साधु के लक्षण और पाखंड कर्म - Sages Seer and Hypocrisy

साधु के लक्षण और पाखंड कर्म (Shri Guru Amar Das Ji)

गूरु अमरदास जी कहते हैं कि जो मनुष्य अपने पेट अथवा स्वार्थ की ख़ातिर अनेकों पाखंड धारण करते हैं, जो कारोबार व परिभ्रम छोड़ कर दूसरों पर भार बन कर उनके घर से उदर पूर्ति करते हैं, उनको साधु अथवा धर्मात्मा नहीं समझा जा सकता। आत्मिक मंडलों की सैर करने वाले ही साधु या धर्मात्मा पुरुष कहलवा सकते हैं जो अपने मालिक प्रभु को ढूंढ लेते हैं और अपने हृदय घर में आत्मिक अडोलता पैदा कर लेते हैं। यथा :

अभिआगत एहि न आखीअनि जि पर घरि भोजनु करेनि ॥ अुदरै कारणि आपणे बहले भेखि करेनि ॥ अभिआगत सेई नानका जि आतम मउणु करेनि ॥ भालि लहनि सहु आपणा निज घरि रहणु करेनि ॥

(रामकली की बार, महला ३ पृ. १३१)

गुरु अमरदास जी ने बड़े साफ शब्दों में मांग कर खाने का और बेकार तथा निरवट्टू बन कर समाज पर भार डालने का विरोध किया। यथा :

जोगी होना जोगी भवां, घरि घरि भीखिआ लेउ॥ दरगह लेखा मंगीॐ, किंतु किसु उत्तर देउ ।।

(मारू महला 3, पृ 1089)

हरी राम तपे (तपीश्वर ) की पोल खोल कर गुरु अमरदास जी ने गुरमत का उपर्युक्त सिद्धांत, सिखों के प्रति दृढ़ करवाया था। झूठे त्याग तथा पाखंडों को त्याग कर घालि खाइ किछु हथहु देइ नानक राह पछाणहि सेइ वाली गुरमत जीवन पद्धति ही सर्वोत्तम है। सतगुरू साहिबान ने स्पष्ट करके समझा दिया कि भगवे आदि वेश करने से मनुष्य साधु या जोगी नहीं बन जाता। परमेश्वर का मिलाप तो सतगुरु की शिक्षा पर चल कर हीं हो सकता है यथा :

जोगु न भगवी कपड़ी जोगु न मैले वेसि ॥ नानक घरि बैठिआ जोगु पाईऐ सतिगुर कै उपदेसि ॥

(सलोक वारा ते वधक महला 3, पृ 1420)

गुरु अमरदास जी ने यह बात अच्छी तरह दृढ़ करवाई कि परमेश्वर को प्राप्त करने के लिए, पाखंड धारण करने तथा आडंबर करने व्यर्थ हैं। केवल साफ नीयति कर लेने से, बिना घर बार का त्याग किये। परमेश्वर मिल सकता है। यथा :

काइ पटोला पाड़ती, कंबलड़ी पहिरेई ॥ नानक घर ही बैठिआ सहु मिलै जे नीअति रासि करेइ ॥ (1383) ।

गुरु अमरदास जी ने सीधे सादे तथा सरल ढंग से मिसाल दे कर सत्य के अभिलाशी जिज्ञासु को यह बात अच्छी तरह समझा दी कि मालिक प्रभु को रिझाये बिना, बेकार बाहर के आचार विहार तथा वेश धारण करने से प्रभु प्राप्ति नहीं हो सकती है। स्त्री के श्रृंगार की कोई कीमत नहीं है, जब तक उस ने अपने पति के मन में अपने लिए प्यार या समर्पण पैदा नहीं किया है। यथा :

कामणि तउ सींगारु करि, जां पहिला कतु मनाइ ।। भलु सेनै कतु न आवई, एवै बिरथा जाइ ।। (पृ 788)

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