गुरू अंगद देव जी ने शीहें को लोक–दिखावे तथा भ्रमों के इस कुकर्म को करने से वर्जित कर दिया और खुशी के इस समारोह को संगत बुला कर मनाने का हुकम दिया। कुर्बानी के नाम पर बकरों को मार कर पाप लीला वाली इस रोटी से वर्जित कर दिया। ऐसे समारोह परिवार में सिखी सिद्धांत परिपक्व करने के आशय से होने चाहिएं।
भाई वीर सिंह जी के अनुसार- “यहां तक यह पाबन्दी सिखों में अब तक काम करती है कि गुरू के लंगर में मास पकने की आज्ञा नहीं….. क्योंकि लिखा है कि गरू के लंगर का सब कोई अधिकारी है। मास पके तो हर कोई लंगर का अधिकारी नहीं रह जाता। केवल मांसाहारी ही सेवन कर सकते हैं। यह भेदभाव गुरू घर में स्वीकार्य नहीं है।”