
02August
भाई बन्नो जी द्वारा तैयार करवाई गई बीड़
भाई बन्नो जी जिला गुजरात पश्चिमी पँजाब की तहसील फालिया के एक गाँव मांगट के निवासी थे। आप जी श्री अर्जुन देव जी के अनन्य सिक्ख थे। जब श्री गुरू अर्जुन देव जी आदि बीड़ साहब की सम्पादन का कार्य करवा रहे थे तो उन दिनों भाई बन्नों जी की नियुक्ति सभी प्रकार की देखरेख व आवश्यक सामग्री जुटाने की थी। जब गुरूदेव जी ने महसूस किया कि लगभग नया ग्रन्य तैयार होने वाला है तो उनके समक्ष एक ही प्रश्न था कि नये ग्रन्थ को श्री हरि मन्दिर में प्रकाशमान करने के पश्चात् इस ग्रन्थ की प्रतिलिपि तैयार करना असम्भव हो जायेगा। अतः समय रहते ही इस कार्य को भी साथ साथ कर लेना चाहिए। उन्होंने अपने हृदय की बात भाई बन्नो जी को बताई तो उन्होंने तुरन्त उन लिखने वालों को एकत्रित किया जो गुरूवाणी के गुटके अथवा पोथियां लिखकर संगतों में वितरण किया करते थे। इन लोगोंने ने इस कार्य को अपनी जीविका का साधन बनाया हुआ था। पुरातन ग्रन्थों में इन की संख्या 12 बताई गई है। गुरूदेव जी ने, ग्रन्थ के वह भाग जो पूर्ण हो चुके थे, लिखने के लिए उन लोगों में बाँट दिये और प्रतिलिपि तैयार करने की आज्ञा दी। इन सभी लोगों ने यह कार्य लगभग डेढ़ मास में सम्पूर्ण कर दिया। जैसे ही मुख्य ग्रन्थ आदि बीड़ का कार्य सम्पन्न हुआ। गुरूदेव जी ने भाई बन्नो जी को आदेश दिया कि इन दोनों ग्रन्थों को लाहौर ले जाये और वहाँ से इनकी जिल्द बनवा कर लाये। भाई बन्नो जी ने ऐसा ही किया। जब जिल्द का कार्य करवा कर वापिस लौटे तो मुख्य बीड़ को गुरूदेव जी ने हरि मन्दिर में प्रकाशमान करवा कर बाबा बुड्ढा जी को गुरू घर का प्रथम ग्रन्थी नियुक्त किया और दूसरी बीड़ जो कि 12 लिवारियों द्वारा लिपिबद्ध की गई थी, जाँचा तो उन्होंने पाया कि लिखारियों ने कुछ पद अपनी ओर से इसमें सम्मिलित कर दिये जो मूल ग्रन्थ में उन्होंने नहीं लिखवाये थे। इस बात को लेकर गुरूदेव जी बहुत अप्रसन्न हुए और उन्होंने संगत को सतर्क किया कि इस प्रकार यदि मूल वाणी से खिलवाड़ किया गया तो वह समय जल्दी आ जायेगा जब वाणी की प्रमाणिकता ही समाप्त हो जायेगी। अतः हम इस भाई बन्नो वाली बीड़ को मान्यता ही प्रदान नहीं करते ताकि आइंदा कोई ऐसी मनमानी हरकत न कर सके। आप जी ने वाणी में मिलावट को शुद्ध दूध में क्षार मिलाने वाली करतूत बताया। इस प्रकार भाई बन्नों वाली बीड़ का नाम रखारी बीड़ पड़ गया।