जाति-अभिमान को मारने के लिए भाई जोध देवता का आश्चर्यजनक तरीका - The Wonderful Way of Brother Jodha Devta to Kill Caste Pride

जाति-अभिमान को मारने के लिए भाई जोध देवता का आश्चर्यजनक तरीका

गुरू अगंद देव जी के सतसंग से प्रभावित लेकर एक बार एक ब्राह्मण जोध ने सदा के लिए ही गुरू साहिब के चरणों में रह कर जीवन सफल करने का इरादा बना लिया। वह अति-पवित्र जीवन का धारणकर्ता और ऊंचे आचार व्यवहार का पुरुष था। माता खीबी जी तथा बीबी विराई ने लंगर का प्रबंध बहुत सुंदर बना रखा था। चौधरी तख्त मल के अलावा गांव के कई ज़िमींदार दूध, अन्न, दाल आदि की सेवा करते थे। भाई जोध ने लंगर की सेवा की अधिकतर ज़िम्मेवारी अपने सिर पर ले ली थी। वह बड़ी सफ़ाई से लंगर तैयार करने से लेकर, जूठे बर्तन मांजने तथा लंगर के खर्च आदि का हिसाब-किताब भी रखने की सेवा करता था। इस सब के पीछे उसकी अभिलाषा यह थी कि हर ऊंची नीची जाति के लोगों की सेवा करके अपने मन में जाति अभिमान आदि की जन्म-जन्मांतरों की मैल को धो सके। दिन रात इतनी कड़ी सेवा करने के पश्चात् भी वह अपना भार गुरू के लंगर पर डालना ठीक नहीं समझता था। वे संगत के लंगर सेवन कर लेने के पश्चात् उनके जूठे बर्तनों में से बची हुई जूठन को बिल्कुल गुप्त रूप से किसी कोने में बैठ कर सेवन कर लेता। इस बात की किसी को खबर न होने देते।

अचानक माता खीबी जी को एक दिन भाई जोध की इस आश्चर्यजनक साधना का पता चल गया। माता जी भाई बुड्ढा जी को साथ लेकर गुरू अंगद देव जी के पास पहुंच गये। माता जी यह सब कुछ सहन न कर सके कि गुरू घर का इतना बड़ा सेवक इस ढंग से उदरपूर्ति करे। गुरू अंगद देव जी ने भाई जोध को अपने पास बुला भेजा। भाई जोध ने मामले को टालने के बहुत प्रयास किये, पर गुरू जी ने उसकी पेश न जाने दी।

भाई जोध ने एक बात तो यह बताई कि वह गुरू घर पर अपना बोझ नहीं डालना चाहता था और दूसरे बात यह बतायी कि जाति का ब्राह्मण होने के कारण उसमें जाति अभिमान बहुत था। गुरू घर के उपदेश के अनुसार इस प्रकार के अभिमान को मारे बिना आत्मिक रस नहीं आ पाता । यह सब सोच कर वे लंगर में हर नीचे ऊंचे मनुष्य के लिए प्रसाद तैयार करता था उनके झूठे बर्तन साफ करता था। भाई जोध के विचार अनुसार जात पात तथा छुआछुत के भूत को पूरी तरह मन में से निकालने के लिए वह संगत में आये प्रत्येक ऊंचे-नीचे व्यक्ति की जूठ खाने का काम कर रहा था। आत्मिक राह के एक सच्चे राहगीर की यह साधना सचमुच ही अनोखी तथा अजीब थी। सिख मत एक सामाजिक धर्म था। भाई जोध का आशय अच्छा होने के बावजूद सतगुरू साहिबान ऐसी मर्यादा को अपने सिखों के लिए पूरी तरह अनुपयुक्त समझते थे। भाई जोध को आगे से इस प्रकार की जूठ खाने से रोकने के लिए यह कह दिया गया कि भाई जोध देवता जी, अब तो तुम्हारे मन में तथा शरीर में सच्चा परमेश्वर बसता है, इसलिए इस बात को ध्यान में रख कर शरीर को जूठ अन्न देना बंद कर दो और अब आगे से सुच्चा भोजन सेवन करो । कुछ भी हो, सिख ने ब्राह्मणों के घर में जन्म लेकर भी जाति अभिमान जैसे बड़े दोष को अपने मन में से पूरी तरह निकाल दिया था।

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