अचानक माता खीबी जी को एक दिन भाई जोध की इस आश्चर्यजनक साधना का पता चल गया। माता जी भाई बुड्ढा जी को साथ लेकर गुरू अंगद देव जी के पास पहुंच गये। माता जी यह सब कुछ सहन न कर सके कि गुरू घर का इतना बड़ा सेवक इस ढंग से उदरपूर्ति करे। गुरू अंगद देव जी ने भाई जोध को अपने पास बुला भेजा। भाई जोध ने मामले को टालने के बहुत प्रयास किये, पर गुरू जी ने उसकी पेश न जाने दी।
भाई जोध ने एक बात तो यह बताई कि वह गुरू घर पर अपना बोझ नहीं डालना चाहता था और दूसरे बात यह बतायी कि जाति का ब्राह्मण होने के कारण उसमें जाति अभिमान बहुत था। गुरू घर के उपदेश के अनुसार इस प्रकार के अभिमान को मारे बिना आत्मिक रस नहीं आ पाता । यह सब सोच कर वे लंगर में हर नीचे ऊंचे मनुष्य के लिए प्रसाद तैयार करता था उनके झूठे बर्तन साफ करता था। भाई जोध के विचार अनुसार जात पात तथा छुआछुत के भूत को पूरी तरह मन में से निकालने के लिए वह संगत में आये प्रत्येक ऊंचे-नीचे व्यक्ति की जूठ खाने का काम कर रहा था। आत्मिक राह के एक सच्चे राहगीर की यह साधना सचमुच ही अनोखी तथा अजीब थी। सिख मत एक सामाजिक धर्म था। भाई जोध का आशय अच्छा होने के बावजूद सतगुरू साहिबान ऐसी मर्यादा को अपने सिखों के लिए पूरी तरह अनुपयुक्त समझते थे। भाई जोध को आगे से इस प्रकार की जूठ खाने से रोकने के लिए यह कह दिया गया कि भाई जोध देवता जी, अब तो तुम्हारे मन में तथा शरीर में सच्चा परमेश्वर बसता है, इसलिए इस बात को ध्यान में रख कर शरीर को जूठ अन्न देना बंद कर दो और अब आगे से सुच्चा भोजन सेवन करो । कुछ भी हो, सिख ने ब्राह्मणों के घर में जन्म लेकर भी जाति अभिमान जैसे बड़े दोष को अपने मन में से पूरी तरह निकाल दिया था।