जी उस समय बच्चों की कुश्तियां करवा रहे थे । हुमायूं के आने के बावजूद, आप अपने काम में व्यस्त रहे। वैसे भी गुरू अंगद देव जी स्वतंत्र स्वभाव के मालिक थे और सदा ईश्वर के संग जुड़े रहने के कारण बेपरवाह थे। हुमायूं ने इसमें अपना अपमान महसूस किया और गुस्से में आकर उसका हाथ तलवार की मुट्ठी पर चला गया। गुरू अंगद देव जी ने बड़ी निर्भयता तथा बहादुरी से हसते हुए कहा, जब मैदाने जंग में तुझे शेरशाह सूरी के मुकाबले पर तलवार चलाने की आवश्यकता थी, उस समय तो तू तलवार चला नहीं सका और अब तू फ़कीरों-दरवेशों पर तलवार चलाना चाहता है।”हुमायूं इन वचनों से बहुत शर्मिंदा हुआ और उसने अपनी भूल की क्षमा मांगी। गुरू जी ने उसको सब्र-संतोष में रह कर खुदा का आसरा लेने का उपदेश दिया।