श्री गुरू अर्जुन देव जी ने सम्राट का भव्य स्वागत किया। सम्राट ने एक सुन्दर 34 वर्ष के युवक को गुरू रूप में देखा तो उसके हृदय में जिज्ञासा उत्पन्न हुई कि मैं कुछ आध्यात्मिक ज्ञान की चर्चा सुनु। अत: उसने विनती की कि आप मुझे आध्यात्मिक ज्ञान देकर कृतार्थ करें। इस पर गुरूदेव ने उसे स्वरचित वाणी ‘सुखमनी साहब’ के कुछ अंश सुनाए। सुखमनी के पद्य सुनकर अकबर आत्मविभोर हो उठा। उसने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा – जैसा सुना था, वैसा ही पाया है। जाते समय वह गुरूदेव से अनुरोध करने लगा – मुझे आप कुछ सेवा बतायें। गुरूदेव जी ने समय उचित देखकर सम्राट से कहा – जैसा कि हम सभी जानते हैं कि सूखा पड़ने के कारण किसान लोग बहुत कष्ट में हैं। अत: इस वर्ष का लगान माफ कर देना चाहिए। सम्राट कुछ उलझन में पड़ गया परन्तु वह गुरूदेव जी के व्यक्तित्व के सामने झुक गया और उसने कहा जब आप अकाल पीड़ितों के लिए निष्काम लंगर लगा सकते हैं तो मैं इतना भी नहीं कर सकता। उसने तुरन्त आदेश दिया कि लाहौर के सूबेदार मुर्तजा खान को सूचित करो कि पँजाब के किसानों का इस वर्ष का लगान क्षमा कर दिया गया है। यह घटना सन् 1597 ईस्वी की है।