दुर्गा ब्राहमण व ब्रहमचारी साधू से मेल - Meet with Durga Brahmin and Brahmachari Sadhu

दुर्गा ब्राहमण व ब्रहमचारी साधू से मेल

पूर्वोक्त तरह का एक टिकाना, एक जरनैली सड़क के किनारे बसे मेहड़े गांव (परगना मुलाणा) के दुर्गा ब्राह्मण ने भी बना रखा था। सन् 1541 में 21वीं बार हरिद्वार की यात्रा से वापिस आते हुए, इस टिकाने पर उस काफिले ने विश्राम किया जिस में (गुरू) अमरदास बतौर एक हिंदू यात्री शामिल थे। इस काफिले में एक ब्रहमचारी साधु भी शामिल था जो (गुरू) अमरदास जी की सेवा भावना और गुणों के कारण उनकी ओर स्वत: ही आकर्षित हो गया था। जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है कि दुर्गा ब्राहमण ने यह टिकाना यात्रियों के निवास के लिए बनाया था और इस से उसकी धर्मभावना भी किसी सीमा तक पूरी होती थी और आने जाने-वाले यात्री दुर्गा को दान दक्षिणा भी दे जाया करते थे। प्राचीन इतिहास के अनुसार, दुर्गा सामुद्रिक ज्योतिष विद्या की भी जानकारी रखता था। उसने अपने इस ज्योतिष ज्ञान के आधार पर (गुरू) अमर दास जी के चरणों व हाथों पर पदम रेखा बताई, जिसका उसके ज्योतिष के अनुसार बहुत महातम था और उसके अनुसार पदम रेखा वाले मनुष्य का भविष्य में चक्रवर्ती राजा अथवा बहुत ही भाग्यशाली मनुष्य होने का योग होता है। जाते समय दुर्गा ने (गुरू) अमरदास जी से दान दक्षिणा लेते समय यह कह कर रस्मी तौर पर न भी की कि भविष्य में जब ( गुरू) अमरदास जी की पदम रेखा का प्रताप प्रकट होगा, जब वे उस राज भाग के मालिक होंगे। तो वह उन से मुंह मांगा दान प्राप्त करेगा। पदम रेखा और इसके योग की जानकारी मिल जाने के कारण यात्रियों के काफिले में शामिल ब्रहमचारी साधु (गुरू) अमरदास की ओर और अधिक प्रेरित और प्रभावित हुआ ।

हिंदू संस्कारों के कारण (गुरू) अमरदास जी ब्रहमचारी साधु की सेवा भी अधिक करने लग गये। ब्रहमचारी भी उनको अच्छा भक्त जान कर उनके हाथों तैयार किया भोजन खाने लग गया, जबकि पहले वह केवल अपने हाथ का पका भोजन ही सेवन करने की कर्मकांडीय व्यवस्था का धारणकर्ता था।

इसी प्रकार यात्रा तय करते-करते काफिले सहित (गुरू) अमरदास जी तथा ब्रहमचारी साधु बासरके पहुंच गये। एक दिन अचानक ब्रहमचारी साधु ने (गुरू) अमरदास जी से पूछ लिया कि आपका गुरू कौन है? (गुरु) अमरदास जी ने जब यह वास्तविकता बताई कि उन्होंने अभी तक कोई गुरू धारण नहीं किया है। तो ब्रहमचारी साधु लाल पीला हो गया। उसने इस बात का बहुत बुरा मनाया कि इस तथ्य का उस को पहले पता क्यों नहीं, लगा? उसकी रीति के अनुसार निगरे के हाथों भोजन खाना तो कहीं, निगुरे का लो संग या दर्शन मात्र भी शास्त्रों के अनुसार बहुत बुरा काम है। यह सब कुछ कह कर ब्रहमचारी दुखी होता हुआ (गुरू) अमरदास जी से नाराज हो कर सदा के लिए नाता तोड़ कर चला गया।

एक अरसे से (गुरू) अमरदास जी तीर्थ यात्रा गंगा स्नान, देवी देवताओं की पूजा, ब्राह्मणों को पुन्य दान, तथा जाति पात के भेदभाव पर सख्ती से चलने के कर्मकांडों को मानते हुए व्यवहार में ला रहे थे। मन की भटकन बिल्कुल नहीं मिट पाई थी। ब्रहमचारी की बात (गुरू) अमरदास जी के मन पर गहरा घाव कर गई। उन्होंने मन में फैसला किया कि वे आत्मिक मार्गदर्शन के लिए अब किसी पूर्ण पुरूष की अगवाई प्राप्त करके ही रहेंगे।

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