एक बार, जीवन में पहली बार गुरू नानक देव जी की वाणी सुन कर आप का गुरू घर से प्रेम हो गया और आप 62 वर्ष की आयु में गुरू अंगद देव जी की शरण में आ गये और आप ने सिखी धारण कर ली। आपने न केवल गुरू घर के सभी सिद्धांतों को अच्छी तरह समझ कर माना और जीवन में उतारा, बल्कि 62 वर्ष की आयु से 73 वर्ष की वृद्धावस्था में गुरू घर की वह सेवा की, परमेश्वर का ऐसा सिमरन किया तथा गुरू के साथ ऐसा गहरा प्यार डाला कि गुरू गद्दी की महान् ज़िम्मेवारी संभालने वाले बन गये। ।।
(गुरू) अमरदास जी को हर प्रकार से योग्य समझ कर गुरू अंगद देव जी ने उचित अवसर देख कर सारी संगत को सूचित कर दिया कि गुरू नानक देव जी द्वारा प्रदत्त सिखी प्रचार की जिम्मेवारी उनके पश्चातू (गुरू) अमरदास जी ही निभायेंगे । जनवरी, 1522 अथवा 1 माघ, संवत् 1609 को गुरू अंगद देव जी ने सारी संगत को एकत्र करके (गुरू) अमरदास जी को गुरू नानक देव जी की गद्दी(अर्थात् धर्म प्रचार की ज़िम्मेवारी) सौंप दी। गुरबाणी का संपूर्ण संग्रह भी गुरु अमरदास जी के हवाले कर दिया। भाई बुड्ढा जी तथा भाई पारो जी आदि सभी मुख्यी सिख इस समय मौजूद थे।
गुरू अमरदास जी को गुरू नानक देव जी की गुरू गद्दी की पूरी ज़िम्मेवारी देने के कुछ दिन पश्चात् 29 मार्च, सन् 1552 में साहिब सतगुरू अंगद देव जी ज्योति में विलीन हो गये।