दोआबा का चौधरी - Doaba Choudhury

दोआबा का चौधरी

श्री गुरू अर्जुन देव जी के दरबार में एक दिन भाई पुरिया व भाई चूहड़ के नेतृत्व में दोआबा क्षेत्र का चौधरी मंगलसेन आया। उसने गुरूदेव जी के सम्मुख विनती की कि कोई ऐसी युक्ति बताएं, जिससे हम लोगों का भी कल्याण हो जाये। इस पर गुरूदेव जी ने कहा – जीवन में सत्य पर पहरा देना सीखो, कल्याण अवश्य ही होगा। यह सुनते ही चौधरी मंगलसेन बोला – यह कार्य असम्भव तो नहीं, बल्कि कठिन जरूर है। उत्तर में गुरूदेव जी ने कहा – मानव जीवन में कल्याण चाहते हो और उसके लिए कोई मूल्य भी चुकाना नहीं चाहते। दोनों बातें एक साथ नहीं हो सकती। कुछ प्राप्ति करने के लिए कुछ मूल्य तो चुकाना ही पड़ता है। मंगलसेन गम्भीर हो गया और बोला – यकायक जीवन में क्रान्ति लाना इतना सहज नहीं क्योंकि हमारा अब तक स्वभाव परिपक्व हो चुका है कि हम झूठ के बिना रह नहीं सकते। गुरूदेव जी ने सुझाव दिया कि धीरे धीरे प्रयास करो, जहाँ चाह वहाँ राह, यदि आप दृढ़ता से कोई कार्य करें तो क्या नहीं हो सकता, केवल संकल्प करने की आवश्यकता है। मंगलसेन सहमति प्रकट करते हुए कहने लगा – इस कठिन कार्य के लिए कोई प्रेरणा स्त्रोत भी होना चाहिए। जब हम डगमगाए तो हमें सहारा दे। गुरूदेव जी ने युक्ति बताई कि वह एक कोरी कापी सदैव अपने पास रखे, जब कभी किसी मजबूरीवश झूठ बोलना पड़े तो उस वृतान्त का विवरण नोट कर लें और तद्पश्चात सप्ताह बाद साध-संगत में सुना दिया करें, संगत कार्य की विवश को मध्यनजर रख कर उसे क्षमा करती रहेगी। मंगलसेन ने सहमति देकर वचन दिया कि वह ऐसा ही आचरण करेगा।

बात जितनी सुनने में सहज लगती थी, उतनी सहजता से जीवन में अपनानी कठिन थी। अपने झूठ का विवरण संगत के समक्ष रखते समय मंगलसेन को बहुत ग्लानि उठानी पड़ने की सम्भावना दिखाई देने लगी। वह गुरू आज्ञा अनुसार अपने पास सदैव एक कोरी कापी रखने लगे, किन्तु जब भी कोई कार – व्यवहार होता तो बहुत सावधानी से कार्य करते कि कहीं झूठ बोलने की नौबत न आ जाये। इस सतर्कता के कारण वह प्रत्येक क्षण गुरूदेव जी को सर्वज्ञ जानकर बात करते और वह हर बार सफल होकर लौटते। धीरे धीरे उनके मन में गुरू जी के प्रति अगाध श्रद्धा – भक्ति बढ़ने लगी और वह लोगों में सत्य के कारण लोकप्रिय भी बन गये। सभी ओर से मान-सम्मान मिलने लगा। जब प्रसिद्धि अधिक बढ़ गई तो उन्हें गुरूदेव जी की याद आई कि यह सब कुछ क्रान्तिकारी परिवर्तन तो गुरूदेव जी के वचनों को आचरण में ढालने का ही परिणाम है। वह अपने सहयोगियों की मण्डली के साथ पुनः गुरूदेव जी की शरण में उपस्थित हुआ। गुरूदेव जी ने झूठ लिखने वाली कापी माँगी। चौधरी जी ने वह कोरी कापी गुरूदेव जी के समक्ष रख दी। गुरूदेव जी ने कहा – जो श्रद्धा विश्वास के साथ वचनों पर आचरण करेगा, उसके संग प्रभु स्वयँ खड़े होते हैं, उसे किसी भी कार्य में कोई कठिनाई आड़े नहीं आती।

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