्ड कहलाते हैं। इनकी सवारी शेर है। इस स्वरूप में ही इन्होंने मत्सरासुर नामक दैत्य को समर्पण हेतु बाध्य किया।
- एकदन्त – अपने द्वितीय स्वरूप में गणेश जी एकदन्त कहलाते हैं। इनका वाहन मूषक (चूहा) है। मदासुर नामक दैत्य को इसी स्वरूप में इन्होंने समर्पण हेतु बाध्य किया।
- महोदर – तीसरे महोदर नाम रूपी इस स्वरूप में मूषक ही गणेश जी का वाहन रहा और उन्होंने मोहासुर नामक दैत्य को समर्पण हेतु बाध्य किया। तत्पश्चात दैत्य मोहासुर गणेश जी का अनन्य उपासक बन गया। इसी महोदर स्वरूप में आपने दो अन्य दैत्यों-दुर्बुद्धि तथा उसके पुत्र ज्ञानारि का भी अंत किया।
- गजानन – अपने इस चौथे स्वरूप में भी गणेश जी का वाहन चूहा ही रहा तथा उन्होंने कुबेर पुत्र दैत्य लोभासुर को समर्पण हेतु बाध्य किया।
- लंबोदर – चूहा इस स्वरूप में भी आपका वाहन बना। लंबोदर रूपी स्वरूप में आपने दैत्य क्रोधासुर को समर्पण हेतु बाध्य किया। इसी स्वरूप में आपने मायाकर नामक दैत्य के अत्याचारों का भी अंत किया|
- विकट – इस स्वरूप में मोर को सौभाग्य प्राप्त हुआ गणेश जी का वाहन बनने का। दैत्य कामासुर को आपने इसी विकट स्वरूप में समर्पण हेतु बाध्य किया।
- विघ्नराज – इस स्वरूप में गणेश जी सवार हुए शेषनाग पर और दैत्य ममासुर को समर्पण हेतु बाध्य किया। ममासुर को ममतासुर भी कहा जाता था।
- धूम्रवर्ण – सवारी के रूप में चूहा पुनः गणेश जी का वाहन बना और इस स्वरूप में आपने अहंतासुर (अहंकारसुर या अभिमानासुर) नामक दैत्य को समर्पण हेतु बाध्य किया।