श्री गुरू अमरदास जी के चरणों में भाई नंद लाल सिंघ जी की श्रद्धांजलि
तीसरी पातशाही, गुरू अमरदास जी सत्य के पालनहार, देशों के सुल्तान और सरवावत तथा बख्शिश के प्रसार के संसार सागर की भांति हैं। मृत्यु का फरिश्ता भी जिस के अधीन है और हिसाब-किताब रखने वाले देवताओं का सुल्तान जिस के अधीन है। इन दोनों की चमक दमक का पहरावा सत्य की मशाल और बंधपतियों वाली हर कली की रवुशी और उल्लास है उसके पवित्र नाम (उर्दू आधारित नाम, अमर दास) का पहला अक्षर ‘अलिफ’ यानी अ, प्रत्येक भटक रहे व्यक्ति के लिए सुख आराम, प्रदान करने वाला है और दूसरा अक्षर मुबारक ‘मीम’ यानी म, हर आतुर और लाचार के कानों को काव्य रस प्रदान करता है। उस के नाम की सौभाग्यशाली ‘रे’ ,यानी र, अक्षर अमर मुखड़े की शोभा और रौनक है तथा नेकी से परिपूर्ण ‘दाल’ यानी द, हर निराश की आशा की किरण और सहारा है। उसके नाम का दूसरा ‘आलिफ’ यानी अ अक्षर, हर पापी को क्षमा कर पनाह देने वाला है और अंतिम लफ्ज़ ‘सीन’ यानी स उस करतार की परछाई हैं।
वाहिगुरू जीओ सत ।
वाहिगुरू जी हाजर नाजर है। शेयर- गुरु अमरदास आ गरामी नजाद जि अफजलि हॅक हसतीश रा मूआई ।।६४।।। अर्थ- गुंरू अमरदास उस महान घराने में से हैं, जिस की हस्ती छ रब्ब के फजल और कर्म से सामग्री मिली है। शेयर-जि वसफो सनाए हमा बरतरीं ब-सदरि हकीकत मुरबअ नशी ।।६५ 11: अर्थ-स्तुति – गायन के कारण वह सब से ऊंचा है।
वह रब्ब सत्य के आसन पर चौकड़ी जमा कर बैठा है। शैयर – जहां गौशन अज नूरि अर्गादि ऊ ।।
जमीनो जमां गुलशन अज दादि ऊ ।।६६।।। अर्थ-उसके वचनों के नूर से यह संसार जगमगा रहा है, और उस के इनसाफ से यह धरती और दुनियां का बाग बना हुआ है। शेयर- दो आलम गुलामश चिह हजदहि हजार।।
फजीलो करामश फजू अज शुमार ।।६७।। अर्थ- हम हजार लोग तो क्या, दोनों जान ही उसके गुलाम हैं। उसकी महानता, स्तुति तथा कृपा के मापदंड से बाहर हैं।