परमेश्वर की रज़ा में राजी रहने का उपदेश - Accept the God's will

परमेश्वर की रज़ा में राजी रहने का उपदेश

खडूर से तीन मीलों की दूरी पर भाई जीवा तथा उसकी सुपुत्री जिवाई रहते थे। बीबी जिवाई गुरू घर के लिए रोज़ खिचड़ी तैयार करके लाया करती थी। एक दिन ज़ोर की आंधी आई। आंधी के कारण खिचड़ी तैयार करने में कठिनाई पेश आई। बीबी जिवाई ने परमेश्वर के सम्मुख अरदास शुरू कर दी कि आंधी हट जाये ताकि खिचड़ी पका कर लंगर में भेजी जा सके।

गुरू अगंद देव जी को जब यह पता चला कि बीबी जिवाई परमेश्वर की रज़ा को राज़ी होकर मानने की जगह पर उसके विपरीत सोचती रही है तो आपने बड़े प्यार से बीबी को रज़ा वाले गुरमत सिद्धांत पर दृढ़ करवाया । बीबी जिवाई को सतगुरू साहिबान ने कहा कि पुत्री ! परमेश्वर जो करता है, ठीक करता है। उसने अपनी रज़ा में सारी प्रकृति तथा सृष्टि को चलाना है। परमेश्वर का प्यार हृदय में बसाने के लिए आवश्यक है कि हम उसकी रज़ा को सदा खुशी से माने ।।

साहिब श्री गुरू नानक देव जी जपुजी की वाणी में, जो सिखों के रोज़ाना नितनेम की वाणी है, रज़ा संबंधी चार बार यह पवित्र शब्द दुहराए हैं :

“जो त गावै साई अली कार”

फिर, सच्चा बनने तथा झूठ की पोल तोड़ने के लिए भी रज़ा के मालिक के हुकम में खुशी में चलने का उपदेश दिया है।

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