दिखावे के रीति-रिवाज़ों से शीहें उप्पल को रोकना - Stopping Epilepsy from the Rituals of Appearance

दिखावे के रीति-रिवाज़ों से शीहें उप्पल को रोकना

शीहां उप्पल, जिस ने गुरू नानक देव जी से सिखी धारण की थी, के घर पुत्र ने जन्म लिया। लोक-दिखावे के कारण उसकी पलि ने प्रचलित भेड़ चाल के अधीन इस खुशी के अवसर पर एक समारोह बरादरी हेतु करने का फैसला किया। इसलिए प्रचलित भ्रमों द्वारा भरे विश्वासों के अधीन, मर चुके बुजुर्गों की पूजा के नाम पर उसने सारी बिरादरी को बकरों की कुर्बानी देकर उनके मास से भोजन करवाना था।

गुरू अंगद देव जी ने शीहें को लोक–दिखावे तथा भ्रमों के इस कुकर्म को करने से वर्जित कर दिया और खुशी के इस समारोह को संगत बुला कर मनाने का हुकम दिया। कुर्बानी के नाम पर बकरों को मार कर पाप लीला वाली इस रोटी से वर्जित कर दिया। ऐसे समारोह परिवार में सिखी सिद्धांत परिपक्व करने के आशय से होने चाहिएं।

भाई वीर सिंह जी के अनुसार- “यहां तक यह पाबन्दी सिखों में अब तक काम करती है कि गुरू के लंगर में मास पकने की आज्ञा नहीं….. क्योंकि लिखा है कि गरू के लंगर का सब कोई अधिकारी है। मास पके तो हर कोई लंगर का अधिकारी नहीं रह जाता। केवल मांसाहारी ही सेवन कर सकते हैं। यह भेदभाव गुरू घर में स्वीकार्य नहीं है।”

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