मनहठि कितै उपाइ न छूटीऐ सिम्रिति सासत्र सोधहु जाइ ॥ मिलि संगति साधू उबरे गुर का सबदु कमाइ ॥६॥
खटु दरसन जोगी संनिआसी बिनु गुर भरमि भुलाए ॥ सची बाणी सिउ चितु लागै आवणु जाणु रहाए ॥५॥
पंडित पड़ि पड़ि वादु वखाणहि बिनु गुर भरमि भुलाए ॥ लख चउरासीह फेरु पइआ बिनु सबदै मुकति न पाए ॥
सासत सिंम्रिति बेद चारि मुखागर बिचारे ॥ तपे तपीसर जोगीआ तीरथि गवनु करे ॥ खटु करमा ते दुगुणे पूजा करता नाइ ॥ रंगु न लगी पारब्रहम ता सरपर नरके जाइ ॥५॥ रंग तमासे बहु बिधी चाइ लगि रहिआ ॥ चिति ना आइओ पारब्रहमु ता सरप की जूनि गइआ ॥६॥
सभना का सहु एकु है सद ही रहै हजूरि ॥ नानक हुकमु न मंनई ता घर ही अंदरि दूरि ॥