सरब धरम महि सेसट धरम् ।
हरि को नामु जपि निरमल करमु।
गुरूदेव जी ने कहा – जैसे कि सर्वविदित है कि यह वाणी सभी प्रकार के साम्प्रदायिक बंधनों से ऊपर केवल और केवल ब्रह्मज्ञान है। इसलिए समस्त संगत का ग्रन्थ साहब से गुरू-शिष्य का नाता बनता है। इस वाणी में कोई गीत अथवा कोई कहानी नहीं, यह तो केवल ब्रह्म विचार है। अत: यह सम्पूर्ण वाणी लोक भाषा में संग्रह की गई है। जिससे प्रत्येक श्रेणी अथवा वर्ग के जिज्ञासु स्वयँ अध्ययन करके सीध। लाभ उठा सके। आप इस वाणी में आश्चर्यजनक आधुनिकता पायेंगे जो कि समय की कसौटियों पर खरी उतरेगी क्योंकि इस में सर्वमान्य सत्य तथ्यों पर आधारित सच्चाइयाँ ही सच्चाइयाँ हैं। आप जी ने कहा – मनुष्य चाहे किसी देश, नस्ल अथवा सम्प्रदाय से सम्बन्धित हो, भले ही आस्तिक प्रवृत्ति का न होकर नास्तिक ही हो, वह चाहे तो इस आदि ग्रन्थ से मार्गदर्शन पा सकता है, क्योंकि इस ग्रन्थ की वाणी सहिष्णुता से ओत-प्रोत है और किसी भी प्रकार की संकीर्णता को निकट नहीं आने देती – अर्थात इस ग्रन्थ की वाणी में किसी प्रकार के भेदभाव को कोई स्थान नहीं दिया गया। यदि कोई जिज्ञासु भक्तिभाव से इस वाणी का पढ़ेगा, सुनेगा अथवा सुनायेगा तो वह अवश्य ही अपने मन में शान्ति का अनुभव करेगा, जिससे उसका कल्याण होगा।
अन्त में गुरूदेव जी ने घोषणा की कि अन्य सम्प्रदायों के ग्रन्थ उन महापुरूषों ने स्वयँ तैयार नहीं करवाये, वे सभी ग्रन्थे का अस्तित्त्व कालान्तर में उनके अनुयायियो द्वारा किया गया। अत: उनकी प्रमाणिकता पर संदेह किया जा सकता है किन्तु हमने समय रहते स्वयँ गुरमत सिद्धान्तों का मानव समाज के उत्थान के लिए संग्रह वाणी के रूप में सम्पादन करके आदि ग्रन्थ तैयार करवाया है। जिससे भविष्य में गुरूमत सिद्धान्त पर कोई मतभेद उत्पन्न होने की सम्भावना न रहे। इसके साथ ही गुरूदेव जी ने संगत को सतर्क किया कि जैसा कि आप जानते हैं। कि आदि बीड़ की प्रतिलिपि तैयार करते समय कुछ लिखने वालों ने मनमानी करते हुए नये ग्रन्थ में कुछ रचनाएं अपनी ओर से भी लिख दी थी जो कि प्रमाणिक नहीं थी अतः वह भाई बन्नो वाला ग्रन्थ स्वीकार्य नहीं है क्योंकि कालान्तर में बहुत से तथाकथित विद्वान ऐसा करना अपना अधिकार समझने लगते हैं। जिससे ग्रन्थ की प्रमाणिकता ही समाप्त हो जाती। इसलिए हम सभी ने वाणी की शुद्धि के लिए सावधान रहना है। जिससे भविष्य में मूल वाणी में कोई परिवर्तन न हो सके।