सम्राट अकबर की सेना में सुलही खान और उसका भतीजा सुलबी खान सैनिक अधिकारी थे। पृथ्वीचन्द राजनैतिक शक्ति से श्री गुरू अर्जुन देव जी को परास्त करना चाहता था। अतः वह अपने मसंदों (एजेन्टों) द्वारा कई बार इन अधिकारियों से मिला और उनसे मित्रता स्थापित करने के लिए उन्हें कई बार बहुमूल्य उपहार भेंट किये। सांठ-गांठ में पृथ्वीचन्द ने यह सुनिश्चित करवा लिया कि अवसर मिलते ही वह गुरूदेव का अनिष्ट कर देंगे। किन्तु उनके पास ऐसा करने का कोई कारण न था, क्योंकि पृथ्वीचन्द सम्पत्ति का बंटवारे का भाग लेकर दस्तावेज गुरूदेव को सौंप चुका था। अत: उन्होंने एक काल्पनिक कहानी बनाई कि पृथ्वीचन्द के लड़के मिहरबान को श्री गुरू अर्जुन देव जी ने गोद लिया हुआ था, क्योंकि उनके उन दिनों कोई सन्तान नहीं थी। अतः अब उनको चाहिए कि वह मिहरबान को अगला गुरू सुनिश्चित करे और यह मुकद्दमा लाहौर की अदालत में पेश किया। उत्तर में गुरूदेव जी ने कहा – गुरू पदवी किसी की धरोहर की वस्तु नहीं होती। यह तो परमेश्वर का प्रसाद है अर्थात रूहानीयत का एक करिश्मा होता है। इसलिए यह सेवकों में से किसी को भी मिल सकती है। उत्तर उचित था, इसलिए मुकद्दमा खारिज हो गया। किन्तु पृथ्वीचन्द ने एक और याचिक दी कि मेरे लड़के को सिक्खी सेवकों से होने वाली आय में से आधी मिलनी चाहिए। इस बार भी गुरूदेव जी ने उत्तर भेजा कि सिक्खी सेवकों की आय भी तत्कालीन गुरू पदवी प्राप्त व्यक्ति की ही होती है क्योंकि वह तो सेवकों द्वारा प्रेम और श्रद्धा के पात्र बनने से सहज ही प्राप्त होती है। यह कोई लगान तो है नहीं, जिसे बलपूर्वक प्राप्त किया जा सके अथवा अधिकार बताया जा सके। यह उत्तर भी उचित था। न्यायधीश ने यह याचिका भी खारिज कर दी परन्तु पृथ्वीचन्द अड़ियल टट्टू था। उसने एक अन्य याचिक दी कि अर्जुन देव ने मिहरबान को अपना दत्तक पुत्र माना है। अतः उसको आधी सम्पत्ति मिलनी चाहिए। इस याचिका के उत्तर में गुरू देव जी ने उत्तर भेजा कि हमारे सभी पुत्र हैं। हम ने सभी से प्यार किया है। फिर भी हमने किसी को लिखित रूप में दत्तक पुत्र होने की घोषणा नहीं की। यदि मिहरबान हमें अपना पिता मानता है तो उसे हमारे पास रहना चाहिए। सम्पत्ति अपने आप समय आने पर मिल जायेगी। उत्तर यह भी उचित था। इसलिए न्यायधीश ने सुझाव दिया कि तुम्हारे पास कोई लिखित दस्तावेज नहीं। अत: प्यार – मौहब्बत से ही सम्पत्ति प्राप्त करो। किन्तु पृथ्वीचन्द को सन्तोष तो था नहीं। अतः उसने बल से सम्पत्ति बंटवाने की योजना बना डाली।
पृथ्वीचन्द दिल्ली गया। वहाँ उसने सुलबी खान को उकसाया कि वह अमृतसर पर आक्रमण करे और सैनिक बल से श्री अर्जुन देव को पुन: बँटवारे के लिए विवश करे अथवा वहाँ से सदैव के लिए उनको बेदखल कर दे। सुलबी खान भाइयों की फूट का लाभ उठाने के लिए अपनी सैनिक टुकड़ी लेकर अमृतसर की ओर चल पड़ा। रास्ते में जालन्धर नगर के उस पार व्यासा नदी के किनारे एक निष्कासित सेना अधि कारी सुलबी खान को मिला और उसने अपने पिछले वेतन के भुगतान के विषय में सुलबी खान से आग्रह किया। किन्तु सुलबी खान ने अभिमान में आकर वेतन के बदले उसे भद्दी गालियाँ दे डाली। इस पर वह भूतपूर्व सैनिक अधिकारी, जिसका नाम सैय्यद हसन अल्ली था, आत्मसम्मान को लगी ठेस सहन नहीं कर पाया। उसने तुरन्त म्यान से तलवार निकाली और क्षण भर में सुलबी खान का सिर कलम कर दिया। स्वयँ वहाँ से भाग कर व्यासा नदी के दलदल क्षेत्र में लुप्त हो गया। सरदार के अभाव में सेना लौट गई। इस प्रकार पृथ्वी चन्द की यह योजना निष्फल हो गई और वह भाग्य को कोसता रह गया।