आपस में एक पंक्ति में बराबर हो कर बैठते थे। यहां किसी भी जाति के संग कोई विशेष व्यवसर नहीं किया जाता था और इसी प्रकार लंगर तैयार करने में भी हर व्यक्ति शामिल हो सकता था, केवल सफ़ाई के नियमों का पालन और श्रद्धा भावना की आवश्यकता थी। ६ लंगर की मर्यादा के कारण सिखों में अपनी आय का दशांश निकालने की रीति आरंभ हो गयी । बांट कर खाने के उपदेश पर अमल करने तथा भ्रातृभाव बढ़ाने में भी लंगर की मर्यादा ने बहुत सुंदर योगदान दिया। सिखी की व्यावहारिक कमाई में सेवा को बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। लंगर की मर्यादा ने सिखों में सेवा भावना को उजागर करने में प्रधान रोल अदा किया है।
गुरू अंगद देव जी के महिल (पलि) माता खीवी जी ही लंगर का सारा प्रबंध चलाते थे। वे सदा लंगर की सेवा में व्यस्त रहते थे। लंगर पूर्ण स्वच्छता तथा श्रद्धा से तैयार किया जाता था। गुरू अंगद देव जी के लंगर में पौष्टिक खुराक की दृष्टि से अच्छे पौष्टिक पदार्थ बांटे जाते थे। सत्ते तथा बलवंड की वार में माता खीवी जी की ओर से इस लंगर में घी वाली खीर बांटे जाने का वर्णन है। माता खीवी जी कि हिदायत के अनुसार भाई किदारा तथा भाई जोध रसोइआ आदि गुरसिख भी लंगर की सेवा करते थे।
ऊंच-नीच के भेदभाव को दूर करने तथा बांट कर सेवन करने की प्रेरणा देने के साथ-साथ लंगर एक और बड़ी सामाजिक आवश्यकता को पूरा करता था। निराश्रित, ज़रूरतमंद, असमर्थ या अंगहीन लोग इज्जत से प्रसाद सेवन कर सकते थे। इसके अलावा परदेसियों, मुसाफ़िरों तथा बाहर से आये गुरू घर के श्रद्धालुओं की आवश्यकताओं की पूर्ति भी लंगर से हुआ करती थी । सिख लहर को लोकप्रियप्यारा तथा मशहूर बनाने में लंगर की मर्यादा ने बहुत सहायता की। इस प्रकार लंगर की मर्यादा ने सिखी के प्रचार में बहुत अच्छा योगदान डाला ।
लंगर की मर्यादा द्वारा सिखों में अपने मत के स्वतंत्रत, विलक्षण तथा संपूर्ण होने की चेतना का विकास हुआ, जिसने इस मत के पैरोकारों में अपने स्वतंत्र व भिन्न आस्तित्व का विचार उत्पन्न किया।