गुरू अंगद देव जी इस बात को भली-भांति समझते थे कि मज़बूत तथा अरोग्य शरीर में ही शक्तिशाली मन निवास कर सकता है। हिन्दुस्तान के अधिकतर मत-मतांतर शरीर को संभालने, इसको पृष्ट तथा मज़बूत रखने को मिथ्या कर्म ही समझे बैठे थे। गुरमत में शरीर को अनावश्यक तथा बेकार के कष्टों में डालकर गलाने तथा कमज़ोर करने को बुरा समझा गया है। शरीर को मरियल टट्टू जैसा बना कर खींचते फिरना किस अर्थ ? यदि शरीर मज़बूत तथा अरोग्य होगा तो उसके द्वारा हम सेवा भी अधिक कर सकेंगे तथा सिमरन में भी मन लगा सकेंगे। रोगों का मारा हुआ शरीर सिमरन करेगा तो क्या सेवा में हिस्सा ले सकेगा ? अच्छी आदतें, अच्छी खुराक, अच्छा रहन-सहन, सफाई, स्नान तथा व्यायाम आदि के नियमों द्वारा ही हम अरोग्य शरीर के मालिक हो सकते हैं। काम तथा क्रोध को गला देते हैं। अंदर तथा बाहर से निर्मल रहना आवश्यक है, खान शरीर को सावधान तथा चुस्त रखता है। इनके द्वारा शरीर अरोग्य तथा बलवान रख कर ही सेवा सिमरन की राह पर चलने की ताकीद की गई है। शारीरिक व्यायाम शरीर को अरोग्य रखने तथा इसको मज़बूत बनाने में बहुत सहायक सिद्ध होता है। गुरू अंगद देव जी ने इसी आशय से खडूर साहिब में मल्ल अखाड़ा स्थापित किया । वहां पर रोज़ाना गुरू साहिब अपने सिखों को, और विशेष करके बच्चों को कुश्तियां करवाया करते थे। सुबह के दीवान के अनुसार गुरमत प्रचार के प्रत्येक केन्द्र के साथ कुश्ती, कबड्डी लड़ने तथा व्यायाम करने के लिए व्यायामशालाएं थीं। सिखों में शारीरिक मज़बूती, दृढ़ता, सिपाहीगीरी की बेमिसाल योग्यता तथा फ़ौजी टक्कर का जो असीम बल, बाद के इतिहास में दिखाई देता है, उस सब का जन्मदाता ‘मल्ल अखाड़ा’ ही । था। मन की मज़बूती के लिए बाणी तथा सतसंग बड़े साधन थे, पर मज़बूत मन के टिकने के लिए
मज़बूत शरीर की सृजना शारीरिक व्यायाम द्वारा ही हो सकती है।