अकालपुरख पर दृढ़ विश्वास अकालपुरख पर दृढ़ विश्वास (Shri Guru Amar Das Ji) - Akal Purakh Par Drdh Vishvas

अकालपुरख पर दृढ़ विश्वास (Shri Guru Amar Das Ji)

गुरू अमरदास जी ने सिखों को केवल मात्र एकाएक परमेश्वर का आश्रय लेने की हिदायत की है। परमेश्वर सर्वशक्तिमान है और उस के समान बड़ी और कोई हस्ती नहीं है।

जो तेरी सरणाई हरि जीउ तिन तू राखन जोगु ॥
तुधु जेवडु मै अवरु न सूझै ना को होआ न होगु ॥१॥ (पृश्३३३)

हरि सराई भजु मन मेरे सभ किछु करणे जोगु ॥
नानक नामु न वीसरै, जो किछु करै सु होगु ॥ (पृ १३४७)

हमें केवल औपचारिक तौर पर अकालपुरख पर आश्रय नहीं रखना चाहिए। हमारी अकालपुरख के संग ऐसा अनन्य व पक्का प्यार होना चाहिए जिस तरह एक आदर्श पति – पत्नी के बीच होता है जो शक्ल से तो भिन्न-भिन्न हैं पर दोनों की ज्योति एक ही होती है। यथा :

धन पिरु एहि न आखीअनि बहनि इकठे होइ ॥
एक जोति दुइ मूरती धन पिरु कहीऐ सोइ ॥३॥

प्रभु प्ररमेश्वर को सदा अपने समीप आने की हिदायत है, पर वे केवल गुरु की कृपा से ही समीप आते हैं  यथा :

प्रभु निकटि वसै सभना घट अंतरि गुरमुखि विरलै जाता ॥
नानक नामु मिलै वडिआई गुर कै सबदि पछाता ॥ (पृ ६८)

परमेश्वर निर्भय और सर्वशक्तिमान है इसलिए परमेश्वर पर विश्वास या श्रद्धा रखने वाला जीव निर्भय हो कर विचरण करता है।

जिस दा साहिबु डाढा होइ ॥ तिस नो मारि न साकै कोइ ॥
साहिब की सेवकु रहै सरणाई ॥ आपे बखसे दे वडिआई ॥
तिस ते ऊपरि नाही कोइ कउणु डरै डरु किस का होइ ॥४॥

(बिलावल, महला ३, पृ ८४२)

जनम-मरण के भंवर में पड़े किसी व्यक्ति की सेवा सा सुमिरन की जगह पर घर-घट में और प्रत्येक स्थान पर रमे परमेश्वर का आश्रय लेना चाहिए। यथा :

सदा सदा सो सेवीऐ जो सभ महि रहै समाइ ॥
अवरु दूजा किउ सेवीऐ जमै तै मरि जाइ ॥ (पृ ५०९)

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