जो तेरी सरणाई हरि जीउ तिन तू राखन जोगु ॥
तुधु जेवडु मै अवरु न सूझै ना को होआ न होगु ॥१॥ (पृश्३३३)हरि सराई भजु मन मेरे सभ किछु करणे जोगु ॥
नानक नामु न वीसरै, जो किछु करै सु होगु ॥ (पृ १३४७)
हमें केवल औपचारिक तौर पर अकालपुरख पर आश्रय नहीं रखना चाहिए। हमारी अकालपुरख के संग ऐसा अनन्य व पक्का प्यार होना चाहिए जिस तरह एक आदर्श पति – पत्नी के बीच होता है जो शक्ल से तो भिन्न-भिन्न हैं पर दोनों की ज्योति एक ही होती है। यथा :
धन पिरु एहि न आखीअनि बहनि इकठे होइ ॥
एक जोति दुइ मूरती धन पिरु कहीऐ सोइ ॥३॥
प्रभु प्ररमेश्वर को सदा अपने समीप आने की हिदायत है, पर वे केवल गुरु की कृपा से ही समीप आते हैं यथा :
प्रभु निकटि वसै सभना घट अंतरि गुरमुखि विरलै जाता ॥
नानक नामु मिलै वडिआई गुर कै सबदि पछाता ॥ (पृ ६८)
परमेश्वर निर्भय और सर्वशक्तिमान है इसलिए परमेश्वर पर विश्वास या श्रद्धा रखने वाला जीव निर्भय हो कर विचरण करता है।
जिस दा साहिबु डाढा होइ ॥ तिस नो मारि न साकै कोइ ॥
साहिब की सेवकु रहै सरणाई ॥ आपे बखसे दे वडिआई ॥
तिस ते ऊपरि नाही कोइ कउणु डरै डरु किस का होइ ॥४॥
(बिलावल, महला ३, पृ ८४२)
जनम-मरण के भंवर में पड़े किसी व्यक्ति की सेवा सा सुमिरन की जगह पर घर-घट में और प्रत्येक स्थान पर रमे परमेश्वर का आश्रय लेना चाहिए। यथा :
सदा सदा सो सेवीऐ जो सभ महि रहै समाइ ॥
अवरु दूजा किउ सेवीऐ जमै तै मरि जाइ ॥ (पृ ५०९)