
03August
भाई बहिलो जी (Bhai Behlo Ji)
भाई बहिलो जी पंजाब के मालवा क्षेत्र के निवासी थे। आप जी भी सखी सरवर की उपासना करते थे परन्तु आध्यात्मिक प्राप्तियों के लिए संघर्ष करना आपका मुख्य प्रयोजन था। एक दिन आप को कुछ पड़ोसियों ने प्रेरणा दी कि आप श्री गुरू नानक देव जी के उत्तराधिकारी श्री गुरू अर्जुन देव जी की शरण में जाओ, जहां आप को शाश्वत ज्ञान की प्राप्ति हो जायेगी। आप जी सिक्खों के एक जत्थे के साथ इस अभिलाषा को लेकर अमृतसर दर्शनों को आ पहुँचे। उन दिनों श्री गुरू अर्जुन देव जी रामदास सरोवर के मध्य में हरि मन्दिर नामक भवन निर्माण का कार्य प्रारम्भ करवाने जा रहे थे। इस कार सेवा (श्रम दान) के लिए दूरदराज से संगतें बड़े काफिलों के रूप में एकत्रित होकर आ रही थी। उस समय गुरूदेव के समक्ष ज्वलंत समस्या यह थी कि उच्च श्रेणी की ईटे कहाँ से मंगवाई जाये। गुरूदेव ने निर्णय लिया कि ईटों का उत्पादन अपना ही होना चाहिए। अतः ईंटों के लिए आँवा लगाया गया। एक विशेषज्ञ ने सुझाव दिया कि यदि आँव में उपलों की आँच का प्रबन्ध हो जाये तो धीमी, एक गति की आँच से ईटे उम्दा और लाल बनती हैं। लकडी इत्यादि ईधन का प्रबन्ध तो सहज में हो सकता था, परन्तु उपले जुटा पाना बहुत कठिन कार्य था। इसका कारण यह था कि किसान गोबर को खेत में खाद के लिए प्रयोग करते थे और ग्रामीण स्त्रियाँ उपलों का प्रयोग रसोई घर के ईधन के रूप में करती थी, अत: गोबर का अभाव स्पष्ट था। इसलिए इस सुझाव पर कार्य करना असम्भव लग रहा था। जब यह बात भाई बहिलो जी को मालूम हुई तो उन्होंने यह सेवा करने का संकल्प ले लिया। किन्तु उसके मार्ग में भी गोबर के अभाव की समस्या सामने आई। इस बीच उनको मालूम हुआ कि धीमी आँच के लिए किसी भी जीव के मैले को प्रयोग में लाया जा सकता है। अतः उन्होंने पहले पहले घोड़ों और अन्य पशुओं का मैला एकत्र कर आँवे में डालना प्रारम्भ किया परन्तु यह मैला भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध न था। अन्त में आप ने मनुष्यों आदि का मैला आवे में डलवाने की योजना बनवाई। आप जी समस्त सफाई कर्मचारियों से मिले, उन्हें विश्वास में लिया और उन्हें प्रेरित किया कि वह मैला आवे में डालें और स्वयँ भी उनका साथ देने लगे। उन दिनों मैला ढोना समाज में निम्न श्रेणी का कार्य माना जाता था। साध रिणत: यह कार्य कोई नहीं करता था, परन्तु भाई बहिलो जी ने निष्काम सेवा की अभिलाषा से निम्न स्तर का कार्य करने में कोई घृणा नहीं की, उनकी दृष्टि में सभी मनुष्य समान आदर के पात्र थे। वह गुरूदेव के प्रवचन प्रतिदिन सुनते थे कि किरत – कार (परिश्रम) कोई भी हो, गुरू घर में स्वीकार्य है। अत: आप जी ने अपने हृदय को नाम-स्मरण से इतना उज्ज्वल कर लिया था कि आपको प्रत्येक मनुष्य एक जैसा ही दिखाई देता था। सेवा सम्पूर्ण हुई, आवा पकाया गया। जब आवा खोल कर गुरूदेव ने ईटे देखी तो वे उत्तम श्रेणी की लाल थी। गुरूदेव बहुत प्रसन्न हुए। जब उन्हें बताया गया कि इस कार्य के लिए सबसे बड़ा योगदान बहिलो जी का है तो उन्होंने बहिलो जी को अपने सीने से लगाया और आशीष दी – भाई बहिलो ! सब से पहले अर्थात बहिलो जी को सेवकों की श्रेणी में प्रथम स्थान प्राप्त होगा।