गुरूदेव ने तुरन्त ही अकाल पीड़ितों की सहायता के लिए गुरूघर के कोष से दसवंध की राशि ली और लाहौर प्रस्थान कर गये। वहाँ उन्होंने अपने समस्त अनुयाइयों को संगठित किया और स्वयँ सेवकों की टुकड़ियाँ बनाकर नगर के कोने कोने में भेजी। इन स्वयँ सेवकों ने समस्त अकाल पीड़ितों के लिए स्थान स्थान पर लंगर (भण्डारे) लगा दिये तथा रोगियों के लिए नि:शुल्क दवा का प्रबन्ध कर दिया। जिन लोगों की मृत्यु हो गई थी उनके पार्थिव शरीर की अंत्येष्टि सामुहिक रूप में सम्पन्न कर दी गई। गर्मी के कारण पेयजल की कमी स्थान स्थान पर अनुभव हो रही थी। गुरूदेव जी ने एक पंथ दो काज के सिद्धान्त को सम्मुख रख कर नये कुएं खुदवाने प्रारम्भ कर दिये, जिससे वहाँ कई बेरोजगार व्यक्तियों को काम मिल गया। समस्या बहुत गम्भीर और विशाल थी। इसलिए गुरूदेव ने बेरोजगारों को काम दिलवाने के लिए कई योजनाएं बनाई। जिसमें उन्होंने कुछ ऐतिहासिक भवन बनवाने प्रारम्भ किये जिससे सर्वप्रथम बेरोजगारी की समस्या का समाधान हो जाये। दूसरी तरफ मृत व्यक्तियों के परिवारों में कई बच्चे अनाथ हो गये थे, जिनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था। गुरूदेव ने दूसरे चरण में उन समस्त बच्चों को एकत्र करवाया, जिनका अपना सगा-सम्बन्धी कोई नहीं बचा था और उनकी देखभाल के लिए अनाथालय खोल दिया। जिससे से पीड़ित बच्चों को गुरूदेव का संरक्षण प्राप्त हो गया। इस शुभ कार्य को देखकर स्थानीय कुछ धनाढ्य लोगों ने गुरूदेव के कोष में अपना योगदान देना प्रारम्भ कर दिया। उन दिनों स्थानीय प्रशासन की तरफ से जनता की भलाई के लिए कोई विशेष कार्यक्रम नहीं हुआ करते थे। यह समाज सेवा की निष्काम बातें जब स्थानीय राज्यपाल ‘मुर्तजा खान’ को सुनने को मिली तो वह गुरूदेव से मिलने चला आया। उसने अपनी सरकार की ओर से गुरू अर्जुन देव जी का धन्यवाद किया और कहा कि प्रशासन आपका ऋणी है। जो कार्य हमारे करने का था, वह आपने किया है। अत: हम सभी लोग आपके सदैव आभारी रहेंगे। विचारविमर्श में मुर्तजा खान ने अपनी विवशता व्यक्त करते हुए कहा – अकाल के कारण प्रदेश के किसानों ने लगान जमा ही नहीं कराया इसलिए खजाने खाली पड़े हुए हैं। मैंने यहाँ के किसानों तथा मजदूरों की शोचनीय दशा केन्द्रीय सरकार को लिखी है। बादशाह अकबर स्वयँ कुछ दिनों में यहाँ तशरीफ ला रहे हैं। गुरूदेव ने राज्यपाल मुर्तजा खान की मजबूरी को समझा और उसे सांत्वना दी और कहने लगे कि यदि बादशाह अकबर यहां आते हैं तो हम उससे मिलना चाहेंगे। राज्यपाल ने गुरूदेव को आश्वासन दिया कि मैं आपकी भेंट सम्राट अकबर से अवश्य ही करवाऊँगा।
जब सम्राट का पँजाब जैसे समृद्ध क्षेत्र से लगान नहीं मिला तो वह वहाँ के राज्यपाल के संदेश पर स्वयँ स्थिति का जायजा लेने पंजाब पहुँचा। राज्यपाल मुर्तजा खान ने समय का लाभ उठाते हुए सम्राट अकबर की भेंट गुरूदेव से निश्चित करवा दी। गुरूदेव ने सूखाग्रस्त क्षेत्रों के किसानों की आर्थिक दशा का चित्रण अकबर के समक्ष किया वह गुरूदेव के तर्कों के सम्मुख झुक गया और उसने उस वर्ष का लगान क्षमा कर दिया। गुरूदेव का मानवता के प्रति निष्काम प्रेम देखकर, सम्राट अकबर के हृदय में उनके प्रति श्रद्धा उत्पन्न हो गई और उसने गुरूदेव से बहुत सी ‘भक्तिवाणी’ सुनी, जिससे उसके मन के संशय निवृत्त हो गये। उन्हीं दिनों गुरूदेव को स्थानीय सूफी फकीर साई मीया मीर जी भी मिलने आये। उन्होंने गुरूदेव से कहा – मैं आप द्वारा रचित वाणी सुखमनी साहब प्रतिदिन पढ़ता हूँ, मुझे इस रचना में बहुत आनन्द प्राप्त होता है क्योंकि इसमें जीवन युक्ति छिपी हुई है किन्तु मुझे एक विशेष पंक्ति पर आप से कुछ जानकारी प्राप्त करनी है। इस पर गुरूदेव ने कहा – आप अवश्य ही जो भी पूछना चाहते हैं, पूछिये। साई मीयां मीर जी ने पूछा आप अपनी रचना में ब्रह्मज्ञानी के लक्षणों का वर्णन करते हैं। क्या आप किसी ऐसे व्यक्ति के दर्शन करवा सकते हैं अथवा इन पंक्तियों के अर्थ स्पष्ट कर सकते हैं –
ब्रह्म गिआनी के मित्र सत्र समानि।
ब्रह्म गिआनी के नाही अभिमान।
उत्तर में गुरूदेव ने कहा – आप कुछ दिन प्रतीक्षा कीजिए, समय आने पर इस पंक्ति के अर्थ आप स्वयँ जान लेंगे और ब्रह्मज्ञानी के दर्शनों की इच्छा भी आपकी अवश्य ही पूर्ण होगी।