निश्चित समय पर भाई बुद्ध शाह जी के यहाँ एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिस में समस्त संगत के लिए लंगर (भण्डारा) का वितरण भी था। गुरूदेव के वहाँ विराजने से संगत का बहुत बड़े पैमाने पर जमावड़ा हो गया। सर्वप्रथम कीर्तन की चौकी हुई, तपश्चात गुरूदेव ने समस्त मानवता के प्रति प्रेम के लिए प्रवचन कहे और अन्त में प्रभु चरणों में अरदास (प्रार्थना) की गई कि हे प्रभु ! भाई बुद्ध शाह के ईटों के भट्ठे की ईंटे पूर्ण रूप से पक्क जायें। समस्त संगत ने भी इस बात को ऊँचे स्वर में कहा – भाई बुद्धु शाह का आवा पक्का होना चाहिए। किन्तु मुख्य द्वार के बाहर खड़े एक व्यक्ति ने संगत के विपरीत गुहार लगाई। भाई बुद्ध का आवा कच्चा ही रहना चाहिए।
संगत का ध्यान बाहर खड़े उस व्यक्ति पर गया जिस का नाम भाई लखू पटोलिया था, वह व्यक्ति मस्ताना फकीर था, इस लिए इसके वस्त्र मैले, पुराने तथा अस्त-व्यस्त थे किन्तु गुरूदेव के दर्शनों की लालसा उसे वहाँ खींच लाई थी। स्वागत द्वार पर खड़े मेजबानों ने उसे अथिति नहीं माना और प्रवेश नहीं करने दिया। इस पर भाई लखू पटोलिया (मस्ताना फकीर) जी ने उनसे निवेदन किया कि मैं केवल गुरूदेव के दर्शन की अभिलाषा लेकर आया हूँ और मुझे किसी वस्तु की इच्छा नहीं है। किन्तु उसकी विनती पर किसी ने ध्यान नहीं दिया अपितु तिरस्कार की दृष्टि से देखकर दूर खड़े रहने का आदेश दिया।
जब गुरूदेव ने गुहार करने वाले व्यक्ति के विषय में जानकारी प्राप्त की तो उन्होंने भाई बुद्ध शाह से कहा – आप से बहुत बड़ी भूल हो गई है। इस बाहर खड़े व्यक्ति ने हृदय से प्रार्थना के विपरीत गुहार लगाई है। अतः अब हमारी प्रार्थना प्रभु स्वीकार नहीं करेंगे क्योंकि वह अपने भक्तजनों की पीड़ा सर्वप्रथम सुनते हैं। यह सुनते ही भाई बुद्ध गुरूदेव के चरणों में गिर पड़ा और कहने लगा – मैंने इस बार बहुत भारी कर्ज लेकर भट्ठा पकवाने पर व्यय किया है। यदि इस बार भी ईटे उचित श्रेणी की न बन पाई तो मैं कहीं का नहीं रहूँगा। तब गुरूदेव ने समस्या का समाधान किया और कहा – यदि तुम भाई लवू पटोलिया जी को प्रसन्न कर लो तो वही आप के लिए कुछ कर सकते हैं मरता क्या नहीं करता, किवदन्ति अनुसार भाई बुद्ध शाह प्रायश्चित करने के लिए भाई लवू पटोलिया के चरणों में जा गिरा और विनती करने लगा कि मुझे आप क्षमा कर दें, मुझ से अनजाने में आपकी अवज्ञा हो गई है। दयालु भाई लवू जी उसकी दयनीय दशा देखकर पसीज गये और उन्होंने वचन किया, तुम्हारा आवा तो अब पक्का हो नहीं सकता किन्तु दाम तुम्हें पक्की ईंटों के समान ही मिल जायेंगे।
भाई लखू जी ने वचन सत्य सिद्ध हुए। भाई बुद्ध का आवा इस बार भी कच्चा ही निकला परन्तु वर्षा ऋतु के कारण ईंटों का अभाव हो गया। स्थानीय प्रशासन को किले की दीवार की मरम्मत करवानी थी अथवा नव निर्माण का कार्य समय पर पूरा करना था, अतः ठेकेदारों ने भाई बुद्ध को पक्की ईटों का दाम देकर समस्त ईटे खरीद ली।