इस सिख का नाम भाग सिंघ था किन्तु लोग उन्हें प्यार से भानु जी कह कर सम्बोधन करते थे। सिख ने साई जी के आदेश अनुसार वजीर खान को प्रतिदिन सुखमनी साहब की वाणी सुनानी शुरू कर दी। सुरखमनी साहब के उच्चरण समय खान साहब को बहुत राहत मिलती, वह इस ब्रह्मज्ञान मय वाणी को सुनकर अपना दुख भुल जाते और एकागर हो स्थिर हो जाते। वह इस सिख के प्रतिश्रद्धा रखने लगे किन्तु एक दिन भाई भानु जी ने वजीर खान से कहा – कृप्या आप उन महापुरूषों से मिलें जिनकी यह रचना है, वह पूर्ण पुरूष हैं, हो सकता है आप पर उनकी कृपा दृष्टि हो जाएं तो शायद आप का रोग ही दूर हो जाए। वजीर खान ने तुरन्त निश्चय किया कि वह अमृतसर जाएगा और गुरू दरबार में उपस्थित होकर अपने रोग निवारण के लिए गुरू चरणों में प्रार्थना करेगा। इस प्रकार वजीर खान पालकी में सवार होकर श्री गुरू अरजन देव जी के दर्शनों को अमृतसर पहुँचा। गुरूदेव उस समय सरोवर के निर्माण कार्य का निरीक्षण कर रहे थे। संगत सरोवर से मिट्टी अथवा गारा टोकरियों में भर – भर कर बाहर निकाल कर ला रही थी। इन में बाबा बढ़ा जी भी सम्मिलित थे। कहारों ने वजीर खान को पालकी से निकाल कर गुरूदेव के सम्मुख लेटा दिया और वजीर खान गुरूदेव से याचना करने लगा मुझ गरीब पर भी दया करें मैं बहुत कष्ट में हूँ। गुरुदेव ने शरणागत की याचना बहुत गम्भीरता से सुनी और उसे धैर्य रखने को कहा – इतने में सिर पर गारे की टोकरी उठाये बाबा बढ़ा जी गुरूदेव के सामने से गुजरने लगे। गुरूदेव ने उन्हें सम्बोधन कर के कहा – आप इस अभ्यागत का कष्ट निवारण के लिए कोई उपाये करें। बाबा बुढ़ा जी ने उत्तर में अच्छा जी कहा और गारे की टोकरी दूर फेक कर उसी प्रकार अपने कार्य में व्यस्त हो गये। कुछ ही देर में वह फिर गारे की टोकरी सिर पर उठाये चले आये, गुरूदेव ने उन्हें फिर कहा – आप इनके उपचार के लिए कुछ अवश्य करें। उत्तर में बाबा जी ने फिर अच्छा जी कुछ करता हूं और वह पुन: सरोवर का गारा लेने चले गये। इस बार उनको गुरूदेव ने जैसे ही संकेत किया उन्होंने टोकरी का समस्त गारा वजीर खान के फूले हुए पेट पर बहुत वेग से पलट दिया बहुत वेग से गारा पेट पर पड़ते ही पेट के एक कोने में छेद (पंचर) हो गया और पेट में भरा मवाद बाहर निकल गया। तुरन्त शैल्य चिकित्सक (जर्राह) को बुलाकर उनके पेट में टांके इत्यादि लगवा कर उपचार किया गया। धीरे – धीरे वह सामान्य अवस्था में आने लगे और कुछ ही दिनों में पूर्ण स्वस्थ्य होकर गुरूदेव का धन्यवाद करने लगे। वजीर खान के एक निकटवर्ती ने एक दिन बाबा बढ़ा जी से पूछा आप को गुरूदेव ने तीन बार बजीर खान का उपचार करने को कहा आप ने उनकी आज्ञा पर पहली बार गारा उन पर क्यों नहीं फेका? उत्तर में बाबा जी ने कहा – गुरूदेव पूर्ण समर्थ है परन्तु वह अपने भक्तों को मान-सम्मान देते है अत: हमने उनकी आज्ञा अनुसार अपने हृदय को प्रार्थना द्वारा प्रभु चरणों में जोड़ लिया था जब प्रार्थना सम्पूर्ण हुई तो हमने संकेत पाते ही गारा वजीर खान के पेट पर दे मारा था। हमारा कार्य तो एक बहाना मात्र था। बरकत तो प्रार्थना और गुरूदेव के वचनों की थी।