ये भट्ट जो कि अधिकांश कवि भी थे, हृदय में तीव्र जिज्ञासा लेकर गोइंदवाल गुरूदेव के दर्शनों को उपस्थित हुए। इनकी गिनती ग्यारह थी। रास्ते में इन्होंने गुरूदेव की स्तुति में सिक्खों के जत्थे से अनेकों बातें सुनी, जिस के आधार पर उनका अनुमान था कि गुरू महाराज की आयु प्रौढ़ावस्था की तो होगी किन्तु उन्होंने जब गुरूदेव को एक नवयुवक के रूप में देखा तो उनके आश्चर्य का ठीकाना न रहा। जब उन्होने गुरूदेव के संग समीप्ता प्राप्त की तो उन्होंने अनुभव किया कि जैसा सत्य गुरू सुना था वैसा ही पाया है।
गुरूदेव के बड़े भाई पृथीचन्द के अड़ियल व्यवहार को उन्होंने देखा उस के विपरीत श्री गुरू अरजन देव जी सदैव शांत, शीतल व गम्भीर बने रहते उनकी मधुरता उनको मंत्रमुग्ध करती चली गई क्योकि यह समय गुरूदेव के धैर्य की परीक्षा का समय था। इस बीच भट्टों ने पहले चारों गुरूजनों के विषय में संगत से प्रयाप्त जानकारी प्राप्त कर ली। इस प्रकार उनके मन पर गुरूजनों के प्रति बहुत प्रभाव पड़ा और उन्होंने पाचों ही गुरूजनों की स्तुति में काव्य रचनांए लिखी जो कि बाद में आदि ग्रंथ साहब में संकलित कर ली गई। इन रचनाओं को भट्ट कवियों के सवैये कहा जाता है।